फर्जी दस्तावेजों के सहारे 13 साल तक शिक्षाकर्मी की नौकरी करने वालों पर शिक्षा विभाग मेहरबान

कोरबा 1 जुलाई। फर्जी दस्तावेजों (अंकसूची) के सहारे 13 साल तक शिक्षाकर्मी की नोकरी करने वालों पर शिक्षा विभाग मेहरबान है। 3 जालसाजों पर कानूनी कार्यवाई करने बर्खास्तगी के 7 माह बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं कराई जा सकी जिससे डीईओ कार्यालय के कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

यहाँ बताना होगा कि जिले में सन 2006 -07 में पँचायत विभाग द्वारा की गई शिक्षाकर्मी की सीधी भर्ती में जिले के कोरबा ब्लॉक में 3 अभ्यर्थियों धीरेंद्र धिरहे ,कंचन भारद्वाज एवं सुनीता महिलांगे ने नियुक्तिकर्ता संस्था मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत कोरबा एवं चयन कमेटी को गुमराह कर फर्जी अंकसूची प्रस्तुत कर शिक्षाकर्मी वर्ग -3 की नोकरी हासिल कर ली । शासकीय प्राथमिक शाला ऐलोंग में धिरेन्द्र धिरहि ,शासकीय प्राथमिक शाला भांठापारा में श्रीमती सुनीता महिलांगे एवं प्राथमिक शाला खोड्डल में कंचन भारद्वाज सहायक शिक्षक पंचायत (शिक्षाकर्मी वर्ग -3)के पद पर पदस्थ किए गए। करीब 13 सालों तक इन जालसाजों ने शासन प्रशासन को धोखे में रखकर शिक्षक के एक सम्मानित पद पर सेवाएं दी। योग्य अभ्यर्थियों के हक को छीनकर न केवल ये एक शिक्षक के रूप में कार्य करते रहे वरन लाखों रुपए का वेतन एवं अन्य स्वत्वों का लाभ भी लेते रहे। इस दौरान 2019 में वो 8 साल की सेवा अवधि पूरी करने पर संविलियन का लाभ प्राप्त कर शिक्षक एलबी बन गए। इन तीनों जालसाजों के कारनामों का खुलासा शहर के एक आरटीआई कार्यकर्ता की शिकायत के बाद दस्तावेजों की हुई जांच के बाद हुआ। जांच कमेटी ने परीक्षण के दौरान यह पाया कि शिक्षकों के द्वारा अपने सेवा पुस्तिका में संलग्न हायर सेकेंडरी (12वीं) के सर्टिफिकेट एवं माध्यमिक शिक्षा मंडल के द्वारा जारी वेबसाईट से प्राप्त हायर सेकेंडरी के सर्टिफिकेट की अंकसूची में भिन्नता पाई गई थी। शिक्षकों ने फर्जी अंकसूची में अंकों को बढ़ाकर शासकीय नोकरी हासिल की थी। 11 जून 2019 को दिए गए अभिमत के बाद फर्जी शिक्षकों को 23 नवंबर 2019 को डी ई ओ ने नियमानुसार विभागीय जांच संस्थित करते हुए निलंबित कर दिया था। साथ ही 3 सदस्ययीय जाँच दल के प्रतिवेदन एवं आरोप दोष सिद्ध होने के बाद 1 दिसंबर 2020 को तीनों फर्जी शिक्षकों को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा में निहित प्रावधान अनुसार सेवा से पृथक (बर्खास्त)कर दिया था। लेकिन इसके लगभग 7 माह बाद भी आज पर्यन्त 420 कर शासकीय सेवा हासिल करने वाले शिक्षकों से न तो वेतन सहित विभिन्न स्वत्वों की रिकवरी की गई न पुलिस में इनके विरुद्ध प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कराई गई, जिससे शिक्षा विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।

इस तरह कूटरचित अंकसूची प्रस्तुत किया

तीनों सहायक शिक्षकों ने कूटरचित अंकसूची सेवा पुस्तिका में संलग्न किया था। कंचन भारद्वाज की सेवा पुस्तिका में संलग्न सर्टिफिकेट में प्राप्तांक 363/500 था जबकि माध्यमिक शिक्षा मंडल की वेबसाईट से प्राप्त सर्टिफिकेट में प्राप्तांक में 261/ 500 अंक दर्ज था। धीरेंद्र कुमार धिरहे की सेवा पुस्तिका में संलग्न सर्टिफिकेट में 402/500 तो माध्यमिक शिक्षा मंडल के वेबसाईट में प्राप्त सर्टिफिकेट में 225/500 प्राप्तांक दर्ज था। इसी तरह सुनीता महिलांगे ( लहरे ) की सेवा पुस्तिका में 392/500 तो माध्यमिक शिक्षा मंडल की वेबसाईट में 228 /500 प्राप्तांक दर्ज था।

तो क्या अधिकारी थे वाकिफ ,सभी की जांच जरूरी

जिस तरह 3 शिक्षकों ने फर्जी अंकसूची के जरिए 13 साल नोकरी कर ली, लाखों रुपए वेतन के तौर पर ले लिए और पँचायत व शिक्षा विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी यह हैरान करने वाला है। सूत्रों की मानें तो नियुक्तिकर्ता पँचायत विभाग से लेकर शिक्षा विभाग इससे वाकिफ थे। इनकी संरक्षण पर ही ये इतने लंबे वर्षों तक नोकरी में रहे। बताया जा रहा है इनके अलावा और भी शिक्षक हैं जो फर्जी दस्तावेजों (अंकसूची अन्य प्रमाणपत्र )के सहारे नोकरी कर रहे हैं। कई दिव्यांग शिक्षक भी फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे सेवाओं में हैं, जिनके प्रमाणपत्रों के जांच की नितांत आवश्यकता है।

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