नगर निगम कोरबा के लापरवाह जनसूचना अधिकारी पर राज्य सुचना आयोग ने लगाया 25000 रूपये जुर्माना

सुचना का अधिकार अंतर्गत आवेदन में पाँच साल बाद भी नहीं दी जानकारी, सुनवाई हेतु आयोग के समक्ष उपस्थित होना भी नहीं समझा जरुरी

कोरबा 14 दिसंबर. राज्य सुचना आयोग ने नगर निगम कोरबा के सचिव व जनसूचना अधिकारी पवन वर्मा पर सुचना का अधिकार अंतर्गत प्राप्त आवेदन का पाँच साल बाद भी निराकरण नहीं करने, आयोग द्वारा कारण बताओ नोटिस का जवाब नहीं देने व अपील की सुनवाई में आयोग के समक्ष बिना सुचना दिए अनुपस्थित रहने के कारण 25000 रूपये का जुर्माना आरोपित किया है। साथ ही आयोग ने नगर निगम कोरबा को अपीलार्थी को 500 रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करने का भी निर्देश दिया है।

बता दें की पुराना बस स्टैंड निवासी अधिवक्ता डॉ. उत्पल अग्रवाल ने पाँच वर्ष पूर्व मार्च 2015 में सुचना का अधिकार अंतर्गत आवेदन में बस स्टैंड में संचालित प्रकाश लॉज से सम्बंधित जानकारी माँगी थी। एक माह बाद भी वांछित जानकारी प्राप्त नहीं होने पर उनके द्वारा निगम आयुक्त के समक्ष प्रथम अपील दायर की गई थी परन्तु उस पर भी किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं हुई। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने राज्य सुचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील प्रस्तुत की थी, जिसपर सुनवाई करते हुए आयोग ने जनसुचना सुचना अधिकारी पवन वर्मा पर सुचना का अधिकार अधिनियम के नियमों का पालन नहीं करने के कारण 25000 रुपये का अर्थदंड आरोपित किया है।

अधिवक्ता डॉ.अग्रवाल ने अपने आवेदन में पुराना बस स्टैंड स्थित प्रकाश लॉज को निगम द्वारा प्रदान की गई अनुमति व लॉज संचालक द्वारा निर्धारित शासकीय मापदंडों के परिपालन संबंधी जानकारी माँगी थी। उनका आरोप है की उक्त लॉज का संचालन शासकीय नियमों की अवहेलना करते हुए किया जा रहा है, इसलिए इस भ्रष्टाचार में लिप्त निगम अधिकारीयों द्वारा उन्हें जानकारी प्रदान नहीं की जा रही है। कई मौकों पर जनसूचना अधिकारी पवन वर्मा द्वारा उन्हें मामले का निपटारा करने के लिए अपने कार्यालय बुलाया गया परंतु उन्होंने इनकार कर दिया।

न अधिनियम का मान, न आयोग का सम्मान

नगर निगम कोरबा के अधिकारीयों की मनमानी के आगे जहाँ आम आदमी तो बेबस है ही, वहीं इनके सामने देश की संसद में पारित नियमों व उनके परिपालन हेतु बने आयोग व विभागों की भी कोई बिसात नहीं है। वर्तमान प्रकरण में भी यही देखने को मिलता है। सुचना का अधिकार अंतर्गत प्राप्त आवेदनों का निराकरण 30 दिवस के भीतर करना होता है परंतु निगम के जनसूचना अधिकारी पवन वर्मा पाँच वर्षों तक जानकारी उपलब्ध नहीं कराते। इतना ही नहीं वह राज्य सुचना आयोग द्वारा निराकरण में हुए विलंब पर जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब तो प्रस्तुत करते नहीं, साथ ही महोदय अपील की सुनवाई में उपस्थित होना भी जरुरी नहीं समझते। अब प्रश्न यह उठता है की देश का संविधान इनके अधीन है या फिर ये संविधान के।

“नहीं मिला न्याय, अर्थदंड केवल खानापूर्ति”

वहीं अपीलार्थी अधिवक्ता डॉ.अग्रवाल का कहना है की उन्हें न्याय नहीं मिला। प्रकरण का निपटारा करने में आयोग ने जहाँ पाँच वर्ष का समय ले लिया वहीं क्षतिपूर्ति के रूप में 500 रुपये प्रदान कर तथा जनसूचना अधिकारी पवन वर्मा पर 25000 रुपये अर्थदंड आरोपित कर केवल खानापूर्ति कर दी गई है। इससे वर्तमान व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं आएगा। वर्तमान प्रकरण के अलावा निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के ऐसे अनेक प्रकरण हैं जिनमे पवन वर्मा द्वारा बिना उचित कारणों के, नियमों की अवहेलना करते हुए जानकारी प्रदान नहीं की जा रही है। आयोग को पवन वर्मा जैसे लापरवाह अधिकारीयों पर कड़ी कार्यवाही कर एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए जिससे भविष्य में कोई भी सुचना का अधिकार अधिनियम के प्रति लापरवाही न बरते, अपितु यह अधिनियम केवल मजाक बन कर रह जावेगा।

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