मुख्यमंत्री ने कोरबा जिले के संस्कृति, पुरातत्व एवं पर्यटन स्थलों के संकलन पर आधारित पुस्तिका का किया विमोचन

कोरबा 05 जनवरी 2020. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज ओपन थियेटर सतरेंगा में कोरबा जिले के संस्कृति,पुरातत्व एवं पर्यटन स्थलों के संकलन पर आधारित पुस्तिका का विमोचन किया। इसका प्रकाशन जिल पुरातत्व संग्रहालय कोरबा द्वारा किया गया है। मुख्यमंत्री ने इस दौरान कहा कि कोरबा जिले के पुरातात्विक और प्राचीन स्थल प्रदेश ही नहीं देश भर में लोगों के पर्यटन का केंद्र बने। मुख्यमंत्री ने इस दौरान भविष्य में कोरबा जिले के पर्यटन स्थलों पर जाने की ईच्छा भी जताई। इस पुस्तिका में कोरबा जिले के विभिन्न पर्यटन स्थलों के साथ धार्मिक स्थल तथा नैसर्गिक सुंदरता वाले जगहों का संकलन है। पुस्तिका में जिले के अन्तर्गत आने वाले अनदेखे खूबसूरती से भरे प्राकृतिक जगहों के बारे में बताया गया है।

पुस्तिका में उल्लेख है कि कोरबा जिले के दो स्थानों तुमान और चैतुरगढ़ को कलचुरी काल में प्राचीन छत्तीसगढ़ की राजधानी होनेे का गौरव प्राप्त है। पुस्तिका में जिले के पाली का शिवमंदिर, कनकी, बीरतराई, कुटेसर नगोई, भाटीकुड़ा, मौहारगढ़, सीतामणी गुफा मंदिर, आमाटिकरा कुदूरमाल, पहाड़गाँव, कर्रापाली, घुमानीडांड, कोसगाई, शंकरगढ़ (गढ़कटरा) गढ़उपरोड़ा, रजकम्मा, लाफा, उमरेली, नेवारडीह, देवपहरी आदि जगहों पर प्राचीन मूर्तियाँ और मंदिर का विवरण उपलब्ध है। पुस्तिका में भारत सरकार द्वारा तुमान और पाली के शिवमंदिर को तथा चैतुरगढ़ को संरक्षित करने की भी जानकारी मौजूद है। एकमात्र संरक्षित स्मारक कुदुरमाल का कबीरपंथी साधना एवं समाधि स्थल का विवरण भी मौजूद है। जिले में सुअरलोट की सीताचैकी, दुलहा दुलही, रानी गुफा, रक्साद्वारी, छातीबहार, भुडूमाटी, बाबामंडिल, मछली माड़ा, हाथाजोड़ी माड़ा और धसकनटुकू सोनारी, अरेतरा आदि जगहों के गुफाओं में आदि मानवों द्वारा चित्रित प्राचीन धरोहर खोजे गये हंै जिसकी जानकारी पुस्तिका में बताया गया है।

पुस्तिका में कोरबा जिले में बुका, सतरेंगा, टिहलीसराई, मड़वारानी, झोराघाट, नरसिंहगंगा, परसाखोल, रानीझरिया आदि खूबसूरत पर्यटन स्थल की भी जानकारी हैं। यहाँ शैव, शाक्त और वैष्णव धर्म के मानने वाले लोग प्राचीनकाल में निवास करते थे। शैव धर्म के प्रमाण पाली, तुमान, कनकी, देवपहरी, भाटीगृुड़ा और बीरतराई में शिवमंदिर या उनके अवशेष हंै, जबकि शाक्त धर्म के प्रमाण चैतुरगढ़, सर्वमंगला आदि है। यहाॅ इनके संरक्षण के लिये जिला प्रशासन के देखरेख में एक जिला पुरातत्व संघ संग्रहालय का भी निर्माण आदि की जानकारी संकलित है।

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