प्रस्तुति- लक्ष्मीकांत मुकुल

बंद टाकीज़
+++++++

मेरे घर के सामने
बंद टाकीज है
जिसे देख रहा हूं बरसों से
मुहल्ले में सबसे बीच
लेकिन एकदम अकेला-अलगाया हुआ

अक्सर रात गए
कमरे में बैठकर
लिखता हूं कविताएं
खिड़की से देखता हूं
टाकीज को एकटक ताकते
तब बेचैन हो जाता हूं
लिखता हूं अपना पता, विजय सिंह
बंद टाकीज के सामने, जगदलपुर

अक्सर देखता हूं
रात गए टाकीज के सामने
बब्बू खाॅं के रिक्शे ऊंघते हैं

हमेशा आधी रात में
जब गोरखा चैकीदार लाठी
की टक-टक के साथ
टाकीज के सामने से गुजरता है
तब बूढ़ा खान बाबा अपनी झोलंगी खाट से
नींद में उठता है और टाकीज की तरफ मुंह
करके पेशाब करता है

रात-रात भर
शहर की आवारा पशुऐं
टाकीज की दीवार के पास
गोबर-पेशाब कर सूरज उगने से पहले
चल देते हैं उधर
जिधर हरी-हरी घास है

दिन के उजाले में
मुहल्ले के बच्चे
टाकीज के सिरहाने
कंची-पीठू का खेल-खेलकर
हंसते’रोते चल जाते हैं घर

टाकीज की खामोशी में
रफीक मिंयां ताज काॅटन सेंटर वाले
सिलते जाते हैं, गुदड़िया-गद्दे
धुनते जाते हैं रूई

टाकीज से चिपकी सड़क पर
दौड़ती हैं दिन भर
किस्म-किस्म की गाड़ियाॅं
गुजरते-चलते हैं
शहर के पुराने-नये लोग
स्कूल जाते बच्चे, काॅलेज जाती खिलखिलाती लड़कियाॅं
दफ्तर जाते बाबू, साहब, चपरासी
और यहीं से गुजरता है
हर रोज नशे में झूमता-बड़बड़ाता
सामंत गली का सामंत मंदहा
लेकिन टाकीज की ओर कोई नहीं देखता

बंद टाकीज का
शहर से कोई रिश्ता है या नहीं
यह मैं नहीं जानता
पर मैं जानता हूंॅ
बंद टाकीज अब भी शहर में है

यहां कोई मूंगफली वाला खड़ा होता है
न चाय-पान दुकान वाला
न मनचले लड़कों का झुंड
हाँ, टाकीज के सामने सांई किराना दुकान वाला
अपनी दुकान जरूर खोल कर रखता है
यहाॅं रोज के ग्राहक खड़े होते हैं
और कभी-कभी

टाकीज की ओर मुॅंह उठाकर पूॅंछते हैं
यह बंद टाकीज है क्या?
और जवाब में सांई, आलू-प्याज की
बढ़ी हुई दाम बताता है

टाकीज के सामने सड़क पर
दिन-भर धूल उड़ती है
और मैं बिछी धूल को अपनी पुस्तकों से झाड़ता रहता हूंॅ
देखता हूं टाकीज की रंग पलस्तर उड़ते दीवारों पर
धूल की मोटी परतों को
जिसे कोई साफ नहीं करता, मैं भी नहीं

मेरे लिए टाकीज की दरवाजे पर जड़ा
आदम जमाने का ताला तिलस्म की तरह है
जिसे मैंने आज तक
किसी भी चाबी से खुलते नहीं देखा है

यह सोच मेरे लिए सुखद होता है कि
मैं खुल जा सिमसिम कहूंगा
और टाकीज का दरवाजा
किवदन्तियों की तरह खुल जायेगा

मेरी आॅंखों के सामने
रंग पलस्तर उखड़ते दीवारों में हैं टिकट खिड़की
इस तरह, जिस तरह की
कि अभी आयेगें
सैकड़ों हाथ
और फिर से उसे बाहों में भर लेंगें

वह जगह बिलकुल खाली है
जहाॅं पोस्टर संवाद करती थी आदमियों से
और आदमी को खींचती थी
अपनी ओर
मैं देखता हूं वहां चिड़िया बैठकर पंख पोछती है
और फुदकती है
मुझे खुशी होती है

कि मेरे साथ
चिड़िया भी बंद टाकीज के पास है
टाकीज की जंग लगी मशीन के बारे में सोच-सोच
कर मैं परेशान हो जाता हूं

सोचता हूं क्या
अब भी उसके सपनों में आता होगा
बूढ़ा रम्मू आॅपरेटर
और खाॅंस-खाॅंस कर फिल्म चलाता होगा

कितनी कहाॅनियाॅं थी रम्मू आॅपरेटर
और टाकीज को लेकर
बाबा बताते हैं
बूढ़ा रम्मू था तो टाकीज थी
बूढ़ा रम्मू नहीं है तो टाकीज नहीं है
बताते हैं बाबा
शहर की पहली टाकीज है यह
और याद करते हैं अपने जवानी के दिन
प्रभात था इस टाकीज का नाम
तब शहर में
गिनती के लोग थे
गिनती के मकान थे
गिनती की गाड़ियाॅं थीं
गिनती के रिक्शे थे
गिनती की सड़कें थीं
गिनती की दुकानें थीं
जहाॅं हॅंसते थे लोग
और झूमते थे पेड़

मुझे दुख है तो सिर्फ इस बात का
कि मेरे शहर के लोगों को नहीं मालूम
कि यहां एक बंद टाकीज भी है
लेकिन मुझे खुशी इस बात की है
मेरे पते में मेरे नाम के साथ लिखा जाता है बंद टाकीज
मेरे लिए हमेशा यह कौतूहल का विषय रहा है
कि टाकीज की अंदर की खाली कुर्सियों में
कौन बैठता होगा?
वहां चूहे तो जरूर उछल-कूद करते होंगे
मकड़ियाॅं जाले बुन ठाठ करती होंगी
दीवारों से चिपकी छिपकलियाॅं
क्या जानती हैं बाहरी दुनिया के बारे में
क्या सोचती है बाहरी दुनिया के बारे में
इतने सालों से रूके पंखे
क्या एक जगह खड़े-खड़े उब नहीं गये होंगें?
क्या उनका मन
पृथ्वी की तरह घूमने का नहीं करता होगा?

सोचता हूंॅ
एक दिन
दरवाजे में जड़े तिलस्मी ताले को तोड़कर
घूस जाऊंगा टाकीज के अंदर
और महसूस करूंगा इतने-इतने वर्षों के बाद
आदमी का स्पर्श उसे कैसा सुख देता है

फिर पर्दे को छूऊंगा
क्या अब भी चेहरे उसमें
हॅंसने-रोने के साथ
प्यार कर सकते हैं

फिर एक-एक कर बैठूंगा
धूल से लदी पड़ी कुर्सियों में
क्या महसूस करती हैं कुर्सियां
इतने वर्षों के बाद
आदमी के गंध को पाकर
तब देखूंगा आदमी के बोझ को पाकर
कुर्सियाॅं खिल उठी हैं फूल की तरह
एकाएक चल पड़ेंगें
वर्षों से रूके पंखे
झड़ जायेगी
दीवालों में जमीं धूल की परतें
छुप जायेगी

मकड़ी और छिपकलियाॅं
हंसने लगेंगे चूहे
उड़ने लगेगा दरवाजे पर लगा
आदम जमाने का पुराना परदा
मैं देंखूंगा
आरती के साथ शुरू हो जायेगी
वह फिल्म
जो बरसों से
बंद टाकीज में
रूकी पड़ी है
+++

Spread the word