संस्कार जनित व्यवस्था की सबसे अधिक आवश्यकता: डॉ राजीव

कोरबा 12 जुलाई। आज के दौर में समाज में कई प्रकार की विकृतियां उपस्थित हैं और इससे मानव के स्वभाव का पता चलता है। साथ ही लोग समझ पाते हैं कि संबंधितों का वातावरण किस तरह का हो सकता है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि प्रारंभिक दौर से संस्कारजनित व्यवस्था पर काम किया जाए।

आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ.राजीव गुप्ता ने आज शारदा विहार में युवाओं के साथ संवाद के अंतर्गत यह बात कहीं। उन्होंने उदाहरण के साथ इसे स्पष्ट किया और यह भी बताया कि इस तरह की तस्वीरें किसी एक हिस्से तक सीमित नहीं है। इनका दायरा अपरिमित है। उन्होंने कहा कि बच्चों को बेहतर संस्कार देने के लिए एक से डेढ़ वर्ष का कालखंड सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इस दौर में आप जैसा चाहेंगे, वैसा बच्चे को बना सकेंगे। बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने कुम्हारों के द्वारा बनाए जाने वाले मृदा पात्रों को रेखांकित किया है। आयुर्वेद में विशेष शोध कर चुके डॉण् गुप्ता ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के भ्रमण के दौरान वहां के अध्ययन के आधार पर बातचीत के क्रम में बताया कि मानव स्वभाव में बहुत सारी विविधताएं हैं। कहीं पर ये हमें खुश करती है तो कहीं आवेश में डालती है तो किसी और जगह परेशान भी करती है। इसके लिए अलग-अलग कारण और कुल मिलाकर वह परिवेश जिम्मेदार हुआ करता है, जहां पर व्यक्ति की उपस्थिति शुरूआती दौर से होती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तिगत रूप से खुद को अच्छा बनाने के साथ परिवार और समाज और देश के हित में अपनी श्रेष्ठतम भूमिका का निर्वहन कैसे होए इस दिशा में सभी गंभीरता के साथ मंथन करना होगा।

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