नन्दकुमार साय ने कहा- भाजपा को बाय-बाय, कांग्रेस से मिलाया हाथ …!
रायपुर 2 मई। भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेता रहे नंदकुमार साय ने मजदूर दिवस 1 मई 2023 के दिन पार्टी को अलविदा कहते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया। पार्टी बदलने के फैसले को महत्वपूर्ण बताते हुए साय ने कहा कि अब भाजपा अटल बिहारी बाजपेयी के दौर की पार्टी नहीं रही। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय राजीव भवन में एक समारोह में साय ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साय को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आदिवासी नेता साय के आने से पार्टी के नेता गदगद हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साय को आदिवासियों और गरीबों के लिए संघर्ष करने वाला नेता बताया। वहीं साय ने कहा कि यह निर्णय उनके लिए जीवन का बहुत कठिन निर्णय है। जनसंघ के समय से वे और उनका परिवार भाजपा में रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोगों के साथ उन्होंने काम किया है और अटल जी को फॉलो करते रहे हैं।
नंदकुमार साय तीन बार विधायक, तीन बार लोकसभा सदस्य और एक बार राज्यसभा सदस्य तो रहे हैं। साथ ही अविभाजित मध्यप्रदेश की भाजपा इकाई के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्होंने कहा अटल-आडवाणी के दौर में जो भाजपा थी आज उस रूप में पार्टी नहीं है। परिस्थितियां बदल चुकी हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि हम कहते थे देश से हमारा नाता है। गाय हमारी माता है, मगर भूपेश बघेल ने इसे एक नया रूप दिया है। नरवा, गरवा, घुरवा, बारी योजना जनता के लिए कारगर साबित हुई है। यह भी अच्छा लगता है कि भूपेश बघेल सरकार ने राम गमन पथ को बनाया है। वर्तमान में राज्य में कांग्रेस की सरकार अच्छा काम कर रही है, वाकई में दल का महत्व नहीं है। आम जनता के लिए काम करना है मिलकर काम करेंगे तो छत्तीसगढ़ अच्छा होगा। ज्ञात हो कि नंदकुमार साय ने रविवार को इस्तीफा दे दिया था उसके बाद से उन्हें मनाने का प्रयास लगातार पार्टी की ओर से किए जा रहे थे।भाजपा के कई बड़े नेता उनके आवास पर भी गए मगर उनसे बातचीत नहीं हुई।
आपको बता दें कि 30 अप्रैल 2023 को छत्तीसगढ़ प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेता रहे नंद कुमार साय ने कमल का दामन छोड़ दिया। दशकों तक भारतीय जनता पार्टी की राजनीति करने वाले नंदकुमार साय मोदी सरकार में अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के चेयरमैन भी रहे तथा उनका अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से राजनीति में काफी प्रभाव देखा जाता था। भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय को कौन नहीं जानता? छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से लेकर अब तक नंदकुमार साय हमेशा से सियासी सुर्ख़ियों में बने रहे हैं। अपनी बेबाकी और अलग अंदाज के लिए पहचान बनाने वाले नंदकुमार हमेशा से विपक्षी नेताओं के लिए चुनौती पेश करते रहे है।
राजनीति में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी रहने वाले नेताओ में शुमार थे छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी। हालांकि ऐसा नहीं हैं कि वह प्रतिद्वंदियों के लिए ही मुश्किल खड़ा करते रहे हैं। नंदकुमार की पहचान एक बगावती नेता के रूप में रही। उनके बगावती तेवर की चर्चा इसलिए क्योंकि अक्सर वो अपनी ही पार्टी भाजपा और उनके नेताओं के खिलाफ भी आवाज उठाते रहे हैं। राज्य निर्माण के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में वह मुख्यमंत्री के दावेदार भी रहे लेकिन तकदीर ने उनका साथ नहीं दिया। शायद नंदकुमार को हमेशा से इस बात की टीस भी रही। बहरहाल आज हम जानेंगे नंदकुमार साय के बारे में कुछ ऐसी बातें जिससे आज भी लोग अंजान हैं। नंदकुमार साय के इस्तीफे के बाद प्रदेश भाजपा कार्यालय में बीजेपी के दिग्गज नेता डॉ. रमन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, संगठन महामंत्री पवन साय समेत कई नेता पहुंचे।
नंद कुमार साय का जन्म मौजूदा जशपुर जिले के भगोरा में किसान परिवार में 1 जनवरी 1946 को हुआ था। नंदकुमार का झुकाव हमेशा से साहित्य की तरफ रहा। हिंदी लेखन, पठन में उनकी विशेष रूचि रही हैं। नंदकुमार साय उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने मुख्य धारा की सियासत से पहले छात्र राजनीति की और इसी के जरिये वह आदिवासियों के बड़े नेता भी बने। बताया जाता हैं कि कॉलेज के दिनों में नंदकुमार साय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी की तैयारी की और 1973 में नायब तहसीलदार के पद पर चयनित भी हुए लेकिन नौकरी पर नहीं गए। इसकी जगह उन्होंने समाज सेवा के जरिए राजनीति में जाना चुना। 1977 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते। 1985 दूसरी बार और तीसरी बार 1998 में विधानसभा चुनाव जीते।
नंदकुमार साय केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गए थे तथा नंदकुमार साय 1989 में लोकसभा सांसद बने और 1996 में दूसरी बार और 2004 में राज्य गठन के बाद तीसरी बार लोकसभा सांसद बने। इसके बाद नंदकुमार साय का सियासी सफर आगे बढ़ा और 2009 में राज्यसभा के सांसद के लिए चुने गए। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नंदकुमार साय को 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। यह नंदकुमार के राजनीतिक जीवन का नया उभार था क्योंकि राज्य की राजनीति में अब वह उतने प्रासंगिक नहीं रह गए थे, इन सबके अलावा नंदकुमार अविभाजित मध्यप्रदेश में भी भाजपा के कई बड़े पदों पर रहे। 1996 में मध्यप्रदेश अनुसूचित जनजाति के प्रदेश अध्यक्ष बने। इसके बाद पार्टी ने 1997 से 2000 के बीच मध्यप्रदेश बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंपी गई। यह पार्टी के भीतर उनके कद का ही कमाल था कि 2000 में जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से अलग हुआ तो नंदकुमार साय राज्य के विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता भी बने।
यहां उल्लेखनीय है कि 2023 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले छत्तीसगढ़ प्रदेश में एक बड़े आदिवासी नेता का भाजपा छोड़ना कहीं न कहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए असहज स्थिती बनाती है। छत्तीसगढ़ में जहां आदिवासी वर्ग को लेकर शुरू से ही राजनीति गर्म रही है, एक दिग्गज आदिवासी नेता का पार्टी छोड़ना आगे भारतीय जनता पार्टी के लिए क्या राजनीतिक परिस्थितियां निर्मित करेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।