चांद के सहारे कप्तान और बस लहर का सहारा

न्यूज एक्शन। चुनाव में नाम, काम और दाम की महिमा अपरमपार है। जिसे नाम, काम और दाम का सहारा मिल जाए उसकी चुनावी नैय्या पार लगने की संभावना बढ़ जाती है। मगर कोरबा लोकसभा सीट पर एक प्रत्याशी के लिए नाम, काम और दाम का झमेला बढ़ चुका है। उसे तो केवल सत्ता के केंद्र बिंदु में बैठे लहर पर ही भरोसा रह गया है। इसी लहर के बूते चुनावी समुंदर में गोते खाते उसकी नैय्या को पार लगने का आसरा है। बाकी नाम, काम और दाम का गणित तो उसे समझ ही नहीं आ पा रहा है। सारे ग्रह सितारे उसके विपरीत नजर आ रहे हैं। बस एक चांद ही है जो उसे सहारा लग रहा है। करवा चौथ में जैसे सुहागिनों को चांद के दीदार का इंतजार होता है। उसे देखकर वरदान मांगती हैं। ठीक वैसे ही यह चांद भी कप्तान को ऐसा ही लग रहा है। अगर चांद पर आस्था सही रही तो व्रत पूरा, नहीं तो बंटाधार। नाम की बात करें तो बड़े नेता के हमनाम का खतरा वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में है। काम की बात करे तो हालात ठीक नहीं है। गत चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी को इस नहीं हुए काम का खामियाजा भुगतना पड़ चुका है। रही बात दाम की तो उसके दल के ही नेता चुनावी प्रचार की खर्चे को दबा न दे इसकी भी टेंशन बनी है। कप्तान चुनावी पिच पर अकेला नजर आ रहा है। दूर-दूर तक उसे कोई अपना नजर नहीं आ रहा है। उसका यही अकेलापन विरोधी खेमे में खुशी की लहर का कारण बना हुआ है।

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