फारेस्ट राइट एक्ट के तहत पट्टाधारियों की आर्थिक दशा सुधारने की तैयारी
कोरबा 7 मार्च। वनपट्टे की जमीन को खेती के लिए अवैध कटाई की जा रही है। इसे रोकने के लिए एफ आरए यानि फारेस्ट राइट एक्ट एफ आरए के अनुरूप परंपरागत वनोपज से पट्टाधारियों की आर्थिक दशा सुधारने की तैयारी वन विभाग से की जा रही है। जिन लोगों को अब तक वन भूमि का पट्टा मिल चुका है उनके भू-भाग को क्लस्टर लेबल में जोड़कर वनोपज देने वाले चार, कोसम, लाख, हर्रा, बहेरा, आंवला जैसे पेड़ों को बढ़ावा दिया जाएगा। जिला खनिज न्यास से मद की मांग की जाएगी।
कोरबा वन मंडल में अब तीन हजार से भी अधिक लोगों को वन भूमि का पट्टा वितरित किया जा चुका है। पट्टा वितरण के पश्चात जिस तरह से कृषि कार्य के लिए आसपास के पेड़ों को नष्ट किया जा रहा है, उसे रोकने के लिए फ ारेस्ट राइट एक्ट के तहत संरक्षण की तैयारी की जा रही है। वन मंडलाधिकारी की माने तो वास्तव में वनभूमि पट्टा के तौर पर दी गई जमीन वन विभाग की ही है। पट्टा मिल जाने से उसका उसका विक्रय का प्रावधान नहीं है। अब तक जितने लोगों को पट्टा दिया जा चुका है उनके जमीन में वनोपज देने वाले पेड़ों को बढ़ावा देने की तैयारी चल रही है। वनभूमि में पेड़ भी संरक्षित रहे और पट्टाधारी वनवासियों को आर्थिक लाभ मिले इस उद्देश्य से लाख, चार, हर्रा, आंवला के अलावा मधु उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा।
उल्लेखनीय है वन पट्टे के लिए जितनी जमीन हित ग्राहियों को दी जा रही है, उससे अधिक भू-भाग से लगे पेड़ों की कटाई की जा रही है। जंगल के जमीन में खेत बनाने के कारण उसका क्षेत्रफ ल सिमट रहा है। वनोपज से जुड़े पेड़ों के संरक्षण को वनपट्टे की जमीन में बढ़ावा देने से आदिवासी अपने मूल कार्यों से जुड़े रहेंगे। पट्टे की जमीन के लिए अपात्र हितग्राहियों में बेजा कब्जा की होड़ लग गई है। कोरबा से करतला के बीच मुख्य मार्ग से लगे जमीन पर कई स्थानो में घेराबंदी देखी जा सकती है। वन विभाग की मौन स्वीकृति के कारण न केवल अवैध कब्जे में बढ़ोतरी हो रही, बल्कि खरीदी बिक्री भी शुरू चुकी है। शहर से लगे झगरहा, जामबहार मार्ग में इस तरह की दशा देखी जा सकती है। अवैध बेजा कब्जा को नही रोके जाने से वन भूमि में नई बस्तियां बसने लगी है। इसका प्रत्यक्ष नजारा जिला जेल के पीछे नगर वन के आसपास देखा जा सकता है। हाउसिंग बोर्ड कालोनी के निकट होने के कारण अवैध कब्जा को प्रश्रय मिल रहा है। आठ वर्ष पहले माडल स्कूल बनने के दौरान यहां एक भी आवास नहीं था। नगरवन और माडल स्कूल के लिए चिन्हांकित होने के बाद यहां 250 से भी अधिक आवास बन चुके हैं।