रामराज्य के बजाए हिंदू राष्ट्र की है हमारी अवधारणा: निश्चलानंद
कोरबा 12 अप्रैल। भारत में आरक्षण का आधार सनातन धर्म व दुव्र्यसन मुक्त होना चाहिए। महिला को राष्ट्रपति कहने से मातृशक्ति का विलोप होता है, इसलिए राष्ट्र अध्यक्ष शब्द से संबोधन किया जाना चाहिए। रामराज्य के बजाए हमारी अवधारणा हिंदू राष्ट्र की है।
यह बात गोवर्धन मठपुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद महराज ने राजेंद्र प्रसाद नगर दशहरा मैदान में आयोजित धर्मसभा के दौरान कही। उन्होने गलत नेतृत्व करने वाले नेताओं पर प्रहार करते हुए कहा कि नेता का उलटा ताने होता है। चुनाव के समय नेता मिन्नाते करते हैं और जीत जाने कर लोगों को ताने कसते हैं। नेता शब्दभेदी बाण मारने में कही से चूक नहीं करते। श्रमजीवी-बुद्धजीवी, वर्ण.संवर्ण, आदिवासी.आगंतुक आदि शब्द इन्ही की देन है। हमें ऐसे नेताओं का नेतृत्व नहीं चाहिए। उन्होने सनातन धर्मावलंबी हिंदुओं को संबोतिधत करते हुए कहा कि 80 प्रतिशत समस्याओं का निदान स्वयं करें। आर्थिक, सामाजिक, नैतिक विकास कार्यो के लिए प्रत्येक हिंदू के घर से एक रूपये का सहयोग राशि आना चाहिए। हमे सनातनी सार्थक जीवन की ओर अग्रसर होना होगा। सूर्य को जल देना, अग्नि की पूजा करना हमारी जीवन की दिनचर्या में शामिल होना चाहिए। प्रत्येक मुसलमान पांच समय नामाज पढ़ते है। इसी तरह हिंदूओं को दिन भर में सवा घंटे भजन व भगवान के नाम जपन के लिए निकालना होगा। वर्ण व्यस्था के अनुसार प्राचीन समय में सभी बराबर थे। वर्तमान में जिन्हे अनुसूचित जाति कहा जाता है वे भी हिंदू धर्म में राजा की तरह जीवन जीते थे। उदाहरण देते हुए उन्होने कहा कि डोम अंत्यद राजा था, तभी तो उसने धन देकर राजा हरिश्चंद्र को खरीदा था।
धर्मसभा में उद्बोधन के दौरान उन्होने हिंदू धर्मावलंबियों को वेद में कहीं गई अवधारणाओं के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने आरक्षण के विष का जो बीज बोया था, उसे नवयुवक झेल रहे हैं। इससे प्रतिभा का विनाश हुआ है। हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के बारे में उन्होने कहा कि जिस समय रामराज्य था उस समय केवल हिंदू ही थे, इस वजह से हिंदू राष्ट्र की अवधारण ही सही है। इससे पहले उन्होने रामजानकी मंदिर में आयोजित दीक्षा व संगोष्ठी कार्यक्रम में सनातनी धर्मावलंबियों को संबोधित किया। इस अवसर पर खासी संख्या में हिंदू संगठन से जुड़े धर्मावलंबी उपस्थित थे।