निगम प्रशासन vs ठेकेदार पार्ट 2 : अवैधानिक कार्यवाही का आरोप लगा ठेकेदार पहुँचा हाईकोर्ट.. आयुक्त प्रतिष्ठा की प्रतिष्ठा दांव पर

कोरबा 27 जुलाई। कोरबा नगर निगम में ठेकेदारों और निगम प्रशासन के बीच युद्ध जारी है। ठेकेदार संघ के अध्यक्ष द्वारा कमीशन खोरी का लेटर बम दागने पर प्रदेश भर में हुई अपनी फजीहत के बाद निगम प्रशासन ने ठेकेदारों पर जवाबी हमला बोल दिया है। परंतु निगम प्रशासन का रिटर्न फायर लगातार मिसफायर होता नजर आ रहा है। महज कुछ दिन पहले ही निगम प्रशासन को अपनी कारगुजारियों के कारण अपमान का घूंट पीकर चंद ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को निरस्त करना पड़ा था। अब ताजा मामले में शहर की उखड़ी हुई सड़कों को लेकर निगम द्वारा ठेकेदार पर की गई कार्यवाही के विरोध में ठेकेदार ने नगर निगम आयुक्त को ही सीधा पार्टी बनाते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी है और निगम अधिकारियों पर अनियमितता के गंभीर आरोप लगाए हैं।

मामला कोरबा नगर के मुख्य सड़कों पर हुए डामरीकरण कार्य का है। ठेका कंपनी मे. अभिनव कंस्ट्रक्शन के द्वारा नगर निगम क्षेत्र अंतर्गत चार अलग-अलग स्थान पर सड़क डामरीकरण का कार्य किया गया था। इस वर्ष बारिश होते ही उपरोक्त सड़कें उखड़ गईं। सड़कों की बदहाली को स्थानीय मीडिया के द्वारा जोर-शोर से उठाया गया तो निगम प्रशासन ने ठेकेदार अभिनव कंस्ट्रक्शन की निगम में जमा परफॉर्मेंस गारंटी की राशि तथा अमानत राशि को रातसात कर लिया। निगम अधिकारियों ने बताया कि ठेकेदार को लगातार सड़क की मरम्मत के लिए नोटिस जारी किया गया था परंतु ठेकेदार के द्वारा सड़क की मरम्मत नहीं कराई जा रही थी जिसके चलते यह कार्यवाही की गई।

वहीं ठेकेदार ने आरोप लगाया कि यह पूरा मामला व्यक्तिगत द्वेष से जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि निगम अधिकारियों द्वारा कमीशन खाने के चक्कर में उनके द्वारा कराए गए अन्य निर्माण कार्यों का भुगतान नही किया जा रहा था। किस न किसी बहाने से निगम अधिकारियों द्वारा उनकी भुगतान फाइलों को लंबित रखा जा रहा था। साथ ही कई फाइलों को गुम कर दिया जा रहा था। इससे त्रस्त होकर ठेकेदार ने निगम को लीगल नोटिस भेजा जिसके बाद से अधिकारियों द्वारा इनके विरुद्ध बदले की भावना से कार्यवाही की जाने लगी।

ठेकेदार ने बताया कि कानूनी कार्यवाही का बदला लेने के लिए ही निगम द्वारा सड़क निर्माण के कार्य को लेकर उन्हें टारगेट किया गया। जिन सड़कों की मरम्मत की बात निगम द्वारा की जा रही है उनका निर्माण पूर्ण किये उन्हें 3 वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। निविदा शर्तों के अनुसार सड़कों के रखरखाव का कार्य उन्हें 3 वर्ष तक करना था जो कि उनके द्वारा किया भी गया है और रखरखाव अवधि के दौरान निगम प्रशासन के आदेश पर सड़क की मरम्मत भी की गई थी। वर्तमान में रखरखाव की अवधि पूर्ण हो चुकी है और वह सड़कों के मरम्मत करने के लिए बाध्य नहीं है। ठेकेदार ने बताया कि इस बात की सूचना उनके द्वारा निगम प्रशासन को पहले ही पत्र के माध्यम से दी जा चुकी थी परंतु निगम के अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत द्वेष के चलते बैक डेट में नोटिस जारी किया गया और अवैधानिक कार्रवाई करते हुए उनके परफॉर्मेंस राशि तथा अमानत राशि को राजसात कर लिया गया। ठेकेदार ने यह भी आरोप लगाया कि जिस नोटिस को आधार बनाकर कार्यवाही की गई है वह नोटिस उन्हें प्राप्त ही नहीं हुआ है।

बहरहाल अब मामला न्यायालय की शरण में है तो इस मामले में कौन सा पक्ष सही है या कौन गलत इस पर टिप्पणी उचित नहीं। परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की निगम में बैक डेटिंग का खेल पुराना हैं। अपनी गर्दन बचाने के लिए निगम अधिकारी कागजी कूटरचना करते हुए निगम आयुक्त से लेकर जिले के उच्च अधिकारियों को भी गुमराह करने से बाज नहीं आते चाहे वह अधिकारी IAS ही क्यों ना हो। ऐसे में ठेकेदार के द्वारा निगम प्रशासन पर लगाए जा रहे आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। पर इतना जरूर कहा जा सकता है की जिस प्रकार के गंभीर आरोप ठेकेदार ने निगम अधिकारीयों और खासकर आयुक्त प्रतिष्ठा ममगई पर लगाए हैं और अपनी याचिका में उन्हें सीधा पार्टी बनाया है उससे आयुक्त प्रतिष्ठा की प्रतिष्ठा जरूर दांव पर है।

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