सामयिकी @ डॉ. दीपक पाचपोर
कमजोर विपक्ष से घबरा रहे हैं मजबूत पीएम
-डॉ. दीपक पाचपोर
भारतीय जनता पार्टी दुनिया का सबसे बड़ा राजनैतिक दल होने का दावा करता है और मोदी को विश्व का सबसे ताकतवर नेता कहा जाता है। फिर भी घबराहट और विपक्ष विहीन भारत बनाने की हसरत इतनी बलवती है कि अब वह स्थानीय स्तर के चुनाव टालने के लिये तक अपने रसूख का इसत्माल करने लगी है। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव टालने के लिये चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर प्रधानमंत्री मोदी ने साबित कर दिया है कि वे लोकसभा में विशाल बहुमत लेकर चाहे खुद को शक्तिशाली बतलाते हों परन्तु वे भीतर से एक कमजोर व भीरू नेता हैं जो किसी भी कीमत पर अपने विरोधियों एवं प्रतिद्वंद्वियों को येन केन प्रकारेण सत्ता से बेदखल करने का अनवरत अभियान चलाये हुए हैं। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने एक बार फिर से बतला दिया है कि वह अपनी रीढ़ की हड्डी पूरी तरह से खो चुकी है। लोकतंत्र की परवाह न पीएम को है और न ही चुनाव आयोग को। इसी साल की मई में होने जा रहे एमसीडी के चुनाव को रोकने की कोशिश जिस तरह से भाजपा कर रही है; और लोकसभा में अपने बहुमत के दम पर उसमें वह कामयाब हो भी सकती है, वह बेहद दुर्भाग्यजनक है। हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली त्रिस्तरीय है। लोकसभा, विधान सभा के अलावा नागरिकों के लिये उतना ही महत्वपूर्ण स्थानीय स्वायत्त निकाय होता है। दिल्ली चुनाव आयोग इसकी प्रक्रिया में जुटा ही था और उसकी घोषणा करने ही वाला था कि बकौल अरविंद केजरीवाल (दिल्ली के मुख्यमंत्री), चंद घंटे पहले केन्द्र की ओर से एक पत्र चुनाव आयोग को जाता है। इसमें कहा जाता है कि दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एकीकृत करने का विचार केन्द्र सरकार कर रही है इसलिये फिलहाल मई, 2022 में होने जा रहे चुनावों को टाल दिया जाये। हमेशा की तरह चुनाव आयोग ने केन्द्र एवं भाजपा के इशारे पर इसी आशय का निर्णय ले लिया।
आखिर आप से भाजपा को इतना भय क्यों है? हाल ही के चुनावों में महत्वपूर्ण सूबे उत्तर प्रदेश समेत चार राज्य (उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर भी) भाजपा जीती (हालांकि उसकी जीत को संदेह की नज़रों से देखा जा रहा है) तो है, परन्तु पंजाब में आम आदमी पार्टी ने बहुमत प्राप्त किया है। उसने 117 में 92 सीटों पर जीत दर्ज की है। दिल्ली के बाहर दूसरे राज्य में सरकार बनाने वाली वह देश की एकमात्र पार्टी बन गयी है। स्वयं भाजपा एवं कांग्रेस के अलावा ऐसी कोई भी पार्टी देश में नहीं है जिसकी सरकारें एक से अधिक राज्यों में हो। गोवा में भी आप का खाता खुलने (2 विधायक) से प्रतीत होता है कि आप खुद को भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के विकल्प के रूप में पेश कर रही है। दिसम्बर, 2021 के अंत में चंडीगढ़ नगर निगम के हुए चुनावों में इस केन्द्र शासित प्रदेश में आप ने 35 में उसने 14 सीटें जीती हैं। यह उसकी बढ़ती ताकत है, जिसके कारण भाजपा उसे अपना भावी खतरा समझ रही है। उसका भय इसलिये भी वाजिब है कि आप ने उसे दो बार दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस के साथ बुरी तरह से परास्त किया है। यह तो सच है कि अप्रैल 2017 में दिल्ली के तीनों निगमों (दक्षिणी, उत्तरी एवं पूर्वी दिल्ली निगम) के हुए चुनावों में कुल 272 वार्डों में सर्वाधिक सीटें भाजपा ने ही जीतीं एवं सभी में उसी के महापौर भी हैं। उनमें भी एकाध को छोड़कर आप की बढ़ती ताकत परिलक्षित होती है। ये चुनाव आप के दिल्ली विस में सत्ता में रहने के दौरान हुए थे और भाजपा की जीत को महत्वपूर्ण तो बतलाया गया लेकिन अब की स्थिति दूसरी है। पंजाब व चंडीगढ़ में उसकी बढ़ी हुई शक्ति का असर बना हुआ है। इसके चलते भाजपा को इस बार राह इतनी आसान नहीं लगती, इसलिये भाजपा ने तीनों निगमों के एकीकरण का दांव खेला है। बातें तो यहां तक होती हैं कि क्या भाजपा के केन्द्र में रहते स्वयं दिल्ली विस का अस्तित्व रहेगा या नहीं क्योंकि ऐसी भी बातें उठती रही हैं कि कहीं दिल्ली विस को विलीन न कर दिया जाये।
वैसे तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पिछले कुछ समय से निचले स्तर तक के चुनावों में भी जो दिलचस्पी दिखलाई है, वह अलौकिक है। कुछ अरसा पहले पश्चिम बंगाल एवं अभी उप्र के चुनावों में जिस तरह से प्रमं पद की गरिमा को गिराते हुए सारा काम-धाम छोड़कर प्रचार किया और गृह मंत्री अमित शाह ने गलियों में घूम-घूमकर पर्चे बांटे वह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नयी बात थी क्योंकि इसके पूर्व किसी भी पीएम या केन्द्रीय मंत्रियों को इतनी सघनता से किसी भी राज्य के चुनावों का प्रचार करते नहीं देखा गया था। पंजाब में भाजपा की सरकार नहीं थी, वहां वह जीत नहीं पायी लेकिन जिन चार राज्यों में उसकी सरकारें थीं, वहां वह एंटी इनकंबेंसी के बावजूद जीत गयी। उसकी यह विजय किसी के भी गले उतर नहीं रही है और निश्चित ही खुद पार्टी वाले इससे हैरत में होंगे। ईवीएम का स्ट्रांग रूम से बाहर निकलना, कई जगह उनका पकड़ा जाना इस पूरी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में खड़ा करता है। इस दौरान चुनाव आयोग द्वारा भाजपा के लोगों द्वारा आचार संहिता का पालन न करने की अनदेखी करना उसकी निष्पक्षता पर ऊंगली उठाने के लिये पर्याप्त है। भाजपा के विरोधी दलों पर अलबत्ता आयोग की हमेशा नज़रें रहती थीं।
पंजाब में आप की जीत से लगता है कि अब भाजपा उसे चुनाव लड़ने के पहले ही खत्म कर देना चाहती है। सीधे मुकाबले में वह जीत नहीं पा रही है इसलिये अब वह कमर के नीचे वार कर रही है। चुनाव टाले जाने के इस मुद्दे पर विधानसभा में जहां एक ओर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह कहकर चुनौती दी कि चाहे अभी चुनाव हों या बाद में अथवा एक साल के पश्चात- भाजपा का हारना तय है, वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल का यह कहना भी गैरवाजिब नहीं है कि पार्टियों की हार-जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण देश एवं लोकतंत्र है। विवादास्पद फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ को लेकर शुक्रवार को दिल्ली विस बैठक के दौरान जिस प्रकार से केजरीवाल ने भाजपा को आड़े हाथों लिया, उससे लगता है कि अब तक भाजपा जिस आप को अपनी ‘बी’ टीम मान रही थी, उसके कारण भी थे और अब तक तो वह उसकी मददगार ही साबित हुई थी। पंजाब के चुनाव से भाजपा के लिये ज़रूरी हो गया है कि वह उससे उसी प्रकार निपटे जैसे वह कांग्रेस से निपटती है। वह कभी नहीं चाहेगी कि एक तरफ तो वह कांग्रेस मुक्त भारत के मिशन पर काम करे और दूसरी ओर कोई दूसरा दल उसके लिये चुनौती बनकर खड़ा हो जाये। उठने के पहले ही वह आम आदमी का सिर कलम करने की तैयारी कर रही है। चुनाव में दो-दो हाथ कर किसी भी दल को किसी को भी हराने का लोकतांत्रिक अधिकार है परन्तु बहुमत के बल पर अगर वह इस प्रकार के हथकंडे अपनाती है तो वह देश एवं समग्र लोकतंत्र के लिये बेहद खतरनाक है जिसका विरोध सभी को लाभ-हानि की चिंता किये बगैर करना चाहिये। आम आदमी को रोकने के लिये जो उपाय भाजपा कर रही है, वह अन्य के लिये भी भविष्य में अपनाया जा सकता है। हो सकता है कि ऐसे गैर जनतांत्रिक तरीकों का शिकार कभी स्वयं भाजपा को होना पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं।
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