सूत्र पटल@सरिता सिंह

प्रस्तुति- विजय सिंह

कोतरी मछली


सुबह-सुबह
दलपत सागर में
जाल बिछाये मछुआरे,
मोल करने आए,
लोग और सुखमति
सुखमति मोल करती है
और खरीदती एक टोकरी
कोतरी मछली
तलाब में खंगार कर
और चमकदार बना रही है
मछलियों को
टोकनी को बोह
निकल पड़ेगी
गली मोहल्लों और घरों में पहुंचकर
हाका लगायेगी ,
चमकती कोतरी को
भरपूर पानी का छींटा मार
सरई के पत्तों में
50- 50 रुपए का भाग बनायेगी ,
यह वह व्यवस्था है जहां मोल -तोल
में विश्वासों का बांट होता है
यह भी वह समय है
जब बारिश में गदराती मछलियां
स्वाद का सैलाब लाती हैं।
और
सुखमति ,कोतरी मछलियों की आंखों में
जीवन का आश्वासन देखती है!
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समय की आवाज
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यह समय कहता है
चुप रहो
बिना बोले
सुनो
सदाओ को
सुनो
उन हवाओं को
जो सरसरा कर ठिठकती है
पत्थरों को तोड़कर सुनो उसकी आवाज
कितने ,
हौले से दरक रही है मिट्टी
चुग कर जाती चिड़िया
को देखो,
कैसे समेट ली है पंखो को
तितलियां कहा गई इन दिनों
आसमान भी पूछता है,
यह वह समय है
जब बात – बात पर
हिल उठते हैं वृक्ष
हां ये,
गुमसुम समय की आवाज है।

अरुण
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