तिरछी-नज़र @ रामअवतार तिवारी
तिरछी नजर 👀 : रामअवतार तिवारी
ईडी-आईटी का कहर…
प्रदेश में विशेषकर सत्ताधारी दल के नेताओं, अफसरों के अलावा सरकार के करीबी कारोबारियों पर ईडी और आईटी का कहर टूट पड़ा है।
चर्चा है कि ईडी ने एक मंत्री को समन भी जारी किया है। मगर आगे की कार्यवाही की कानूनी उलझनों की वजह से अटकी पड़ी है। शह और मात का खेल चल रहा है। आगे क्या होता है, यह तो कुछ दिन बाद पता चलेगा।
रात का अज्ञातवास
ईडी और आईटी के छापों से घबराये नेताओं-अफ़सरों ने बचने के लिए पतली गली खोज ली है। दिनभर परिवार और दफ़्तर में रहने वाले ये लोग रात होते ही इस गली के रास्ते अज्ञातवास में चले जाते हैं। यानी उनकी रातें कहीं और बीतती है। इसका ग़लत अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिये। असल में छापे अलसुबह पड़ते हैं। उस वक़्त तक ज़्यादातर नेताओं- अफ़सरों की नींद नहीं खुलती। ऐसे में उन्हें ईडी या आईटी के हत्थे चढ़ने का अंदेशा बना रहता है। अंदेशे में डूबे लोगों ने रात के ठिकाने अलग बना लिए हैं। एक नेता के भाई की रात्रिकालीन आरामगाह की जानकारी लीक हो गई थी। इस कारण उन्हें होटल से गिरफ़्तार कर लिया गया। एक नेता तो दो छापों के बावजूद घर पर नहीं मिले। अब नेता-पुत्र भी रात बाहर बिताने लगे हैं। कुछ अफ़सर भी इसी रास्ते पर हैं। वहीं कुछ ठिकाने तलाश रहे हैं।
सत्तू भैय्या से सीखें..
गुटीय राजनीति के चलते उपेक्षा और मान सम्मान खोजने वालें की संख्या हर पार्टी में बहुत रहती है। ऐसे लोगों को सत्यनारायण शर्मा के धैर्य और सक्रियता से सीख लेनी चाहिए। इसके दो बड़े उदाहरण हाल ही में देखने को मिला। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान उनके संसदीय राजनीति के उम्र के कई लोग सामने की कुर्सी में फुलमालाओं से लदे बैठे थे और सत्तू भैय्या कुर्सी के पीछे धक्का मुक्की खाते फुलमाला लेकर खड़े थे। यही नहीं ,राजभवन मेंं मोहन मरकाम के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान उन्हें दूसरी पंक्ति में कुर्सी मिली फिर भी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से गले मिलकर खुशी जताते रहे। इन कार्यक्रमों में धनेन्द्र साहू सहित कई कांग्रेस नेता नदारद रहे। मोहन मरकाम ने तो अपने समाज के रिटायर्ड आईएएस,आईपीएस और रिटायर्ड जजों को भी खास तौर पर आमंत्रित किया था। जिन्हें भी प्रथम पंक्ति में कुर्सी मिल गयी थी।
रमन सिंह के दौरे पर रोक हटी..
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में अमित शाह के साथ प्रदेश के नेताओं की बैठक में कई फैसले लिए गए। फैसले आगामी दिनों धरातल में दिखेंगे लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को तवज्जों मिलने की खबरें आ रही है। अभी तक तीन बार के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को प्रदेशभर में दौरा करने की रोक लगा दी गयी थी, जिसे हटाकर अब प्रदेश के मैदानी इलाके खासकर राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र सहित कई जिलों में दौरा कार्यक्रम बनाने के संकेत दिये गये हैं।
कई बड़े विश्वविद्यालय खुलेंगे…
छत्तीसगढ़ विधानसभा में विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक लाया गया। इस विधेयक के पारित होने के बाद प्रदेश के कई नेता और व्यवसायी राज्य सरकार से विश्व विद्यालय खोलने में मिल रही छूट के बाद सक्रिय हो गये हैं। विधानसभा में इस मुद्दे को सभी दलों ने सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया। इस विधेयक को प्रस्तुत करने वाले उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल विधेयक पर सर्वसम्मति होने के बाद खुशी में संसदीय प्रक्रिया पूरा होने के पहले ही सदन से चले गये। हर मामले पर हंगामा मचाने वाले विपक्ष भी शांत रहे। कई बार विधानसभा उपाध्यक्ष ने पुकार लगाई पर संसदीय मंत्री ने विषय को संभाल लिया।
अमृत खलको को संविदा ?
राज्य सरकार व राजभवन के बीच सेतू की भूमिका निभाने वाले आईएएस अधिकारी अमृत खलको इसी माह सेवानिवृत्त होने वाले हैं। खलको के सेवानिवृत्त होने के पहले संविदा नियुक्ति देकर राजभवन सचिव पद पर यथावत बने रहने की चर्चा है। पूर्व राज्यपाल के समय सरकार व राजभवन के बीच चल रही टकराहट कम हो गयी है। वर्तमान राज्यपाल के कार्यशैली से सरकार कर्ताधर्ता भी संतुष्ट हैं।
उपमुख्यमंत्री के राज
उपमुख्यमंत्री टीएस बाबा साफगोई के लिए जाने जाते हैं। उनके इस तरह के बयानों से कई बार सरकार और पार्टी को परेशानी होती है। विधानसभा सत्र के दौरान विपक्षी विधायक शिवरतन शर्मा और अजय चंद्राकर ने उप मुख्यमंत्री बनने की बंद कमरे की कहानी सुनाने की मांग की। बिना असहज हुए टी.एस.बाबा ने कहा बंद दरवाजे में हुई चर्चा को फिलहाल सार्वजनिक नहीं किया जा सकता पर समय आने पर बता सकते हैं। सदन के भीतर के इस तरह बयान से बगल में बैठे दो मंत्री की आंखें मटकने लगी।
पद चाहिये, यात्रा नहीं
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं की लक्ज़री लाइफ स्टाइल से केंद्रीय नेतृत्व परेशान है। आलम यह है कि आधा दर्जन प्रभारी तैनात करने के बावजूद पार्टी और कार्यकर्ताओं को मैदान में नहीं उतारा जा सका है। तय कार्यक्रमों पर भी अमल नहीं हो पा रहा है। मसलन, तीन महीने पहले तय हुआ था कि संभाग स्तर पर पद-यात्रा निकाली जाएगी। यात्रा तो नहीं निकली अलबत्ता कुछ पदों पदों की बंदरबाँट हो गई। बाक़ी लोग टिकट की दौड़ में शामिल हो गये। अब चुनाव सिर पर है तो पद-यात्रा का घोषित कार्यक्रम खटाई में पड़ता नज़र आ रहा है। हालत यह है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह एक महीने में तीन बार रायपुर दौरे में संगठन की स्थिति पर चिंता जता चुके हैं। मगर यहाँ के नेताओं को सिर्फ़ पद की चिंता है, यात्रा की नहीं।
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