चुनाव-2023: तेलंगाना @ डॉ. सुधीर सक्सेना
मीर केसीआर और उलझते धागे
कहावत है जो मारे सो मीर। इस नाते तेलंगाना की सियासत में केसीआर यानि कल्वाकुंतला चंद्रशेखर एक मीर हैं। वह आक्रामक और चतुर खिलाड़ी हैं और अपनी चालों से अपने विरोधियों, और बहुधा अपने सहयोगियों तक को हत्प्रभ कर देते हैं। वह पहले कांग्रेस से जुड़े, फिर तेलुगुदेशम से। और फिर उन्होंने अपनी नयी पार्टी बनायी, जिसे हम भारत राष्ट्र समिति के नाम से जानते हैं। तुर्शज़ुबां केसीआर कभी-कभी तल्ख भी हो जाते हैं। इसी के चलते वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सबसे निष्प्रभावी पीएम और राहुल गांधी को विदूषक बता देते हैं। वैसे उनके व्यक्तित्व में कुछ मोहक व रंगीन रेशे भी हैं। साहित्य और कला के ये ऊतक उनके व्यक्तित्व को नया आयाम और नयी पहचान देते हैं। वह रामानुज के वैष्णव-पंथ के अनुयायी है। महात्मा गांधी उनके प्रेरणास्रोत हैं। सन 2015 में उन्होंने घरेलू हिंसा की शिकार प्रत्यूषा को गोद लिया था। वह गीतकार भी हैं। सन 2015 में उन्होंने ‘जय बोलो तेलंगाना’ के गीत लिखे। यह शौक आगे भी बना रहा। तेलंगाना में पांव जमाने को व्यग्र भारतीय जनता पार्टी अर्से से सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण की अथक कोशिशों में लगी हुई है, लेकिन उसका यह दांव काम नहीं आ रहा है। केसीआर ने उर्दू को तेलंगाना में दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया, तो शोर उठा। सचिवालय में मस्जिद बनी तो खूब नुक्ताचीं हुई। अमित शाह आये तो उन्होंने निजामशाही की याद दिलायी। उन्होंने बीजेपी को विजयी बनाने का आह्वान किया, ताकि तेलंगाना-वासियों को सदियों की गुलामी से मुक्ति मिले। जाहिर है कि शाह इलाके में मुस्लिम-वर्चस्व व प्रभुत्व की याद दिलाकर तेलंगाना में धार्मिक भावनायें भड़काना चाहते थे, मगर उसका मनमाफिक असर नहीं हुआ।
तेलंगाना में पांव पसारने की भाजपा की अन्य युक्तियां भी कारगर नहीं हो रही हैं। वस्तुतः केसीआर ने राज्य के दोनों प्रमुख संप्रदायों के मध्य गज़ब का संतुलन बनाकर रखा है। वह मुसलमानों के बीच उन्हीं की टोपी लगाकर जाते हैं और उसी जुबां में बोलते हैं, जो उन्हें भाती है। लेकिन इसे मुद्दा बनाकर छेड़ी गई भाजपा की मुहीम तब बेअसर हो जाती है, जब लोग देखते हैं कि केसीआर और उनके परिजनों का आचरण हिंदू मान्यताओं के अनुरूप है। वह यदाद्रि मंदिर के लिये 1200 करोड़ रुपयों की मदद देते हैं। मंदिरों के जीर्णोद्धार में भी वह पीछे नहीं हैं। वह बथुकम्मा पर्व को राजकीय पर्व घोषित करते हैं। चुनावी तारीखों का ऐलान होते ही उनकी पत्नी शोभा तिरुमला-तिरूपति देवस्थानम जाती हैं। वह वहां रात बिताती हैं और भोर में विधिवत पूजार्चन कर पति की विजय कामना से सिर मुड़ाकर अपने केश भगवान वेंकटेश्वर श्री-चरणों में अर्पित कर देती हैं। केसीआर की सफलता के लिये श्री कालहस्ती मुक्कामती में विशेष पूजा संपन्न होती है।
ये ही वे बातें हैं कि बीजेपी तेलंगाना में बीआरएस को चुनौती नहीं दे पा रही है। सच तो यह है कि लाख तूमार बाँधने के बाद भी वह मुकाबले में नहीं है। बीते बरसों में उसने जमीन गोड़ी है और युवाओं को आकर्षित किया है। संसाधनों की उसे कमी नहीं है। उसके लकदक दफ्तर उसकी वैभव-शैली की बानगी देते हैं। शहरी इलाकों में तो गनीमत है किंतु दूरदराज के इलाकों में कमल का फूल अभी भी अजनबी है। इसके विपरीत ‘पंजे’ को परिचय की दरकार नहीं है। पूरे तेलंगाना में इंदिरा-अम्मा की स्मृति बरकरार है। इसमें दो मत नहीं कि कर्नाटक में जीत से कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है। इसके फलस्वरूप कांग्रेस अपने उखड़े पांव जमाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। यदि यह फैक्टर न होता तो तेलंगाना में बीआरएस के लिये ‘वाकओवर’ की स्थिति थी। केसीआर को अपनी आरोग्य लक्ष्मी, डबल बेड रूम आवास, आसरा पेंशन, शादी मुबारक, दलित बंडू आदि स्कीमों के बूते सत्ता में तीसरी बार आने का पूरा विश्वास था, किंतु कांग्रेस की रिंग में वापसी ने सियासी धागे उलझा दिये हैं। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की जोड़ी की पैनी निगाह तेलंगाना पर है और वे कांग्रेस की मजबूती के लिये कोर कसर नहीं उठा रखेंगे। बीआरएस और बीजेपी के अनेक नेताओं के कांग्रेस में आने से भी कांग्रेस का हौसला बढ़ा है। बीते चौमासे में अनेक नेताओं के कांग्रेस में आने से कांग्रेस पहली बार मुकाबले में नजर आने लगी है। पूर्व मंत्री जुबलि कृष्णराव और पूर्व सांसद श्रीनिवास रेड्डी के कांग्रेस में लौटने से खम्मम और मेहबूबनगर में कांग्रेस की मजबूती का कयास लगाया जा रहा है। ऐसे ही तुमला नागेश्वर राव और मयनामपल्ली हनुमंत राव भी कांग्रेस में चले आये हैं। कांग्रेस के शिविर में लौटने वालों में कासिरेड्डी नारायण रेड्डी, वेमुल्ला वीरेश भी हैं। विकारावाद से पांच बार एमएलए रहे पूर्व मंत्री ए. चंद्रशेखर कांग्रेस से बरास्ते तेलुगुदेशम बीजेपी में चले गये थे। अब वह पुनः कांग्रेस में हैं। ठाकुर बालाजी सिंह ने तो 6 अक्टूबर को दिल्ली में खड़गे के समक्ष कांग्रेस की सदस्यता ली। भाजपा नेताओं- जे. बालकृष्ण रेड्डी और थाई श्री निवास रेड्डी का असंतोष चुनावी वेला में रंग लाया। हालांकि चुनाव की घोषणा के चंद रोज़ बाद ही पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पोन्नाला लक्षमैया का पार्टी से इस्तीफ़ा उसके लिए एक झटके की तरह है। साथ ही पड़ोसी सूबे कर्नाटक में पूर्व महिला पार्षद अश्वत्थम्मा और उनके पति आर अंबिकापति पर आयकर छापे और उनके घर से 42 करोड़ रुपये नकद बरामद होना भी कांग्रेस को असहज कर सकता है। कारण, अश्वत्थम्मा पूर्व कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवासमूर्ति की बड़ी बहन हैं और बीआरएस ने आरोप लगाया है कि इन पैसों का सम्बन्ध तेलंगाना में चुनावी फंडिंग से है। यानि यह राशि तेलंगाना टैक्स के नाम पर बिल्डरों, स्वर्ण व्यवसायियों और ठेकेदारों से एकत्र की गई थी और तेलंगाना में कांग्रेस के चुनाव अभियान की फंडिंग के लिए भेजी जाने वाली थी। किस्सा-कोताह यह कि तेलंगाना में मंच पर लीलाओं के साथ-साथ पर्दे के पीछे घटनाक्रम तेज है। केसीआर का ज्योतिष, वास्तु और अंकशास्त्र में गहरा यकीन है। उनकी पार्टी का ध्वज गुलाबी है और चुनावचिन्ह कार। मतदान में भी अभी देर है। 119 केन्द्रों से राजधानी तक की यात्रा दिलचस्प है, तो दुरूह भी। रास्ते में मोड़ भी है और रपटे भी। ऐसे में देखना होगा कि कितनी कारें सफलतापूर्वक गंतव्य तक पहुंचती हैं।
( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )
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