छत्तीसगढ़: 70 सालों से हो रहे उपेक्षा का शिकार,अब जाकर लगाई न्याय की गुहार

बच्चों को स्कूल छोडऩे और लाने, अधिकारियों के बंगले में कुत्ता घुमाने से लेकर नालियों की सफाई तक का करते है काम, फिर भी न डीए, न नियमित वेतनमान, 13000 में घिसट रही जिंदगी

रायपुर.  एक कहावत होम गार्ड जवानों पर पूरी तरह फिट हो रही है, घर की मुर्गी दाल बराबर, जब जरूरत पड़े जब उसका सहयोग तो लिया जा रहा है, लेकिन पिछले 72 सालों आजाद भारत में होमगार्ड के जवानों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने और उन्हें पुलिस की तरह ही सुविधा देने का संज्ञान किसी भी सरकार के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, गृहमंंत्री ने नहीं लिया। कोरोना संक्रमण के दौर में जब चपरासी भी घरों में महफूज रहा। नगर सैनिकों ने जान की परवाह किए बगैर अपनी ड्यूटी निभाई। बावजूद आज पुलिस का वेतनमान लगातार आयोग के अनुसार बढ़ता रहा लेकिन पुलिस के समकक्ष 24 घंटे बंगले, कार्यालय में डयूटी देने वाले होम गार्ड जवानों की दयनीय हालात देश के किसी भी राज्य ने उसे पुलिस की तरह शासकीय कर्मी होने का दर्जा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, गृह सचिव, अपर सचिव, डीजीपी, न्यायाधीश ने नहीं दिया। जबकि उसकी सेवा से सभी उपकृत है, लेकिन होमगार्ड के पक्ष में आज तक कोई अनुशंसा नहीं करना राजनीतिक धृष्टता को इंगित करता है। सरकार आमआदमी के जीवन स्तर उठाने उन्हें सुख सुविधा देने अनेक योजनाएं चलाती है, सरकार शासकीय सेवकों को टीए, डीए, मकान भाड़ा, ड्रेस भत्ता, प्रेस भत्ता, सरकार मकान देने के साथ हर 6 माह में डीए बढऩे पर एरियर्स का भी भुगतान करती है। लेकिन होमगार्ड के जवानों को मात्र 13 हजार वेतन देकर अपने कर्तव्य का इतिश्री कर लेती है। छत्तीसगढ़ नगर सेना सैनिक परिवार कल्याण एसोसिएशन के अध्यक्ष घनश्याम खानवानी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, डीजीपी डीएम अवस्थी को पत्र प्रेषित कर होमगार्ड सैनिकों के साथ न्याय की गुहार लगाई है।

दोयम दर्जे में रखा गया सेवा को

सरकार चलाने वाले अधिकारियों और मंत्रियों ने होमगार्ड के जवानों को दोयम दर्जे में रखा है। होम गार्ड को सिर्फ मंत्रियों, सचिवों और अधिकारियों के बंगले में कुत्ता घुमाने, ड्राइवर नहीं हो तो गाड़ी हांकने, नाली चोक हो जाए तो नालियों की सफाई कराने का काम लिया जाता है, बच्चों को स्कूल छोडऩे और लाने का काम सौंप दिया गया है। उनकी सेवाओं का भरपूर दोहन अधिकारी करते है लेकिन उनके सुख सुविधाओं के बारे में मानवीय संवेदना नहीं रखते। इस तरह संवेदनाहीनता की होमगार्ड के जवान आजादी के 72 साल के बाद भी होमगार्ड होने की सजा भुगत रहे है। पुलिस के अधिकारी होमगार्ड को इंसान ही नहीं मानते, होमगार्ड जवानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है।

प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल की अनुशंसा का अपमान

1947 में आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने होमगार्ड का गठन किया एवं होमगार्ड सैनिकों को पुलिस की तरह शासकीय पुलिस आरक्षक के समान अधिकार और कर्तव्य करने का अधिकार दिया। पुलिस तो सरकारी सेवा में शामिल हो गई लेकिन होमगार्ड के जवान अर्ध शासकीय में ही लटके रहे। पुलिस का संगठन तो नहीं बना लेकिन बड़े पुलिस अधिकारियों और आईपीएस एसोसिएशन का संरक्षण मिला, जो समय -समय पर सरकार को अनुशंसा कर वेतन सहित सारी सुविधाओं का लाभ उठाते रहे लेकिन पुलिस वालों ने अपने सहकर्मी होमगार्ड जवान के बारे में ध्यान ही नहीं दिया। पुलिस के बड़े अफसरों के सामने होमगार्ड के जवान गिड़गिड़ाते रहे किसी ने भी होमगार्ड के जवानों को न्याय संगत कार्रवाई का आश्वासन नहीं दिया।

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