क्या आपको पता है- छत्तीसगढ़ में मां महालक्ष्मी का इकलौता मंदिर कहाँ है? नहीं तो, जान लीजिए..

एक हजार साल पुराना है यह विख्यात मां महालक्ष्मी का मंदिर

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में 1000 साल पुराना एक ऐसा मंदिर है, जहां मां महालक्ष्मी विराजती हैं। रतनपुर के पहाड़ों पर बने राज्य के इस इकलौते मंदिर में मनोकामना के लिए जोत-जवारा की भी परंपरा है। ख्याति ऐसी कि विदेशों से भी यहां ज्योति कलश की स्थापना की जाती है।

इस विख्यात मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को चुनौती देने वाली पहाड़ों की वजह से दुर्गम चढ़ाई को धीरे-धीरे आसान बनाया जा चुका है। पर इसके लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी, सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रमवीरों ने पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाया। पूरे 300 सीढ़ियों का निर्माण किया। इन 300 सीढ़ियों के निर्माण ने अब आस्था का रास्ता आसान कर दिया है।

जिला मुख्यालय बिलासपुर से करीब 25 किमी दूर रतनपुर में देवी लक्ष्मी का प्राचीन मंदिर इकबीरा पहाड़ी पर है। जिस पर्वत पर यह मंदिर स्थित है इसके भी कई नाम है। इसे इकबीरा पर्वत, वाराह पर्वत, श्री पर्वत व लक्ष्मीधाम पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री गंगाधर ने वर्ष 1179 में कराया था।

उस समय इस मंदिर में जिस देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी, उसे इकबीरा देवी व स्तंभिनी देवी कहा जाता था। धन वैभव, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी का यह प्राचीन मंदिर करीब 1000 साल से ज्यादा पुराना माना जाता है। यह मंदिर लखनी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। लखनी देवी शब्द लक्ष्मी का ही अपभ्रंश है, जो साधारण बोलचाल की भाषा में रूढ़ हो गया है।

बताया जाता है कि रत्नदेव तृतीय ने 1178 ईसवी में राज्यारोहण किया तब राज्य में भीषण अकाल था। तब, 1179 ईसवी में रत्नदेव तृतीय के प्रधामंत्री गंगाधर ने इकबिरा पहाड़ी पर लक्ष्मी जी के मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद रतनपुर में एक बार फिर खुशहाली लौट आई। मंदिर में स्थापित मूर्ति का आसन शास्त्रों में बताए गए पुष्पक विमान की तरह है। इसके भीतर श्रीयंत्र बना हुआ है। लखनीदेवी का स्वरूप , अष्ठ लक्ष्मी देवियों में एक, सौभाग्य लक्ष्मी का है। नागरिकों की मान्यता है कि मां लखनीदेवी की कृपा रतनपुर पर बनी रहती है और रतनपुर के नागरिकों को सभी प्रकार की विपदा से बचाती है।

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