चिकित्सकों पर हमला, गैर जमानती अपराध पंजीबद्ध करने की मांग
कोरबा 25 अगस्त। पुलिस की कार्यशैली से नाराज चिकित्सकों ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आइएमए के बैनर तले कलेक्टर को ज्ञापन सौंप कर चिकित्सकों व कर्मचारियों के साथ मारपीट करने वालों को अविलंब गिरफ्तार करने की मांग रखी। साथ ही चिकित्सकों ने आरोपितों के खिलाफ छत्तीसगढ चिकित्सा सेवा व चिकित्सा सेवा संस्थान अधिनियम 2010 की जगह संशोधित अधिनियम 2016 के तहत गैर जमानती अपराध पंजीबद्ध करने की मांग रखी है।
19 अगस्त की सुबह करीब आठ बजे जांजगीर. चांपा जिले के कोसमंदा में रहने वाले कलेश राठौर ने अपनी गर्भवती पत्नी पुष्पलता को प्रसूति के लिए कोसाबाड़ी स्थित न्यू कोरबा हास्पिटल एनकेएच में भर्ती कराया था। यहां उपचार के दौरान आपरेशन के पहले पुष्पलता की दोपहर को मौत हो गई। इसके बाद उसके स्वजनों ने अस्पताल में जमकर हंगामा करते हुए चिकित्सकों व कर्मियों के साथ मारपीट किया। इस घटना की शिकायत अस्पताल प्रबंधन की ओर रामपुर पुलिस चौकी में की गई। अस्पताल के डायरेक्टर डा एस चंदानी का कहना है कि हमारे साथ मारपीट करने वाले आरोपितों की तत्काल गिरफ्तार करने की जगह रामपुर पुलिस ने काउंटर केस दर्ज कर हमारे ही खिलाफ मारपीट का मामला पंजीबद्ध कर लिया है। मुझे समझ में यह नहीं आ रहा कि हमारे अस्पताल के अंदर हंगामा करते हुए बलवा किया गया और उल्टे बलवा का मामला हमारे खिलाफ दर्ज कर दिया गया है। पुष्पलता की मौत किस वजह से हुई, इसकी पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही हो सकती है। यही वजह है कि हमने पोस्टमार्टम कराने के लिए पुलिस चौकी में मेमो भेजा, पर मृतका के स्वजन पोस्टमार्टम नहीं कराना चाहते थे। इसके लिए अस्पताल प्रबंधन पर दबाव बनाया गया। पुलिस ने भी स्वजनों को यह कह दिया कि अस्पताल से मेमो आया है, इसलिए पोस्टमार्टम करना होगा। इस वजह से स्वजनों में नाराजगी और बढ़ गई। डा चंदानी ने बताया कि कलेक्टर संजीव झा से मुलाकात कर उनके समक्ष आइएमए ने अपनी बातें रखी है।
कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि छत्तीसगढ़ चिकित्सा सेवा अधिनियम 2010 को सितंबर 2016 में संशोधित किया गया है। इसके तहत किसी भी चिकित्सा सेवा संस्थान में उपद्रव करने वालों को विरूद्ध गैर जमानती गिरफ्तारी का प्राविधान है। पुलिस ने अस्पताल में हंगामा करने वाले मृतका के स्वजनों के खिलाफ 2010 अधिनियम के तहत कार्रवाई की है। यह जमानती है। पुलिस को सभी आवश्यक साक्ष्य 19 अगस्त को ही प्रदान कर दिए गए हैं, पर अभी तक आरोपितों की गिरफ्तारी नहीं की गई है। इसकी वजह से अस्पताल के कर्मी डरे हुए हैं।
आइएमए के पूर्व सचिव डा नीतिश भट्ट का कहना है कि अस्पताल में हंगामा व तोडफ़ोड़ के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश स्पष्ट हैं, पर यह देखा जाता है कि पुलिस इसकी अनदेखी करती है। पहले भी दो-तीन घटनाएं इस तरह की हो चुकी है। चाहे डा बंछोर के अस्पताल में हुई घटना का मामला हो, या फिर विशाल उपाध्याय के साथ हुई घटना हो। आइएमए के हड़ताल करने के बाद पुलिस ने कार्रवाई की। अभी एनकेएच जिले में एकमात्र अस्पताल है, जहां देर रात को भी आपातकालीन सेवा उपलब्ध है। चिकित्सक के हाथ में जितना होता है, मरीज को बचाने की कोशिश की जाती है। अस्पताल में हंगामा करने वालों पर प्रशासन को सख्ती बरतनी चाहिए।