क्यों होता है पितृपक्ष में 16 दिन? आइये जानते हैं इसका कारण

अभी पितृ पक्ष चल रहे हैं और 16 दिन के श्राद्ध पक्ष में सनातन धर्मी अपने पितरों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए सभी वैदिक अनुष्ठान करते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि 16 दिन का पितृपक्ष दानवीर कर्ण की एक भूल के कारण मनाया जाता है और कर्ण के कारण ही पितृपक्ष मनाने की परंपरा शुरू हुई थी। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या है धार्मिक मान्यता –
पितृपक्ष में दान का अत्यधिक महत्व
पुराणों के मुताबिक पितृपक्ष में दान-पुण्य का विशेष विधान होता है और इसका फल जीवात्मा को स्वर्गलोक में प्राप्त होता है। दानवीर कर्ण अपनी दानवीरता के लिए जाने जाते थे और जीवन भर उन्होंने गरीब और जरूरतमंदों को धन और स्वर्ण का दान किया। अपने दर पर आने वाले किसी भी व्यक्ति को उन्होंने बगैर धन दिए लौटने नहीं दिया, लेकिन कर्ण ने अपने जीवनकाल में अन्न दान नहीं किया।
अंतिम समय में जब कर्ण ने मृत्युलोक छोड़ा और स्वर्ग पहुंचे तो खूब सोना दिया गया और खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया। कर्ण ने जब भगवान इंद्र से इसका कारण पूछा तो देवराज इंद्र ने बताया कि उन्होंने जीवन भर सोना ही दान किया है और पितरों की आत्मा की शांति के लिए कभी भी अन्य दान नहीं किया, इसलिए उन्हें अन्न नहीं दिया गया। तब कर्ण ने इस बात को लेकर अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि मुझे अन्नदान के महत्व की जानकारी नहीं थी।
गलती सुधारने फिर धरती पर आए थे कर्ण
कर्ण को जब अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्हें अपने गलती सुधारने के लिए एक बार 16 दिन के लिए धरती पर भेजा गया था। इन 16 दिनों में कर्ण ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए तर्पण किया और भूखे और गरीबों को अन्न दान किया और फिर स्वर्गलोक चले गए। ऐसी मान्यता है कि तभी से 16 दिन का पितृपक्ष मनाने की परंपरा चल रही है और इस दौरान लोग अपने पुरखों को यादकर भोज का आयोजन करते हैं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पितृपक्ष के दौरान यदि कोई भिक्षा मांगने आए तो उन्हें कभी खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए।

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