पहले बुलाया,फिर टरकाया.. निगम आयुक्त के व्यवहार से ठेकेदार आक्रोशित.. 1 अप्रैल को होगा फैसला

निगम मद के बाद अब एसडी-पीजी का भुगतान भी लटका, बाबुओं पर फाइल न बढाने का दबाव

निगम अधिकारीयों की अनैतिक व शोषणकारी नीतियों से ठेकेदारों में आक्रोश

कोरबा 26 मार्च। नगर पालिक निगम कोरबा में पिछले एक वर्ष से चल रही भुगतान की समस्या अब अपने चरम पर पहुंच चुकी है जिसे लेकर निगम में कार्यरत ठेकेदारों के अंदर गहरा असंतोष व्याप्त है और अब सभी ठेकेदार लामबंद होते हुए आर पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी निगम प्रशासन के असहयोगपूर्ण व शोषणकारी रवैये से ठेकेदार अत्यंत रुष्ट हैं। भुगतान की समस्या को लेकर पूर्व में भी निगम में कार्यरत ठेकेदारों द्वारा निगम अधिकारियों से चर्चा कर हल निकालने का प्रयास किया गया परंतु दुर्भाग्य से किसी ना किसी कारण मामला सुलझने के बजाय उलझता ही चला गया। इस संबंध में सबसे फलदायक चर्चा पूर्व आयुक्त आई.ए.एस. एस.जयवर्धन के कार्यकाल में हुई थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मामले का निराकरण नजदीक है परंतु दुर्भाग्य से उसी समय जयवर्धन का तबादला हो गया और मामला पुनः लटक गया। उसके पश्चात निगम की कमान संभालने वाले सभी आयुक्त फंड की कमी का अपना पुराना राग अलापते हुए मामले से किनारा करते रहे तथा वर्तमान में भी यही कार्यशैली अपनाई जा रही है।

एक ओर निर्माण सामग्रियों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि, तो दूसरी ओर पूर्व में किए गए कार्यों का भुगतान नहीं होने तथा वर्तमान में चल रहे निर्माण कार्य को पूर्ण करने निगम अधिकारियों के दबाव के बीच निगम के ठेकेदार मन को इस उम्मीद में ढांढस बंधाए अपने दिन काट रहे थे कि आज नहीं तो कल उनकी समस्या का हल हो जाएगा। परंतु उनके सब्र का बांध तब टूट गया जब निगम अधिकारियों द्वारा बाबुओं को एसडी, पीजी की फाइलों को न बढ़ाने का अनाधिकृत व अनैतिक फरमान जारी कर दिया गया। निगम अधिकारियों की इस मनमानी से कुंठित होकर निगम में कार्यरत ठेकेदारों द्वारा छत्तीसगढ़ कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष राजेंद्र तिवारी को अपनी समस्याओं से अवगत कराया गया तथा उनके नेतृत्व में निगमायुक्त से इन समस्याओं के संबंध में चर्चा कर हल निकालने की मांग की गई। प्राप्त जानकारी अनुसार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष राजेंद्र तिवारी द्वारा निगमायुक्त से फोन पर चर्चा करते हुए ठेकेदारों की समस्या से उन्हें अवगत कराया गया और समस्याओं के निराकरण हेतु सभी ठेकेदारों की उपस्थिति में विस्तृत चर्चा के लिए समय की मांग की गई। निगमायुक्त के द्वारा उन्हें 24 मार्च को फर्स्ट हाफ में मिलने कहा गया।

24 मार्च की सुबह भारी संख्या में ठेकेदार निगम कार्यालय में उपस्थित हुए तथा निगमायुक्त के साथ बैठक शुरू होने की प्रतीक्षा करते रहे। निगमायुक्त को जब कार्यालय में उपस्थित ठेकेदारों की भारी संख्या का बोध हुआ तो उन्होंने अपना मन बदल लिया और अन्य कार्यों में व्यस्तता बताते हुए एसोसिएशन के केवल एक या दो प्रतिनिधियों से मिलने की बात कहने लगे। वही ठेकेदारों द्वारा निगम के अधीक्षण अभियंता व लेखाधिकारी पर निगमायुक्त को सभी ठेकेदारों की उपस्थिति में बैठक लेने के लिए अनुरोध करने हेतु दबाव बनाया गया परंतु उनका यह प्रयास असफल रहा। अंततः ठेकेदारों के हिस्से मायूसी ही हाथ आई और निगमायुक्त ने ठेकेदारों के चयनित प्रतिनिधियों संतोष खरे व असलम खान से चर्चा कर 1 अप्रैल को बैठक रखने का आश्वासन देकर उन्हें चलता कर दिया गया।

वर्तमान परिस्थिति की बात करें तो नगर पालिक निगम कोरबा के अधिकारी अपने ही रचे चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं। निगमायुक्त के द्वारा ठेकेदार संघ का यह उपहास अब ठेकेदारों के गले नहीं उतर रहा। ठेकेदारों ने साफ कह दिया है कि यदि 1 अप्रैल की बैठक किसी भी कारण से नहीं होती है तो वह अनिश्चितकालीन काम बंद हड़ताल पर जाएंगे और जब तक सारे लंबित भुगतान का पेमेंट नहीं किया जाता तब तक किसी भी प्रकार का कार्य नहीं करेंगे। इसके अलावा ठेकेदारों द्वारा निगम में चल रहे भ्रष्टाचार तथा मनमानी कमीशन खोरी का काला चिट्ठा खुले रूप से सार्वजनिक कर देने की चेतावनी भी निगम प्रशासन को दी जा रही है। ठेकेदारों ने यह भी आरोप लगाया की निगम प्रशासन द्वारा कुछ चहेते ठेकेदारों को सुचारू रूप से भुगतान किया जा रहा है चाहे वह किसी भी मद का कार्य हो। इन ठेकेदारों की फाइलें बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से निगम में दौड़ती हैं। वहीँ अन्य ठेकेदारों को फण्ड की कमी का फण्डा देकर खाली हाथ लौटा दिया जाता है।

ठेकेदारों का कहना है कि कई महीनों से भुगतान नहीं होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति जर्जर हो चली है। एक ओर मार्केट का बकाया पेमेंट नहीं कर पाने के कारण उनकी सामाजिक छवि का हनन तो हो ही रहा है साथ ही समय पर पेमेंट नही कर पाने के कारण भविष्य में व्यापार करने के सभी दरवाजे भी बंद होते चले जा रहे हैं। ठेकेदारों ने बताया की समय पर भुगतान नहीं होने के कारण आधे से ज्यादा ठेकेदारों ने तो कार्य करना बंद ही कर दिया है। पुराने कार्यों के भुगतान से काटी गई एसडी,पीजी की राशि से बच्चों की पढ़ाई की फीस और घर का रोजमर्रा का खर्च चल रहा था। परंतु निगम प्रशासन द्वारा उस पर भी रोक लगाने के बाद अब उनके पास परिवार सहित सड़क पर आ जाने या लोकलाज में आत्महत्या करने के अलावा अब कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा।

नगर निगम कांट्रेक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष असलम खान का कहना है की एसडी, पीजी की राशि उनके पूर्ण किए कार्यों के भुगतान से ही काटी जाती है जिसे निगम द्वारा पृथक खाते में सुरक्षित रखा जाता है। उसके भुगतान के लिए अलग से किसी फंड की आवश्यकता नहीं होती जो निगम प्रशासन के द्वारा इस पर रोक लगाई जा रही है। निगम अधिकारियों का यह कृत्य न केवल अनैतिक है परंतु यह निविदा नियम और शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन भी है। बहरहाल अब सभी की नजरें 1 अप्रैल की तारीख पर टिकी हुई है। देखना है कि क्या ठेकेदारों की समस्या का कोई हल निकल पाता है या निगम प्रशासन की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ ठेकेदारों का आक्रोश रूपी ज्वालामुखी फूटते हुए पहले से ही प्रशासनिक और राजनीतिक दंश झेल रहे कोरबा नगर के लिए नई समस्याएं उत्पन्न करता है।

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