एस.ई. सी. एल. में दो लाख रूपयों की रिश्वत नहीं मिलने पर निविदा निरस्त….!

रिटायर हो रहे महाप्रबंधक से बातचीत का ऑडियो के साथ सी. एम. डी. से शिकायत

कोरबा 29 जुलाई। साऊथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एस. ई. सी. एल.) बिलासपुर के हसदेव एरिया के एक महाप्रबंधक पर दो लाख रूपयों की रिश्वत नहीं मिलने पर एक निविदा को निरस्त करने का आरोप लगा है। दो दिन बाद 31 जुलाई को रिटायर हो रहे उक्त महाप्रबंधक की शिकायत कंपनी के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक (सी. एम.डी.) से की गई है। सांकेतिक भाषा में रिश्वत की मांग का आडियो भी सी. एम. डी. को शिकायत के साथ दी गई है।

जानकारी के अनुसार हसदेव एरिया में एन. आई. टी. नं. AGM / HSD/50/E&M/E-Tender/06 दिनांक 10 मई 2022 आमंत्रित किया गया था। कुल 75.26 लाख की इस निविदा में तीन ठेकेदारों ने हिस्सा लिया। टेन्डर में ठेकेदार मे. आर. पी. जायसवाल ने सबसे कम 46 प्रतिशत नीचे का दर प्रस्तुत किया और वह एल. 1 हो गया।

शिकायत में आरोप लगाया गया है, कि – विद्युत एवं यांत्रिकी विभाग के महाप्रबंधक संजीव आनंद ने टेण्डर अवार्ड करने के बदले दो लाख रुपयों की रिश्वत मांगी। रिश्वत देने से इन‌कार करने पर उन्होंने टेण्डर निरस्त करने की धमकी दी। साथ ही टेण्डर के 46 प्रतिशत विलो रेट को असामान्य बताकर जस्टी- फिकेशन मांगा। केवल 48 घंटे के भीतर मांगे गये जवाब में ठेकेदार ने बताया कि एस. ई. सी. एल. में इससे कम दर पर भी काम हुए हैं और वह इस दर पर कार्य पूर्ण कर सकता है। इसके बाद 24 घंटे के भीतर उनसे दोबारा जवाब मांगा गया। इसका भी संतोषप्रद जवाब दिया गया, जिसे नजरअंदाज कर महा प्रबंधक संजीव आनंद ने टेण्डर निरस्त कर अमानत राशि जप्त कर ली। साथ ही 27 जुलाई को उक्त कार्य की निविदा दोबारा जारी कर दी।

ठेकेदार ने आरोप लगाया है कि किसी भी टेन्डर पर निर्णय के लिए टेण्डर कमेडी होती है। असामान्य स्थिति में यही कमेटी किसी भी टेण्डर पर अंतिम निर्णय लेती है। लेकिन उनका टेन्डर निरस्त करने सम्बन्धी लिए गये निर्णय की नोटशीट में कमेटी के सदस्यों का ना तो हस्ताक्षर है और ना ही कोई राय अंकित है।

सी. एम. डी. से की गई शिकायत में बताया गया है कि- महाप्रबंधक संजीव आनंद दो दिन बाद जुलाई माह में रिटायर हो रहे हैं। शिकायत में मामले की निष्पक्ष जांच कराने और दोबारा आमंत्रित निविदा पर रोक लगाने की मांग की गई है। साथ ही यह भी कहा गया है कि- शिकायत के संबंध में जल्द निर्णय नहीं लिया गया तो ठेकेदार उच्च न्यायालय की शरण में जाने के लिए बाध्य होगा।

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