भूविस्थापितों ने सांसद चुनने के लिए मतदान नहीं करने का निर्णय लिया

एसईसीएल से जुड़े मामले को लेकर है नाराजगी

कोरबा 06 मई। 7 मई को लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने की घोषणा एक बैठक में भूविस्थापितों ने की, जो पाली-पड़निया गांव में आयोजित की गई। दावा किया गया कि 10 गांव के लोग इसमें शामिल हुए। भूविस्थापितों ने सांसद चुनने के लिए मतदान नहीं करने का निर्णय लिया है। उनकी नाराजगी इस बात को लेकर है कि 2008 में भू अर्जन के बाद नौकरी और मुआवजा को लेकर एसईसीएल व प्रशासन ने कोई रूचि नहीं ली।

प्रशासन चाहता है कि कम से कम इस बार कोरबा लोकसभा क्षेत्र में 100 प्रतिशत वोटिंग हो और एक नया रिकॉर्ड स्थापित हो । पिछले 1 महीने से इसके लिए कई प्रकार की कवायद की जा रही है । प्रशासन के अंतर्गत आने वाले सभी विभागों के अधिकारी से लेकर कर्मचारी के अलावा सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक संगठनों की मदद मतदाताओं को जागरूक करने के लिए दी जा रही है। इस काम में धनराशि भी खर्च हो रही है और समय भी जाया हो रहा है। हर तरफ से अच्छे संकेत मिलने के बाद प्रशासन उम्मीद में है कि नतीजे कुछ अच्छे आ सकते हैं लेकिन इसी बीच साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड कुष्मांडा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 10 गांव के भूमि स्थापित होने बैठक की और अपनी समस्या को लेकर गंभीरता से चर्चा की। पाली पड़निया में आयोजित इस बैठक में खदान के कारण प्रभावित हुए जटराज, सोनपुरी, खोडरी, आमगांव, खैरभवना, कनवेरी, रिसदी, दुरपा, के लोगों ने भाग लिया। मुख्य मुद्दा था कई वर्ष पहले इन गांव की जमीन अर्जित करने के बाद संबंधित लोगों को मुआवजा और रोजगार नहीं दिया जाना। बैठक में इस बात को लेकर नाराजगी जताई गई की देश के लिए कोयला की जरूरत बात कर उनकी जमीन नाम मात्र धनु राशि में ले ली गई। उन्हें नौकरी और भूमि विस्थापन का अन्य लाभ नहीं दिया गया। यहां तक की अभी भी कई परिवार ऐसे हैं जिन्हें मुआवजा तक नहीं दिया गया है। वे लंबे समय से न्याय की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी और ना तो एसईसीएल प्रबंधन का ध्यान है और ना ही जिला प्रशासन का। इतना ही नहीं जनता के वोट से नेतागिरी करने वाले लोग भी कुसमुंडा क्षेत्र से संबंधित भूमि स्थापित की समस्या को लेकर कुंभकरण नींद में सोए हुए हैं। इसलिए विस्थापित समुदाय ने अपनी समस्याओं के लिए प्रशासन प्रबंधन और जनप्रतिनिधियों को समान रूप से जिम्मेदार ठहराया और कोरबा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत लोकसभा चुनाव के लिए होने वाली 7 मई को वोटिंग का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी। अपनी जमीन से विस्थापित किए गए लोगों का मानना है की चुनाव के समय प्रत्याशी तमाम वादे और दावे करके जाते हैं लेकिन जीतने के बाद वे गांव में आना भी बिल्कुल जरूरी नहीं समझते। इसलिए ग्रामीण जन ने भी सुनिश्चित कर लिया है कि सही समय पर ऐसे लोगों को समक्ष सीखने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

यहां याद रखना होगा कि कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की ओपन कास्ट और अंडरग्राउंड माइन्स कोरबा जिले में संचालित हो रही है। क्षेत्र के अंतर्गत लगभग 20 खदानें अपना काम कर रही हैं और प्रदेश व केंद्र सरकार को हर महीने करोड़ का राजस्व उपलब्ध कराती हैं। यह काम तभी संभव हो रहा है जब इन परियोजनाओं के लिए ग्रामीणों ने अपनी जमीन उपलब्ध कराई हैं । हर बड़ी परियोजना के शुरू होने के दौरान जो प्रक्रिया अपनाई जाती हैं , पर्यावरणी स्वीकृति सबसे अहम होती है। इस अवसर पर लोगों को बताया जाता है कि परियोजना के खुलने से किस प्रकार के फायदे होंगे और लोगों की भूमिका राष्ट्रीय परिपेक्ष में किस तरीके से सुनिश्चित होगी। देश के विकास की तस्वीर जब सामने आती है तो खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग ऊंची सोच के साथ बहुत बड़ा योगदान देने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन उन्हें पछतावा तब होता है जब लंबा समय गुजारने के बाद भी उनके सामाजिक और आर्थिक हितों के बारे में चिंता नहीं की जाती। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की परियोजनाओं को लेकर रवैया कुछ इसी प्रकार का चल रहा है और इसके कारण यहां के जन सामान्य को परेशान होना पड़ रहा है। अब जबकि मतदान के लिए कुछ घंटे बाकी रह गए हैं ऐसा में देखना दिलचस्प होगा कि कल पोलिंग बूथ जाएंगे या फिर निर्णय पर अडिग रहेंगे।

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