सूखे पड़े मुड़ापार तालाब का हो रहा दुरूपयोग
जल संरक्षण के दावों की खुली पोल
कोरबा 15 मई। शहरी क्षेत्र में रामसागरपारा और संजय नगर लक्ष्मणबन इलाके के कई पुराने तालाबों को पाटने के साथ मिटा दिया गया। उनके व्यवसायिक उपयोग को लेकर काफी समय से खबरें आती रही हैं। इधर इस गर्मी में शारदा विहार वार्ड के अंतर्गत आने वाले मुड़ापार तालाब का हाल बेहाल है जहां एक बूंद पानी नहीं है। यह स्थिति तब है जब राज्य सरकार की सरोवर-धरोहर योजना के अंतर्गत इसका कायाकल्प कराया गया और कई प्रकार के काम भी कराए गए।
डेढ़ दशक पहले नगर निगम की ओर से सरोवर-धरोहर योजना का क्रियान्वयन शहरी क्षेत्र में कराया गया था। इस दौरान अकेले मुड़ापार तालाब की साफ-सफाई से लेकर गहरीकरण आदि कार्यों पर दो करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई थी। योजना के अंतर्गत इसके चारों तरफ घेराबंदी कराई गई और स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था की गई। बाद के वर्षों में इसी तालाब को संवारने के लिए फिर से राशि का प्रावधान किया गया। इतना सबकुछ होने पर लोगों ने देखा कि बारिश से लेकर ठंड के मौसम तक ही तालाब में पानी की उपस्थिति बनी रही और इसके बाद यह तालाब डबरी में तब्दील हो गया। कई वर्षों तक गर्मी के मौसम में इस प्रकार के नजारे यहां देखने को मिलते रहे। इस वर्ष स्थिति बिल्कुल अलग है। तीन एकड़ से ज्यादा क्षेत्रफल से पहले तालाब का अवलोकन करने पर पता चला कि पूरे इलाके में कहीं भी पानी नहीं है और ऐसे में अब इसके एक हिस्से में निवासरत स्लम इलाके के लोग इसका उपयोग शौच के लिए तब कर रहे हैं जब स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शहर को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है। बताया गया कि सुबह और शाम ढलने के बाद तालाब के कई हिस्सों में इसी प्रकार के नजारे देखने को मिलते हैं।
कार्तिक महीने में पूर्वांचल की बड़ी संख्या छठ त्योहार के दौरान मुड़ापार तालाब में उपस्थिति दर्ज करती है। सुबह और शाम को अर्घ्य देने के लिए श्रद्धालुओं के अलावा दर्शक यहां पहुंचते हैं। बीते कई वर्षों से यह सिलसिला जारी है। धार्मिक और दूसरे कारणों से भी इस तालाब की उपयोगिता होती रही है। फिलहाल तालाब के सूख जाने के कारण ऐसे कार्यों के लिए लोगों को दूसरे विकल्प अपनाने पड़ रहे हैं। वर्षा जल संचय के साथ-साथ जल स्त्रोतों को हर हाल में बेहतर और मजबूत बनाए रखने के लिए सरकारी एजेंसियां और उनके लिए काम करने वाला सिस्टम लगातार कई प्रकार का दावा करता रहा है। इसी बात को लेकर जागरूकता संबंधी कार्यक्रम के नाम पर भी बजट फूंका जा रहा है। इसके बावजूद छोटे-बड़े तालाबों का गर्मी में पूरी तरह से सूख जाना योजना के दावों की हवा गुल करता है।