रिश्ते सुधरने से पहले आई दरार, भारत की दो टूक: लद्दाख में चीन का गैरकानूनी कब्जा बर्दाश्त नहीं

नईदिल्ली 04 जनवरी । पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अक्टूबर, 2024 में ही हुई मुलाकात में भारत व चीन के रिश्तों को पटरी पर लाने की सहमति बनी और तीन महीने भी नहीं हुए इस सहमति के दरकने के संकेत मिलने लगे हैं।पहले चीन की तरफ से अपने क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र के निर्गम स्थल पर 137 अरब डॉलर की लागत से एक विशाल बांध बनाने की घोषणा की और फिर भारत के क्षेत्र लद्दाख से जुड़े पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा जमाये होतान प्रांत में दो नये राज्य बनाने की घोषणा कर दी।

भारत ने इन दोनों घोषणाओं पर कड़ी आपत्ति जताते हुए साफ कह दिया है कि लद्दाख के किसी हिस्से पर चीन का गैरकानूनी कब्जा बर्दाश्त नहीं है। वैसे इस जमीन पर चीन का कब्जा तकरीबन छह दशकों से है। इसके साथ ही सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना के लिए बांध बनाने की योजना को लेकर भारत ने कड़े शब्दों मे निंदा की है और कहा है कि उसके पास अपने हितों की रक्षा के लिए उपयुक्त कदम उठाने का अधिकार है। अक्टूबर में भारत चीन के शीर्ष नेताओं के बीच मुलाकात, उसके बाद विदेश मंत्रियों और सीमा विवाद सुलझाने के लिए गठित विशेष प्रतिनिधियों के बीच की बैठक से यह संकेत मिले थे कि दोनों देशों के बीच रिश्तों को सुधारने की प्रक्रिया फिर से शुरू होगी।

अब देखना होगा कि चीन की तरफ से उकसावे भरे कदम उठाने के बाद भारत इस पर सिर्फ प्रतिक्रिया जता कर ही रह जाता है या इस बारे में अपनी कोई स्पष्ट रणनीति भी बनाता है।हालांकि जानकारों का कहना है कि चीन की तरफ से उठाये जाने वाला कदम उकसावे वाला था और भारत ने वैसी ही प्रतिक्रिया दी है। इसका रिश्तों पर सुधारने को लेकर उठाये जाने वाले कदमों पर शायद ही कोई असर हो। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने चीन की पनबिजली परियोजना की घोषणा को लेकर कहा, हमने चीन की समाचार एजेंसी में एक रिपोर्ट देखी है कि तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र में स्थित यार्लुंग त्सांगपो नदी पर एक पनबिजली परियोजना लगाई जाएगी। इस नदी के तट पर स्थित देश होने की वजह से भारत का भी इस पर अधिकार है और कई स्तरों पर इस मुद्दे को चीन के समक्ष उठाया है। उन्होंने कहा, हमने विशेषज्ञ दलों के माध्यम से और राजनयिक स्तर पर भी अपनी चिंताओं को लगातार व्यक्त किया है। अब जो नई रिपोर्ट आई है, उसके बाद इस बारे में डाउनस्ट्रीम के देशों के साथ ज्यादा पारदर्शिता व विमर्श की जरूरत है। चीन से यह आग्रह किया गया है कि वह सुनिश्चित करे कि उसकी गतिविधियों से डाउनस्ट्रीम देशों (भारत, बांग्लादेश) के हित प्रभावित नहीं हो। हम इस पर लगातार नजर बना कर रखेंगे और अपने हितों की रक्षा के लिए जो भी जरूरी होगा वह उपाय करेंगे।

जायसवाल से जब चीन की तरफ से अक्साई चीन इलाके (इस पर भारत का लद्दाख का हिस्सा होने का ऐतिहासिक दावा) में दो नये प्रांत बनाने के फैसले के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि जिस होतान (चीन की तरफ से दिया गया नाम) प्रांत में दो नये प्रांत बनाने का फैसला किया गया है, वह तथाकथित हिस्सा भारत के लद्दाख का हिस्सा है। हमने इस क्षेत्र में चीन के किसी भी गैरकानूनी कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में दो नये प्रांत बनाने के फैसले से भारत के पारंपरिक रूख पर कोई असर नहीं होगा। यह भारत के संप्रभु क्षेत्र पर चीन की तरफ से गैरकानूनी व जबरदस्ती से किया गया कब्जा है। हमने राजनयिक तरीके से अपनी गंभीर प्रतिक्रिया जता दी है। सनद रहे कि चीन ने अक्साई चीन के करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर पर कब्जा जमा रखा है।

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