सामान्य लक्षण वाले मरीजों की कोरोना जांच ठहरी, दवाई खाने की दी जा रही सलाह

कोरबा 8 मई। कोविड-19 से संबंधित मामलों में अब केवल जटिल लक्षण दिखाई देने पर ही लोगों की कोरोना जांच की जाएगी। सामान्य लक्षण के मामले में जांच करने के बजाय लोगों को परीक्षण केंद्रों से चलता किया जा रहा है। उन्हें कहा जा रहा है कि विटामिन-सी और पैरासिटामॉल का प्रयोग किया जाए। इससे बात बन जाएगी। इस स्थिति में परेशानी महसूस करने वाले लोग कोरोना परीक्षण के लिए यहां-वहां एप्रोच लगाने को मजबूर हैं।

कटघोरा विकासखंड के दीपका और आसपास के इलाके से इस तरह की जानकारी मिली हैं। इनमें कहा गया है कि सर्दीए खांसी और बुखार से दिक्कत महसूस करने वाले लोगों को कोरोना जांच केंद्रों से यह कहकर उल्टे पैर लौटने को मजबूर किया जा रहा है कि उनकी जांच नहीं हो सकती। सामान्य दवाओं का उपयोग करने के साथ वे ठीक हो सकते हैं। सलाह यह भी दी जा रही है कि जो दिशा-निर्देश बनाए गए हैं उन पर अमल किया जाए। अनेक लोग इस तरह की शिकायतों को लेकर आसपास में पहुंच रहे हैं और यहां-वहां अपनी परेशानी साझा कर रहे हैं। बताया गया कि जिन लोगों के घर में एक-दो व्यक्ति पॉजिटिव हैं, उन्हें छोड़कर दूसरों की जांच करने से साफ मना किया जा रहा है। वहीं जिन प्रकरणों में लोगों को शुरुआती लक्षण नजर आ रहे हैं, उनकी भी उपेक्षा जांच के मामले में की जा रही है। चूंकि कोरोना के लक्षणात्मक प्रकरणों को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने खुद ही जानकारी सार्वजनिक की है और लोगों को जागरूक किया है कि वे मामलों को छिपाएं नहीं बल्कि आगे आकर बताएं। जिले में केजुअल्टी होने और संक्रमण का दायरा बढऩे के कारण कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि वह अनावश्यक जोखिम ले। इसलिए थोड़ी सी दिक्कत होने पर लोग खुद ही डॉक्टर बनने के बजाय सीधे कोरोना जांच केंद्र में पहुंच रहे हैं। समस्या तब खड़ी हो रही है जब लाइन में लगने और कई घंटे धूप बर्दाश्त करने के बाद भी जांच करने के बजाय उन्हें लौटाया जा रहा है। दीपका क्षेत्र में इस तरह की चर्चा है कि हाल में ही एक बैठक इस संबंध में ली गई। इसमें कई पक्षों पर विचार किया गया और साफ तौर पर कहा गया कि अब ज्यादा परेशानी वाले प्रकरणों में ही जांच की जाए ताकि संक्रमितों के आंकड़ें कम हो। केवल आंकड़ों की बाजीगरी दिखाने मात्र से समस्या का समाधान हो सकेगा, यह अपने आप में विचारणीय मुद्दा तो है ही।

कोरबा जिले में प्रशासन के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में कोरोना संक्रमित लोगों की निगरानी करने के लिए नगरीय निकायों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के स्तर पर टीमें बनाई गई है। शासकीय सेवक इसमें नामजद किये गए हैं। इसी के साथ शिक्षकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और मितानिनों की ड्यूटी एक्टिव सर्विलेंस वर्क में लगाई गई है। इन्हें यह पता करना है कि कितने लोगों ने टीका लगवा लिया है और कहां-कहां संक्रमण के मामले हैं। जिस तरह से वर्तमान में सामान्य पीड़ितों की जांच से किनारा किया जा रहा है, उससे सवाल खड़ा होता है कि इस स्थिति में सर्वेक्षण और दूसरी कवायद का आखिर क्या मतलब है।

अजीब बात है कि एक तरफ कोरोना की संभावना वाले लोगों के परीक्षण से बचने की कोशिश अनेक स्थानों पर की जा रही है वहीं दूसरी तरफ परेशानी को दूर करने के लिए मेडिसिन किट भी तैयार की जा रही है। जिला स्तर पर कोरबा के जिला संसाधन केंद्र में यह काम दो शिफ्ट में चल रहा है। यहां पर 48 से अधिक मैनपावर लगाया गया है। इनमें अधिकांशतरू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं शामिल हैं। 6 तरह की दवाओं की किट यहां पर बनाई जा रही है। यहां से इन्हें अगली यूनिट के लिए भेजा जाता है और फिर वहां से सूची के आधार पर संबंधित स्तर पर वितरण की व्यवस्था की जाती है।

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