चपड़ा उद्योग और ईंट भ_ों में खप रहा चोरी का कोयला
न्यूज एक्शन। जिला के कोयला खदानों से जहां ओवरलोड के नाम पर भारी वाहनों से कोयला की अफरा तफरी का खेल चल रहा है। वहीं छोटे बड़े मालवाहक वाहनों से भी चोरी का कोयला चपड़ा उद्योग और ईंट भ_ोंं में बड़ी आसानी से खपाया जा रहा है। एसईसीएल के कोयला खदानों में सुरक्षा के नाम पर प्रबंधन करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। इसके बाद भी चपड़ा उद्योग और ईंट भ_ोंं में खपाने के लिए खदानों से कोयला कैसे चोरी हो रहा है? कोयला के बड़े तस्कर तो अपने निजी प्लॉट में कोयला डंप कर उसे दीगर जिलों और प्रांतों में खपा देते हैं, लेकिन जो लोकल स्तर पर कोयला खपाने का खेल चल रहा है उसका सरगना आखिर कौन है?
जिले के शहरी, उप नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर अवैध ईंट भ_े संचालित हैं। वहीं विभिन्न क्षेत्रों में चपड़ा उद्योग भी चल रहे हैं। ईंट भ_ों और चपड़ा उद्योग में कोयला महत्वपूर्ण ईंधन है। बिना कोयले के ईंट भट्ठों और चपड़ा उद्योग में काम नहीं चलता। यही कारण है कि इन दोनों स्थानों पर हमेशा कोयले की मांग बनी रहती है। ऐसे में इन लोगों के लिए चोरी का कोयला महत्वपूर्ण विकल्प होता है। खदानों से निकलने वाला कोयला विभिन्न औद्योगिक संयंत्रों में पहुंचती है। जिसके लिए नियम कायदे, कानून बने हुए हैं। मगर इन अवैध ईंट भ_ों और चपड़ा उद्योग संचालक कोयला खरीदी के नियमों का पालन नहीं करते। ऐसे में उनके उद्योग के पास कहां से कोयला पहुंचता है यह हमेशा ही जांच का विषय बना रहता है, लेकिन इसके बाद भी न तो अवैध ईंट भ_ों और चपड़ा उद्योगों की जांच करना पुलिस और खनिज विभाग मुनासिब नहीं समझते। इन ईंट भट्ठों और चपड़ा उद्योगों में स्थानीय कोयला खदानों से कोयला चोरी कर बड़ी आसानी से खपा दिया जाता है। विभागीय संरक्षण और खाकी से सांठगांठ के कारण चोरी का कोयला ईंट भ_ों और चपड़ा उद्योगों में खप रहा है। अगर इस दिशा में जांच की जाए तो इस धंधे में लगे बड़े-बड़े सफेदपोश सलाखों के पीछे होंगे। यही कारण है कि ऐसे ईंट भट्ठों और चपड़ा उद्योग संचालकों पर पुलिस कार्रवाई नहीं करती। साथ ही इनके पास कोयला सप्लाई करने वाले कोल तस्करों पर भी कार्रवाई देखने को नहीं मिलती।
कोयले के कारोबार में लंबी सेटिंग
पुलिस के मुखबीर भी शायद इस मामले में महकमे की मदद नहीं कर पा रहे हैं। खनिज विभाग का टास्क फोर्स तो सिर्फ सफेद हाथी बनकर रह गया है। माल वाहनों में टे्रकिंग सिस्टम भी कोयला तस्करों के आगे फेल है। संरक्षण बिना तो कोई भी काला धंधा फलफूल ही नहीं सकता। राजनीतिक, प्रशासनिक, पुलिस स्तर का ही क्यों न हो। रात 9 बजे से लेकर सुबह 7 बजे तक कोयला की अफरा तफरी का यह खेल चलता रहता है। इलाके की पुलिस भी रोज रात्रि गश्त करने का दावा करती है। तो फिर चूक क्यों हो रही है। अब या तो रात्रि गश्त मुस्तैदी से नहीं हो रही है या फिर कोयले के काले धंधे में जिम्मेदारों के हाथ भी काले हो चुके हैं।
सुरक्षा के बाद भी आखिर चोरी कैसे?
खदानों से चुराया गया कोयला एक तरफ परिवहन के दौरान पुलिस और खनिज विभाग के नजर से तो बच रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि एसईसीएल की कोयला खदानों से व्यापक पैमाने पर कोयला की चोरी कैसे हो रही है। जबकि कोयला खदानों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। एसईसीएल ने विभागीय तौर पर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की है। इसके अलावा सीआईएसएफ के टीम को भी सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है। बकायदा खदान से कोयला लोड वाहन कांटा करने के बाद बाहर निकलता है। इसके बावजूद भी तमाम व्यवस्थाओं को भेदते हुए चोर कैसे कोयला चोरी को अंजाम दे रहे हैं। विभागीय तौर पर भी सांठगांठ करने वालों पर कार्रवाई की जरूरत है।
नहीं बचेंगे कार्रवाई में
जिले में अगर अवैध ईंट भ_ों और चपड़ा उद्योगों की सघन एवं नियमित जांच शुरू कर दी जाए तो चोरी का कोयला खपाने वाले नहीं बचेंगे। न ही इसका उपयोग करने वाले अवैध ईंट भ_ा एवं चपड़ा उद्योग संचालक कार्रवाई से बच सकेंगे। अगर जांच शुरू हुई तो शहर से लेकर उप नगरीय और ग्रामीण क्षेत्र के अवैध ईंट भ_ा संचालक व नियम विरूद्ध चपड़ा उद्योग संचालन करने वाले संचालक नप जाएंगे। कभी भी इन संस्थानों की जांच में गंभीरता देखने को नहीं मिलती। जिसके कारण हमेशा ही संरक्षण और सांठगांठ के आरोप जिम्मेदार लोगों पर लगते रहे हैं।