विविध @ डॉ. सुधीर सक्सेना
दुनिया इन दिनों
डॉ. कादंबिनी गांगुली : प्रथम लेडी ‘प्रैक्टिसनर’
डॉ. सुधीर सक्सेना
वह शोषण और उत्पीड़न से बिंधा हुआ दासता का काल था। ‘सब धन विदेश चलि जात, यहै अति ख्वारी’ भारतेन्दु हरिश्चंन्द्र की ही नहीं, करोड़ों भारतीयों की व्यथा थी। स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम की वहि बुझ चुकी थी। बंगाल रेनेसां की देहरी पर था, अलबत्ता आधी दुनिया की दुनिया चाहारदीवारी, पर्दे और वर्जनाओं में सिमटी हुई थी। जड़ता हावी थी। अंधविश्वास प्रबल थे। अस्पृश्यता का बोलबाला था। समता-स्वतंत्रता के बोल दूर के ढोल थे। परिदृश्य में ‘महात्मा’ का आगमन भी दूर था। ऐसे विषम समय में भी प्रतिभाएं उभर रही थी और सड़ी-गली मान्यताओं को चुनौती देती हुई सुषुप्त समाज में अलख जगाने में पीछे न थीं।
डॉ. कादंबिनी बोल गांगुली ऐसी ही सचेत क्रांतिकारी महिला थी। वह अपने समय से आगे की सोच की शख्सियत थीं। बेड़ियों से उनका वास्ता न था, बल्कि वह जीवनपर्यन्त उन्हें तोड़ने के संकल्प से परिचलित रही। इस मिशन में उन्हें पति का सक्रिय सहयोग मिला, फलत: वह समय की शिला पर चमकीले हरूफ में अपूर्व और अद्भुत गाथा लिखने में सफल रहीं।
कादंबिनी का जन्म 18 जुलाई, सन् 1861 को बंगाल प्रेसीडेन्सी में सिल्क सिटी भागलपुर में कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। वह ब्रह्म समाज के समाज सुधारक बृजकिशोर बसु की बेटी थीं। समाज सुधार का अदम्य साहस उन्हें पिता से आनुवंशिकी में मिला, जो भागलपुर में स्कूल में हेडमास्टर थे। परिवार बारी साल में चांदसी में था, लिहाजा कादंबिनी का लालन-पालन वहीं बारीसाल में हुआ। पिता बृजकिशोर बसु और उनके मित्र अभयचरण मल्लिक ने महिला सशक्तिकरण की आधारशिला रखी थी। उन्होंने अफने संकल्प का साहसपूर्वक निर्वाह किया और व्रत से कभी च्युत न हुए। उन्हें जीवनपर्यंत विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा। पुत्री पिता के नक्शे-पा चलीऔर उसने भी कम विरोध व लांछन न झेले, लेकिन वे अडिग रहीं। बृजकिशोर और अभयचरण ने सन् 1863 में ही भागलपुर महिला समिति की स्थापना कर दी थी। सवर्ण हिन्दुओं ने महिला जागरण के उनके इस उपक्रम का घोर विरोध किया। बृजकिशोर ने पुत्री कादंबिनी को उच्च शिक्षा देने का निश्चय कर लिया था। फलत: कादंबिनी पहले तो ब्रह्मोईडन फीमेल स्कूल, ढाका में पढ़ी और हिन्दु महिला विद्यालय, बालीगंज, कलकत्ते में। सन् 1876 में विद्यालय का नामकरण बंग महिला विद्यालय हुआ और दो वर्ष उपरांत सन् 1878 में बेथुने स्कूल में विलय हुआ। कादंबिनी यहीं पढ़ीं।
कादंबिनी मेधावी युवती थी। उन्होंने अघ्रणी या प्रथम का श्रेय बार-बार अर्जित किया। कादंबिनी ने सन् 1880 में एफए किया और सन् 1883 में ग्रेजुएशन। कादंबिनी और चन्द्रमुखी बसु बेथुने स्कूल से निकलीं प्रथम स्नातक महिला थी, पहली महिला स्नातक-द्वय। कीर्तिमान उनकी बाट जोह रहे थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रवेश-परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली वह पहली युवती थीं। सन् 1884 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में प्रविष्ट प्रथम महिला का गौरव सामान्य प्रसंग न था। इसकी पृष्ठभूमि में अदम्य साहस निहित था। इसके बाद वह स्कॉटलैंड गयीं और एडिनबरा से मेडीसिन में डिग्री लेकर लौटी। यह योग्यता अर्जित करने वाली वह प्रथम भारतीय एवं एशियाई महिला थीं। भारत लौटकर उन्होंने कलकत्ते में विधिवत प्रैक्टिस शुरू की। इस तरह मेडीसिन में डिग्रीधारी प्रथम महिला प्रैक्टिसनर का गौरव मिला। उनकी प्रैक्टिस चल निकली। रूढ़िवादी हिन्दुओं की आंखों की वह किरकिरी जरूर थीं, किन्तु ब्रिटिश हुकूमत की नजरों में उनकी अहमियत थी और उन्हें राजकीय स्तर पर सम्मान मिलता था। स्त्री-रोगियों के लिए वह ‘देवी’ थीं। वे प्राय: रोगिणियों के घरों में चली जाती थी और उनका उपचार करती थीं। उन दिनों महिला रोगियों को, कितना भी असाध्य रोग क्यों न हो, दवाखाने तक ले जाने का प्रचलन न था। इलाज के लिए लोग वैद्यों और हकीमों पर निर्भर थे। लोगों को आयुर्वेदिक जड़-बूटियों पर भरोसा था। टोने-टोटके भी चलते थे। विलायती पद्धति को हिकारत की नजरों से देखा जाता था। ऐसे में एक हिन्दु महिला का डॉक्टर की हैसियत से दवाखाना खोलकर इलाज करना किसी अचंभे से कम न था। डॉ. कादंबिनी न सिर्फ उपचार करती थीं, वरन रोगिणियों को पढ़ने-लिखने, घरों से बाहर निकलने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने को प्रेरित करती थी।
डॉ. कादंबिनी का अपना जीवन भी आसान न था। उनका विवाह 12 जून, सन् 1883 संताने हुईं। द्वारका से कादंबिनी का विवाह मेडिकल कॉलेज में दाखिले से कुछ रोज पहले ही हुआ था, लेकिन विवाह और मातृत्व उसके अध्ययन में आड़े नहीं आया। वह मेडीसिन की पढ़ाई के लिए कलकत्ते से एडिनबरा गयी तो यह अपनी तरह की पहली और विरल घटना थी। ऐसा कर रही वह पहली भारतीय ही नहीं, पहली दक्षिण एशियाई थीं। उसकी शोहरत चतुर्दिक फैल गयी। विश्व में नर्सिंग आंदोलन की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने 20 फरवरी, सन् 1888 को अफनी एक मित्र को खत में लिखा-‘‘क्या आप मिसेज गांगुली को जानते या उसके बारे में बता सकते हैं? उसने मेडीसिन और सर्जरी की परीक्षाएं पास कर ली है और मार्च में फायनल एग्जाम में बैठेगी। वह युवा और सिर्फ 13 दिन अनुपस्थित रही और उसने एक भी लेक्चर मिस नहीं किया।’’
तो ऐसी थी कादंबिनी बोस गांगुली। ब्रिटिश राज उसकी लगन से प्रभावित हुआ। मेडिकल में पढ़ते वक्त सरकार की तरफ से उसे नियमित बीस रुपया वजीफा मिलता था। बहरहाल, उसका डॉक्टर बनना रूढ़िवादी पुरूषप्रधान समाज के लिए तकलीफदेह था। एडिनबरा से कलकत्ता लौटने पर खूब बावेला मचा। उशे परोक्ष रूप से वेश्या कहा गया। बंगला-पत्र ‘बंगबाशी’ ने लांछन के साथ साथ कार्टून भी छापा, जिसमें उसके साथ पति को जंजीरों में जकड़ा और बेबस दर्शाया गया था। परि द्वारिकानाथ ने सहने अथवा हाथ पर हाथ धरकर बैठने के बजाय अखबार पर मुकदमा चलाया। इसके फलस्वरूप पत्र के संपादक महेश पाल को 100 रुपये अर्थदण्ड और छह माह के कारावास की सजा भुगतनी पड़ी।
डॉ. कादंबिनी सफल पत्नी, सफल मां और सफल डॉक्टर के साथ-साथ निर्भीक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थी। उनकी बेटी ज्योतिर्मयी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं और बेटा प्रभात चन्द्रा पत्रकार। उनकी सौतेली पुत्री विधुर्मुखी का विवाह सत्यजीत राय के पितामह उपेन्द्र किशोर रायचौधुरी से हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने और उसे संबोधित करने वाली वह पहली महिला थी। उनके नेतृत्व में छह महिलाओं ने बंबई में कांग्रेस की सदस्यता ली। इस टोली में गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की बड़ी बहन स्वर्णकुमारी देवी और उनकी बेटी सरला देवी चौधुरानी भी थीं। यह भी स्थापित तथ्य है कि गुरूदेव कलकत्ते में कांदबिनी के घर आये थे। बंबई में कांग्रेस के अधिवेशन को संबोधित करते हुए डॉ. कादंबिनी ने कांग्रेस में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की मांग की।
आजादी की लड़ाई और स्त्री जागरण आंदोलन में शिरकत तथा लंबी और सफल प्रैक्टिस के बाद डॉ. कादंबिनी का 3 मार्च, सन् 1923 को देहांत हो गया। उनके पति सन् 1898 में ही चल बसे थे। डॉ. कादंबिनी ने मृत्यु से एक घंटा पहले ही किसी रोगी का सफल आॅपरेशन किया था और उनके बटुवे में 50 रुपये थे। वे प्रसन्नवदन और उत्साह से भरी हुई थीं। उनकी ख्याति का परिमल देश-दुनिया में व्याप्त था। इतिहासकार डेविड कोप्फ ने लिखा कि डॉ. कादंबिनी ब्रह्मो-स्त्रियों में भी अग्रणी थीं, उनसे कहीं आगे। करीब सौ साल बाद स्टार जलसा ने उन पर एकाग्र और सोलंकी राय व हनी बाफना अभिनीत ‘प्रोथोमा कादंबिनी’ का प्रसारण किया तो जी-बंगला पर ‘कादंबिनी’ शीर्षक धारावाहिक का प्रसारण हुआ।
( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि, लेखक- साहित्यकार हैं। )
@ डॉ. सुधीर सक्सेना, सम्पर्क- 09711123909