राखड़ बांध के आसपास कई गांव लंबे समय से समस्या ग्रस्त, समाधान की दिशा में कोई पहल नही

कोरबा 15 फरवरी। पतझड़ का मौसम शुरू होने और हवाओं की गति में रफ्तार आने के साथ कोरबा जिले के बड़े हिस्से में विद्युत संयंत्रों के राखड़ बांध से उत्पन्न समस्या लोगों के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। 2600 मेगावाट वाली एनटीपीसी की परियोजना के राखड़ बांध के आसपास के कई गांव लंबे समय से समस्या से ग्रसित हैं। आश्वासन तक लोगों को लटकाने के बाद समाधान की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है।

धनरास, छुरी और आसपास के कई गांव इस समस्या से प्रभावित हैं। इस इलाके में एनटीपीसी ने कुछ दशक पहले अपने नए राखड़ बांध की स्थापना की और इसका विस्तार भी किया। निर्धारित क्षमता तक यहां राखड़ डम्प की जा चुकी है। कथित निर्देशों और मानकों के अनुरूप प्लांट से होकर पाइप लाइन के जरिए पहुंची राखड़ को यहां रखा गया। दावा किया जाता रहा कि किसी भी कीमत पर राख यहां से उडऩे न पाए इसलिए वाटर स्प्रिंकलर के साथ.साथ दूसरी व्यवस्थाएं कराई गई है। इन सबके बावजूद ऐश डाइक से राखड़ का उडऩा जारी है। समस्या किस कदर भयानक हो चुकी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हवा की झोंके के साथ राख का गुबार उड़ते हुए आसपास की ग्रामीण आबादी को बुरी तरह से परेशान करता है। घरों के भीतर और बाहर राखड़ की उपस्थिति से कई प्रकार के नुकसान लोगों को हो रहे हैं। इन्हीं सब कारणों से पिछले महीनों से धनरास के लोग आक्रामक हैं। उनका सीधा आरोप है कि एनटीपीसी प्रबंधन राखड़ से जुड़ी समस्या का निराकरण करने को लेकर कुल मिलाकर उदासीन है और वह नहीं चाहता कि पीडि़तों को राहत दी जाए। इसलिए ग्रामीणों ने स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन करने के साथ-साथ टाउनशिप क्षेत्र में भी अपने तेवर दिखाए और अधिकारियों को संदेश देने का काम किया। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि पिछले वर्षों में आखिर किन कारणों से एनटीपीसी के राखड़ बांध के लिए जमीन अर्जन को लेकर उन्होंने सहमति दे दी। इसी का नतीजा है कि आज वे सबसे बड़ी त्रास्दी झेलने को मजबूर हैं और बड़ी कीमत चुका रहे हैं।

लोगों का कहना है कि एनटीपीसी प्रबंधन बिजली का उत्पादन और राखड़ के शत प्रतिशत उपयोगिता के बारे में चाहे लाख दावे करे लेकिन सच्चाई यही है कि जमीनी वास्तविकता इन सबसे बेहद अलग है। बिजली घर से निकलने वाली राख कई प्रकार के केमिकल प्रोसेस के बाद उत्सर्जित होती है। प्लांट से होते हुए ऐश डाइक तक पहुंचने के दौरान उसमें कई प्रकार के तत्व शामिल होते हैं और इन कारणों से बदलाव भी होता है। शायद यही सब कारण है कि राखड़ के उडऩे और इसके संपर्क में आने वाली आबादी त्वचा और श्वसन रोग से प्रभावित हो रही है। इस तरह के रोग एनटीपीसी के साथ-साथ सीएसईबी से जुड़ी परियोजनाओं के आसपास आबादी वाली बस्तियों में हावी हो रहे हैं। लोगों को इसके चलते न केवल परेशानी झेलनी पड़ रही है बल्कि उपचार के नाम पर जेब ढीली करनी पड़ रही है।

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