फिर चर्चा में आया कच्चाथीवू द्वीप, क्या है मामला? जानिए विस्तार से

नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की हालिया श्रीलंका यात्रा के बीच कच्चाथीवू द्वीप एक बार फिर चर्चा में आ गया। विपक्षी दल कांग्रेस और तमिलनाडू में सत्तारूढ डीएमके सहित कई दलों ने सरकार पर इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दबाव बनाया। जानिए इस द्वीप के बारे में।
- कच्चाथीवू द्वीप क्या है?
कच्चाथीवू द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में 285 एकड़ में बना निर्जन द्वीप है। रामेश्वरम के उत्तर पूर्व में यह द्वीप भारत से 22 किमी दूर है। इस द्वीप पर सेंट एंथोनी चर्च है। कच्चाथीवू द्वीप 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट से निर्मित हुआ था।
- कच्चाथीवू द्वीप को लेकर क्या है विवाद?
कच्चाधिवू द्वीप ब्रिटिशकाल में मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा था। साल 1974 तक यह जारी रहा। दोनों देश इस द्वीप पर अपना दावा जताते रहे। 1974 में भारत-श्रीलंका समुद्री समझौते के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार ने इसे श्रीलंका को सौंप दिया था। तबसे ही यह द्वीप द्विपक्षीय संबंधों में विवाद का विषय बना हुआ है।
- द्वीप को लेकर कहां फंसा है पेंच ?
1974 में द्वीप पर समुद्री समझौते के तहत यह द्वीप श्रीलंका को जरूर सौंप दिया गया, लेकिन दोनों पक्षों द्वारा समझौते की अलग अलग व्याख्या की जाती रही है। इस कारण श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों को वहां आराम करने, जाल सुखाने से लेकर वहां बने कैथोलिक चर्च में जाने जैसी गतिविधियों तक पहुंच सीमित कर दी।
- विपक्ष ने इस पर क्यों उठाया मुद्दा ?
तमिलनाडु के मछुआरे इस क्षेत्र में मछली पकड़ने के अपने पारंपरिक अधिकारों की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन चूंकि यह द्वीप श्रीलंका को सौंपा जा चुका है, इसलिए श्रीलंका नौसैनिकों भारतीय मछुआरों पर कार्रवाई कर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।
- कैसे छिड़ी थी कच्चाथीवू पर राजनीतिक बहस ?
दशकों पुराना कच्चाथीवू द्वीप का विवाद पिछले साल 2024 में भी सामने आया था, जब पीएम नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर अपने संदेश में इस बात पर सवाल उठाया था कि कैसे कांग्रेस ने 1970 के दशक में कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था। इस पर राजनीतिक बहस छिड़ी थी।