जिले में धान खरीदीः मात्रा को लेकर समितियों में किसानों के साथ बनी तनातनी

कोरबा 15 दिसम्बर। खरीफ सीजन सत्र 2023-24 में कोरबा जिले में 50912 किसानों के द्वारा 69 हजार 424 हेक्टेयर में धान की फसल की पैदावार ली गई है। विधानसभा चुनाव के वर्ष में धान खरीदी को लेकर राजनीतिक दलों ने जहां अलग-अलग घोषणाएं की वहीं सरकार की नीति कुछ अलग रही। चुनाव के नतीजे आने के साथ धान की खरीदी तेज हुई है। इसके ठीक उल्टे प्रति एकड़ पर खरीदी जाने वाली मात्रा के मामले में विरोधाभाष होने से आए दिन विभिन्न समितियों में किसानों के साथ कर्मियों का विवाद हो रहा है। कहा जा रहा है कि जब तक प्रशासन गिरदावरी रिपोर्ट समितियों को नहीं सौंपता है, तनातनी बनी रहेगी।

नीतिगत रूप से प्रशासन ने खरीदी सीजन से पहले कहा था कि प्रति एकड़ पर किसानों से अधिकतम पैदावार के विरूद्ध केवल 20 क्विंटल धान की मात्रा खरीदी जाएगी। भारत सरकार ने धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 2200 रुपए प्रति एकड़ घोषित किया है। उधर चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों ने किसानों को आकर्षित करने के लिए बढ़ी हुई राशि देने का ऐलान किया। सरकार के शपथ ग्रहण के बाद धान खरीदी का काम कुछ तेज हुआ है। जिले में कुल 65 स्थानों पर खरीदी का काम चल रहा है। खबरों के अनुसार अलग-अलग कारणों से विभिन्न समितियों में किसानों का उपार्जन केंद्र के कर्मचारियों से मात्रा को लेकर विवाद हो रहा है। दरअसल उपार्जन केंद्रों को सरकारी नीति के हिसाब से प्रति एकड़ किसान से 20 क्विंटल धान खरीदना है। उधर किसान इस बात पर अड़े हैं कि छत्तीसगढ़ में नई सरकार बन गई है जिसने प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदने की घोषणा की थी इसलिए हम लोगों से इस अनुपात में खरीदी होना चाहिए। यह तो हुई एक बात। सबसे अलग मसला यह है कि अंदरूनी तौर पर समितियों पर सरकारी तंत्र यह दबाव बना रहा है कि जिन क्षेत्रों में उत्पादन ज्यादा नहीं है वहां कम हिसाब से धान की खरीदी की जाए। ऐसे में नया पेंच फंस गया है और समितियां उलझन में है कि किसानों के द्वारा लायी जाने वाली धान की खरीदी आखिर कैसे न की जाए।

सबसे बड़ी समस्या यही है कि किसानों ने धान की पैदावार की है और उन्हें इसका परिणाम मिला है। ऐसे में कुल मिलाकर उन्हें अपनी उपज उस केंद्र पर बेचना ही है, जहां पंजीकरण कराया गया था। किसान बताते हैं कि सीजन में कृषि रकबे का सत्यापन करने के लिए गिरदावरी का काम पटवारियों के द्वारा कराया गया। उन्होंने निरीक्षण किस तरीके से किया और क्या लिखा, यह स्पष्ट नहीं हुआ है। अब धान उपार्जन समितियों के द्वारा भी यही बात कही जा रही है कि जब तक उनके पास प्रशासन की ओर से गिरदावरी रिपोर्ट नहीं आ जाती, यह कैसे मान लिया जाएगा कि किस इलाके में फसल बहुत कम हुई या नहीं हुई।

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