लाँक डाउन पीरियड में हमारे कवि: विजयसिंह

प्रस्तुति- गेंदलाल शुक्ल

लाँक डाउन पीरियड में हमारे कवि : विजय सिंह

लेखक- राजेन्द्र शर्मा, नई दिल्ली

जगदलपुर में रहते है कवि विजय सिंह , जो मूल रूप से रंगकर्मी है पर बस्तर जैसे क्षेत्र में 1989- 90 से ‘ इप्टा’ से रंगकर्म की शुरुआत कर फिर सूत्र संस्था के माध्यम से एक सांस्कृतिक
आन्दोलन खड़ा करने के लिये विजय सिंह की सराहना की जाती है । इस क्रम में अभी तक तीन – चार दर्जनों से अधिक नाटकों में अभिनय – निर्देशन ! जगदलपुर दूरदर्शन के लिए टेली फिल्म “ खेल खेल में पाठ पढ़ें “ का निर्माण ,अभिनय – निर्देशन ।छत्तीसगढ़ के कई नगरों में ‘ बाल रंग शिविर ‘ का निर्देशन – संचालन! जगदलपुर में नियमित बाल रंगकर्म भी विजय सिंह ने किया है ।
इसके साथ ही विजय सिंह कवितायें भी एक लंबे समय से लिख रहे है, जो देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्थान पाती रही है ।
वर्ष 2009 में पहला कविता संग्रह ” बंद टाकीज़ ” प्रकाशित ! सन् 89 में सर्वनाम ( दिल्ली ) साहित्यिक पत्रिका द्वारा ‘ विजय सिंह केन्द्रित अंक प्रकाशित !
संपादित ग्रंथ – छतीसगढ़ की प्रतिनिधि कविता संग्रह ” पूरी रंगत के साथ ” व साहित्यिक पत्रिका ‘ सूत्र ‘ का संपादन प्रकाशन विजय सिंह ने किया है।

इस संकटकाल में कवि विजय सिंह अपने अधूरे पड़े उपन्यास को पूरा करने में लगे है । ज्ञातव्य है कि जगदलपुर के एक मोहल्ले हिकमीपुरा के नाम को ही उपन्यास का नाम दिया गया है, ज़ाहिर है उपन्यास जगदलपुर पर ही फ़ोकस होगा ।एक कविता संग्रह तैयार कर लिया है । लखनऊ के प्रकाशक से बात हो गयी है, बस पांडुलिपि भेजने का काम शेष है जो लाँक डाउन समाप्त होने पर ही संभव होगा ।इंटरनेट मोबाईल के इस दौर में चिट्टियों लिखने का चलन ही समाप्त हो गया है परंतु समय ऐसा भी था कि पोस्टकार्ड , अन्तदेशीय पत्र न मिले तो जान सूख जाती था ।यही संवाद की कड़ी होते थे । कवि विजय सिंह ने उस दौर में बड़े साहित्यकारों को , अपने मित्रों को जो पत्र लिखे तथा उसके प्रतिउत्तर में जो जबाब पोस्टकार्ड या अंतरदेशीय प्राप्त हुए थे ,उन सभी को संकट के इन दिनों में ढूँढा , पढ़ा और पढ़ते पढ़ते ख्याल आया कि इन पर किताब तैयार की जायें । कवि विजय सिंह इस काम में जुटे है । अधिकांश समय घर में लिखने -पढ़ने और संगीत सुनने के साथ ही कवि विजय सिंह ‘ सूत्र ‘ के साथ जगदलपुर के कुछ जरूरतमंद लोगों को समय समय पर राशन – भोजन सामग्री भी उपलब्ध करा रहे हैं !

संकट के इस समय में कवि विजय सिंह की जन मानस को गुज़ारिश है कि “करोना इस विकट समय में मेरा कहना है कि हम सब घर में ही रहें, घर से बाहर नहीं निकलें! शासन – प्रशासन का सहयोग इस समय बहुत जरूरी है! इस विपरित समय में जब एक – दूसरे से एकदम से कट गयें हैं। तब एक दूसरे के ऊपर विश्वास और प्रेम बनाये रखना बहुत जरूरी है! साथ ही अपनी रूचि, अपनी संभावनाओं के अनुसार ठोस कार्य करते हुए इस समय को और जीवंत बनाना चाहिए ताकी कल हमें यह अफसोस न हो कि हमने इस बेजार समय को और बेजार कर दिया…..”
यहाँ प्रस्तुत है कवि विजय सिंह की तीन कवितायें -क

(1) पक रहा है जंगल
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अप्रैल का महीना लौट रहा है
जंगल में
और
सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट में
रच रही हैं चीटियाँ अपना समय

तपते समय में
उदास नहीं हैं
जंगल के पेड़

उमस मे खिल रही हैं
जंगल की हरी पत्तियां
पेड़ की शाखाओं में
आ रहे हैं फूल

आम अभी पूरा पका नहीं है
चार – तेन्दू पक कर कर रहे हैं इंतजार

पक रहे हैं
जंगल में किस्म – किस्म के फूल पौधे

सावधान !

अभी पक रहा है जंगल!

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(2) मेरी हंसी में जंगल की चमक है

पगडंडी को छूकर एक नदी
बहती है मेरे भीतर

हरे रंग को छूकर मैं वृक्ष होता हूं
फिर जंगल

मेरी जड़ों में खेत का पानी है
और चेहरे में धूसर मिट्टी का ताप

मेरी हँसी में जंगल की चमक है
गांव की अधकच्ची पीली मिट्टी से
लिखा गया है मेरा नाम

मैं जहां रहता हूं
उस मिट्टी को छूता हूँ
मेरे पास गांव है, पहाड़, पगडंडी
और नदी – नाले
और यहां बसने वाले असंख्य जन
इनके जीवन से रचता है मेरा संसार

यहां कुछ दिनों से
बह रही है तेज – तेज हवा
कि हवा में
खड़क – खड़क कर चटक रही हैं
सूखी पत्तियां

मैं हैरान हूं
शांत जंगल को
नये रूप में देखकर!

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(3) डोकरी फूलो

धूप हो या बरसात
ठण्ड हो या लू
मुड़ में टुकनी उठाये
नंगे पांव आती है
दूर गांव से शहर
दोना – पत्तल बेचने वाली
डोकरी फूलो

डोकरी फूलो को
जब भी देखता हूँ
देखता हूँ उसके चेहरे में
खिलता है जंगल

डोकरी फूलो
बोलती है
बोलता है जंगल

डोकरी फूलो
हँसती है
हँसता है जंगल

क्या आपकी तरफ
एेसी डोकरी फूलो है
जिसके नंगे पांव को छूकर, जंगल
आपकी देहरी को
हरा – भरा कर देता है

हमारे यहां
एक नहीं अनेक एेसी
डोकरी फूलो हैं
जिनकी मेहनत से
हमारा जीवन
हरा – भरा रहता है!
————————————— दिल्ली के लेखक श्री राजेंद्र शर्मा के फेसबुक से साभार ….

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