मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल

हर बुधवार

कार्यकर्ता का छलका दर्द

सुबह का वक्त था। नेताजी के दरबार में भीड़ जुटी थी। नेताजी दैनंदिनी से निवृत्त होकर दरबार में पहुंचे। लोगों से भेंट मुलाकात की। हाल-चाल पूछा। काम-धाम पूछा। लोगों की समस्याओं का यथा संभव समाधान किया। नेताजी, लोगों से घंटों मिलते-जुलते रहे। इस भीड़ में एक किनारे एक कार्यकर्ता ऐसा भी था, जिसने अभिवादन किया और फिर कोने में जाकर अपनी जगह पर बैठ गया। दोपहर में दरबार विसर्जित हो गया। लोग अपने-अपने ठिकाने पर लौट गये।

शाम को फिर दरबार सजा। नेताजी फिर नमूदार हुए। लोगों से मिलने-जुलने लगे। एकाएक उनकी नजर कोने पर गई। वही जगह, वही कार्यकर्ता फिर नजर आया। नेताजी ने पास बुलाया। कहा क्यों सुबह से शाम हो गयी अभी तक यहीं बैठे हो। कोई काम-धाम नहीं है- क्या? तुरन्त जवाब मिला-कोई कामधाम नहीं है, तभी तो बैठा हूं। काम होता तो मिलता और चल देता। अपनी सरकार में भी भूखे मर रहे हैं। कार्यकर्ता का दर्द छलका तो नेताजी द्रवित हो उठे। बोले- चलो कुछ काम शुरू कराते हैं। लेकिन नेताजी को कौन बताये कि मगरमच्छों के बीच छोटी मछलियां टिक नहीं सकती? चापलूसों और जी हुजुरी करने वालों, आस-पास चेहरा दिखाकर खुद ही खास बन जाने और करोड़ों का गेम करने वालों से कुछ बचे, तो सामान्य कार्यकर्ताओं को कुछ मिले।

तिरंगा हुआ दोरंगा

देश अभी आजादी का अमृत-महोत्सव मना रहा है। देश का राष्ट्रध्वज तिरंगा है। इन्हीं तीन रंगों से, देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का भी झण्डा बना है। नगर निगम कोरबा में इसी पार्टी की सरकार है। सरकार ने पूरे शहर के मुख्यमार्ग की स्ट्रीट लाईट में तिरंगा एल. ई. डी. स्ट्रीप से सजावट कराई है। कहते हैं- सैकड़ों का काम, हजारों में कराया गया है। राजधानी के रसूखदार को ठेका दिया गया था। लोकल लोगों ने काम किया, राजधानी ने दाम लिया। बहरहाल थोड़े दिनों में ही काम की गुणवत्ता दिखाई देने लगी है। स्ट्रीप लगते ही सुधार कार्य होता भी देखा गया। लेकिन इन दिनों एक अजीब स्थिति बन पड़ी है। कई जगहों पर तिरंगा अब दोरंगा नजर आने लगा है। बीच का सफेद रंग गायब हो गया है। बच गया है- हरा और भगवा रंग। यानि तिरंगा अब दो रंगा हो गया है। दोरंगा झण्डा एक विपक्षी पार्टी का है। नगर सरकार अमृत महोत्सव मना रही हो या पार्टी का प्रचार कर रही हो, लेकिन दोरंगा का उभरना दोनों ही स्थिति में शहर सरकार को हंसी का पात्र बना रहा है।

ये हैं- धरती के भगवान

डाक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है। देश-दुनिया में हो सकता है- डाक्टर अभी भी भगवान की तरह कर्म करते हों। लेकिन कोरबा में तो ऐसा होता नजर नहीं आता। यहां तो भगवान भी बड़ी- बड़ी दुकानें सजाये बैठे हैं। सेवा का दावा जरूर करते हैं, लेकिन हकीकतन मेवा ही उनका परम लक्ष्य बनकर रह गया है। आये दिन कोरबा के भगवानों का भण्डा फोड़ होता है। लेकिन सब कुछ देखते- देखते मैनेज होता जाता है। खबर है कि शहर के और जिले के भी कई भगवान फर्जी तरीके से काम कर रहे हैं। किसी की डिग्री फर्जी है, तो किसी का देवालय अवैध है। लेकिन रसूख ऐसा कि इन पर अंकुश लगाने वालों के भी हाथ- पांव फूले रहते हैं। इनके हाथ-पांव फूले भी रहते हैं या उनका बहाना होता है? यह शोध और जांच का विषय हो सकता है। परन्तु यह सच है कि धरती के भगवान आये दिन लोगों की जान लेने और शव को बंधक बनाकर दाम वसूलने के लिए सुर्खियों में बने रहते हैं। जिला कलेक्टर को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ता है, तब जाकर बंधक शव की रिहाई हो पाती है।

नेताजी का अवतरण

कोई व्यक्ति नेता बन जाये और नेता बनकर छोटी-बड़ी कुर्सी पा जाये, तोवउसकी जिन्दगी ही बदल जाती है। कुछ लोग पार्षद बनकर छोटे-मोटे स्तर पर नवाचार का सुख पाने लगते हैं तो कुछ लोग महापौर, विधायक, सांसद बनकर। पूरे शहर को वैध-अवैध बेनर पोस्टर से पाट देना, तो अब बच्चों का खेल हो गया है। इस खेल में जेब से ज्यादा कुछ लगाना नहीं पड़ता। आप में गुण विशेष है, तो कोई और आपके फोटो के साथ नेताजी का पोस्टर बनाकर शहर के चौक-चौराहों और गली-कूचों में लटका देगा। बहरहाल इससे भी अधिक रोचक होता है- नेताजी का अवतरण। कोई नेता 25 की उम्र में पैदा होता हे, तो कोई 40-50 की उम्र में। कोरबा में भी यही देखने में आता है। एक नेताजी तो 60- 70 के बाद अवतरित हुए। कुर्सी मिलते ही अवतरण दिवस की बधाई देने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं। नेताजी का खास बनने बताने का ये सबसे आसान तरीका है। सभी को आपकी नजदीकी का पता चल जाता है। नेताजी खुश, चलो मेरा अवतरण दिवस मनाया जा रहा है। कई नेता तो खुद- बेनर पोस्टर छपवा देते हैं। अपने साथ, शुभेच्छुओं का फोटो लगवा देते हैं और तो और फोटो को लटकाने तक का खर्चा खुद उठाते हैं। ऐसा करें भी क्यों नहीं? लोगों को कैसे पता चलेगा कि हमारे शहर में नेताजी अवतरित हो चुके हैं?

असली चिट्ठी, नकली चिट्ठी

कोरबा में इन दिनों असली चिट्ठी, नकली चिट्ठी की सरगर्म चर्चा है। असली चिट्ठी लिखी पड़ोसी जिला जांजगीर के अकलतरा क्षेत्र के विधायक सौरभ सिंह ने। उसके जवाब में नकली चिट्ठी लिखी गई कोरबा के रामपुर क्षेत्र के विधायक ननकीराम कंवर के नाम से। पहले पहल तो यही समझा- समझाया गया कि चिट्ठी कद्दावर आदिवासी नेता ननकीराम कंवर ने ही लिखी है। दोनों ही भाजपा के विधायक हैं। एक भ्रष्टाचार का आरोप लगाए और दूसरा आरोप को झूठा बताये तो सनसनी तो फैलती है। कोरबा से रायपुर तक हंगामा हो गया। लेकिन शाम होते होते यह सनसनी का गुब्बारा पिचक गया। असलियत उस समय सामने आई जब कंवर ने चिट्ठी को नकली बताकर पुलिस में शिकायत की। खैर, पुलिस ने मामला जांच में रखा है। फिलहाल पूर्व गृहमंत्री की एफ आई आर नहीं लिखी गई है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि कंवर के नाम की चिट्ठी किसने लिखी? लेटरहेड का कैसे जुगाड़ हुआ? कंवर के दरबार में ही कोई जयचन्द है या किसी कलाकार ने हूबहू लेटरहेड बना लिया? दस्तखत भी कर दिया। फिर उसे वायरल भी कर दिया। और यह भी की इस रहस्य से पर्दा हटेगा भी या नहीं?

मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल, सम्पर्क-98271 96048

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