भूपेश बघेल: पैरों तले की जमीन खिसकते जाए है- आहित्सा- आहित्सा….!
गेंदलाल शुक्ल
रायपुर 9 मई। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तिथि जैसे-जैसे करीब आ रही है, प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बेचैनी बढ़ती जा रही है। उन्हें 2003 के विधानसभा चुनाव के रिपीट होने की आशंका ने घेर लिया है। यही वजह है कि प्रदेश के मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को कांग्रेस में प्रवेश कराने के प्रयास में जुट गए हैं। इस खास अभियान की शुरुआत भाजपा के नेता नंदकुमार साय से की गई है।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव नवंबर 2023 में होना है। हालांकि चुनाव में अभी 6 माह से भी अधिक समय बाकी है लेकिन चुनावी बिसात पर राजनीतिक मोहरे अभी से सजाए जाने लगे हैं। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की सरकार में प्रदेश में जो वातावरण निर्मित हुआ था कमोवेश वैसा ही वायुमंडल वर्तमान में नजर आ रहा है। आम मतदाता खामोश है लेकिन भीतर ही भीतर प्रदेश में बढ़ती अराजकता, हिंसा, भ्रष्टाचार और राजनीतिक- प्रशासनिक आतंकवाद ने उसे आंदोलित कर रखा है।
कांग्रेस की जड़ों को खोखला करने में ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री पद का विवाद भी निर्णायक भूमिका में नजर आ रहा है। सरगुजा के महाराजा और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव से की गई वादाखिलाफी को लेकर सरगुजा में भीतर ही भीतर आग धधक रही है जो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सपनों को जलाकर खाक कर सकती है। सरगुजा में कुल 14 विधानसभा क्षेत्र हैं जो अभी पूरे के पूरे कांग्रेस के खाते में हैं। लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में सरगुजा में कांग्रेसका खाता खुलना भी मुश्किल नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री पद के अलावे सरगुजा में असंतोष का एक बड़ा कारण महाराजा सरगुजा टी एस सिंहदेव को उनकी ही धरती पर बार-बार सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का प्रयास और उनके समर्थकों को उपेक्षित करना बताया जा रहा है। ऐसी स्थिति में सरगुजा की जनता अपने महाराजा के सम्मान को बनाए रखने के लिए कांग्रेस के खिलाफ सामूहिक मतदान कर सकती है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने में बस्तर की महत्वपूर्ण भूमिका थी। बस्तर में 12 विधानसभा क्षेत्र हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बार बार के बस्तर प्रवास के बावजूद और तरह तरह की जुमलेबाजी के बाद भी बस्तर का वातावरण कांग्रेस के लिए अनुकूल प्रतीत नहीं होता। बस्तर सहित संपूर्ण छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित क्षेत्रों में सर्व आदिवासी समाज की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा ने भी कांग्रेस के समीकरण को बिगाड़ दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सर्व आदिवासी समाज पूरे दमखम के साथ अबकी बार चुनाव में हिस्सा लेगा। इसका सीधा असर कांग्रेस पर पड़ेगा और आरक्षित विधानसभा क्षेत्रों में उसका सूपड़ा साफ हो सकता है।
इससे हटकर छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों की बात की जाए तो तमाम लटकों झटकों के बावजूद कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। शहरी क्षेत्रों में कोल स्कैम और शराब घोटाला सहित आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी के कारण कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कृषि और वनोपज के समर्थन मूल्य, गोधन योजना और छत्तीसगढ़िया वाद के भरोसे चुनाव जीतने का ख्वाब संजोए बैठे हैं। लेकिन इन सब का फायदा भी सीमित क्षेत्र में ही उन्हें मिलेगा। यह कहा जाए कि “भूपेश बघेल के पैरों तले की जमीन खिसकते जाए है- आहित्सा- आहित्सा” तो कुछ गलत नहीं होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी इस बात का अच्छी तरह से अंदाजा हो गया है। यही वजह है कि अब उनकी नजर विपक्षी दलों के अति महत्वाकांक्षी और असंतुष्ट नेताओं पर टिक गई है। मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी, प्रदेश के मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए अब लगातार विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं के कांग्रेस प्रवेश की योजना पर काम करेंगे। पिछले दिनों भाजपा नेता नंदकुमार साय का कांग्रेस प्रवेश कराने के साथ इस योजना की शुरुआत हो चुकी है। आने वाले दिनों में इसी तरह से भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को कांग्रेस प्रवेश कराया जाएगा। ताकि आम मतदाताओं को ऐसा लगे कि कांग्रेस की सरकार एक बार फिर बन रही है, इसीलिए विभिन्न दलों के नेता और कार्यकर्ता भारी संख्या में कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस को अपने इस प्रयास में कितनी सफलता मिलती है यह आने वाला समय ही बताएगा।