ओम प्रभाकर के दो नवगीत

नवगीत-एक

रातें विमुख दिवस बेगाने
समय हमारा,
हमें न माने !
लिखें अगर बारिश में पानी
पढ़ें बाढ़ की करूण कहानी
पहले जैसे नहीं रहे अब
ऋतुओं के रंग-
रूप सुहाने ।
दिन में सूरज, रात चन्‍द्रमा
दिख जाता है, याद आने पर
हम गुलाब की चर्चा करते हैं
गुलाब के झर जाने पर ।
हमने, युग ने या चीज़ों ने
बदल दिए हैं
ठौर-ठिकाने ।

नवगीत-दो

रातरानी रात में
दिन में खिले सूरजमुखी
किन्‍तु फिर भी आज कल
हम भी दुखी
तुम भी दुखी !
हम लिए बरसात
निकले इन्‍द्रधनु की खोज में
और तुम
मधुमास में भी हो गहन संकोच में ।
और चारों ओर
उड़ती है समय की बेरुख़ी !
सिर्फ़ आँखों से छुआ
बूढ़ी नदी रोने लगी
शर्म से जलती सदी
अपना ‘वरन’ खोने लगी ।
ऊब कर खुद मर गए
जो थे कमल सबसे सुखी ।
हम भी दुखी
तुम भी दुखी ।
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