कविता: एक दिन सोनभद्र @ डॉ. सुधीर सक्सेना

एक दिन सोनभद्र
- डा. सुधीर सक्सेना
एक दिन सोनभद्र रहेगा
अलबत्ता सोनभद्र नहीं रहेगा
अभद्र-युग की देहरी पर खड़ा है सोनभद्र
इतना अभद्र कि लिंचिंग, बुलडोजर और
ध्वंस से उसे परहेज नहीं,
सोनभद्र की पसलियों में बजता है भय,
सोनभद्र की आंखों से उड़ जाती है नींद
बाज वक़्त रतजगा करता है सोनभद्र
सोनभद्र बांचता है काल की भीत पर
स्याह रोशनाई में लिखी इबारतें
एक दिन सोनभद्र होगा
अलबत्ता सोनभद्र नहीं होगा
बांसों, पलाश और महुवे के वृक्षों से न्यून
सोनभद्र होकर भी नहीं होगा सोनभद्र
लगातार घट रहे हैं अपशकून
सोनभद्र की पेशानी पर सलें ही सलें
एक दिन ऐसा भी आयेगा,
जब सोनभद्र याद करेगा पेड़ों की सिसकियां
याद करेगा सोनभद्र पलाश के चटख रंग
और महुवे की मदालस गंध
जब सोनभद्र सोनभद्र नहीं रहेगा
सोनभद्र की स्मृतियों में गूंजेंगी
सुरीली बांसुरियों की मीठी-मीठी धुनें।
02/04/25