स्मृति@नरेन्द्रश्रीवास्तव बजरिया विजय सिंह

छत्तीसगढ़ के जनकवि……… हम सब के प्रिय नरेन्द्र दादा (नरेंद्र श्रीवास्तव) —17 जनवरी
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नरेन्द्र दादा, सादर नमन! जांजगीर के युवा कवि सतीश कुमार सिंह ने सूचना दी ,कि नरेंद्र दादा नहीं रहे….. यह सुनकर मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा… अभी कुछ दिन तो हुए हैं अपने जीवन को पटरी में लाये हुए… ..माँ को याद करते हुए माँ को भूलते हुए… फिर से अपने जीवन में लौटने की कोशिश कर रहा था… अभी – अभी कुछ देर पहले तो फिर से सब कुछ अच्छा – अच्छा सा महसूस कर रहा था……..फिर ये क्या…? सतीश की सूचना ने मुझे फिर से तोड़ दिया है…. यह तय है कि कुछ दिन बाद हम इस दुख: से भी उभर जायेंगे ….लेकिन क्या नरेन्द्र दादा को हम कभी भूल पायेंगे.. कभी नहीं ….. नरेन्द्र दादा को हम कैसे भूल सकते हैं ….नरेन्द्र दादा को जो जानता है वह उन्हें कभी भूल ही नहीं सकता…. अस्सी वर्षीय छत्तीसगढ़ के जनकवि कहे जाने वाले नरेन्द्र श्रीवास्तव …छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण रचनाकारों में से एक थे ….किसी समय धर्मयुग ,साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी स्तरीय पत्रिकाओं में अपनी कहानी से पहचाने गये नरेन्द्र श्रीवास्तव गीतों की ओर लौट गये…. प्रतिबध्द ,वैचारिक दृष्टि से ओत – प्रोत उनके गीत जब हम मंच में सुनते थे तो सुनते रह जाते थे….. जैसा उनका स्वभाव था.. अखक्कड़… अपनी मस्ती में – अपने धुन में रहने वाले नरेन्द्र श्रीवास्तव ने अपने उम्र के लोगों से दोस्ती नहीं की…. उनके दोस्त हम सब थे…. हम उनके साथ बैठकर बीड़ी फूंकते थे… गिलास भी टकराते थे…. हमारी पीढ़ी ने कविता की ज़मीन को… जनपद की उर्वरता को, रचना की प्रतिबध्दता को नरेन्द्र दादा के पास बैठकर सीखा जाना है…. छत्तीसगढ़ में जांजगीर कस्बा आज यदि साहित्य के केन्द्र में है तो उसके पीछे नरेन्द्र दादा की अथक मेहनत है… दिन – रात वहाँ के रचनाकारों के साथ लगे रहते थे… आज असर यह है कि उस जांजगीर शहर में रचनाकारों की एक महत्वपूर्ण जमात तैयार हो गई….. जिससे आज छत्तीसगढ़ में जांजगीर अलग से रेखांकित किया जाता है…… मैं जांजगीर शहर से लगभग 500 कि, मी दूर रहता हूँ.. लेकिन नरेन्द्र दादा, विजय राठौर, सतीश और अन्य लोगों की उपस्थिति में जब भी जांजगीर गया मुझे कभी यह नहीं लगा कि मैं अपने घर में नहीं हूँ… जब कभी भी जांजगीर जाता… नरेन्द्र दादा की खुशी देखते बनती …कहते हमारे छत्तीसगढ़ के युवाओं के सूत्रधार विजय आ गये….. फिर हम हमारी लंबी – लंबी बैठके होती…. साहित्य – रचना, समाज के साथ हम दादा की बीड़ी के कश का आनंद उठाते… नरेन्द्र दादा को मैं पढ़ता रहा हूँ…. लेकिन उनसे पहली मुलाकात 95 – 98 के आसपास कोरबा में ” छत्तीसगढ़ साहित्य सन्दर्भ ” के कार्यक्रम में हुई थी…. पहली मुलाकात में ही आगे बढ़कर उन्होंने कहा था… अरे आप सूत्र के विजय सिंह हैं न….आपकी कविताएं मैं पढ़ता रहता हूँ… और फिर मेरी निश्छल भाव से प्रशंसा करने लगे… मैं हतप्रभ था…. छत्तीसगढ़ का इतना बड़ा लेखक मुझ जैसे नवान्तुक को गले लगा रहा है तारीफ कर रहा है….. वह दिन है…. फिर आज का दिन है… नरेन्द्र दादा लगातार हमारे साथ बने रहे…. हम पिछले बीस वर्षों से छत्तीसगढ़ के हर शहर – कस्बे, गांव में ठा. पूरन सिंह स्मृति सूत्र सम्मान कार्यक्रम करते चले आ रहे हैं …. वर्षो से मुझे याद नहीं पढ़त कि 20 वर्षो में नरेन्द्र दादा ने कोई सूत्र सम्मान का कार्यक्रम छोड़ा हो…. सन् 2014 में धमतरी में आयोजित सूत्र सम्मान में इसलिए नहीं आ पाये थे कि उनके घर में किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी थी…. नहीं आ पाये तो सतीश के हाथ एक चिट्ठी के साथ 500 रू सूत्र सम्मान के लिए भेजा यह लिखते हुए …कि विजय मुझे माफ करोगे…. मैं पहली बार सूत्र सम्मान में उपस्थित नहीं हो पा रहा हूँ…… यह 500 रू में मेरी अनुपस्थित राशि है……….. इसे रचना सहयोग के रूप इसका उपयोग करो……..

नरेन्द्र दादा चले गये…. रचना में अपनी उपस्थिति दर्ज करा करा कर…. लेकिन हम लोगों के जीवन में उनकी उपस्थिति कौन दर्ज करायेगा…. किस साथ बैठ कर बीड़ी पियेंगे… किसके साथ बैठकर…उनकी तरह जवानों की तरह हर स्थिति – परिस्थिती में हँसते रहेंगे….

विजय सिंह🛑पुराना लेख

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