‘टेलोमियर’ को साधिये जनाब! @ डॉ. सुधीर सक्सेना
डॉ. सुधीर सक्सेना
क्या आप टेलोमियर को जानते हैं? शायद नहीं। यह अचरज की बात नहीं है, अलबत्ता आपको उसे जानना चाहिये। टेलोमियर को जानना मानव-जीवन के एक कीमती रहस्य को जानना है। मनुष्य के जीवन का एक बड़ा भेद टेलोमियर से जुड़ा हुआ है। टेलोमियर का अस्तित्व उतना ही पुराना है, जितना इस धरती पर मनुष्य का उद्भव। टेलोमियर मनुष्य के गुणसूत्र का अविभाज्य अंग है। गुणसूत्र है, तो टेलोमियर है। बिना उसके आप गुणसूत्र अर्थात क्रोमोसोम्स की कल्पना नहीं कर सकते।
करीब एक दशक पहले की बात है। सन 2015 में तीन वैज्ञानिकों सुश्री एलिजाबेथ ब्लैकबर्न, कैरोल ग्रेइडर और जैक डब्लू जोस्ताक को टेलोमियर प्रभाव और टेलोमिरेस की खोज के लिये नोबुल पुरस्कार से नवाजा गया। टेलोमियर जहां गुणसूत्र का ऊपरी हिस्सा है, वहीं टेलोमिरेस तत्संबंधित एन्जाइम। कैरोल, जैक और सुश्री कैरोल की यह खोज बड़ी मानीखेज थी और इसने मनुष्य की जरा या वृद्धावस्था के रहस्य को बखूबी उदघाटित कर दिया। वैज्ञानिक त्रयी ने पाया कि मनुष्य के बुढ़ापे का राज गुणसूत्रों के ऊपरी सिरे पर स्थित छोटी सी संरचना में छिपा है। इसकी अवस्थिति के कारण हम इसे कैप या टोपी की संज्ञा दे सकते हैं। चाहें तो हम इसे कह सकते हैं : ‘गुण-किरीट।’
क्रोमोसोम के ऊपरी छोर पर स्थित टेलोमियर नामक टोपीनुमा संरचना की खोज क्या हुई, वृद्धावस्था और कैंसर से जुड़े अनुसंधान में नये सिरे से तेजी आ गयी। इसकी परिधि में बुढ़ापे की रोकथाम और कैंसर के उपचार के उपाय भी शरीक थे। वस्तुत: मामला कोशाओंके विखंडन से जुड़ा हुआ है। क्रोमोसोमों के लिये टेलोमियरों की सलामती मायने रखती है। यदि टेलोमियर सलामत है, तो गुणसूत्र बचे रहते हैं। उम्र के साथ टेलोमियर आपदाग्रस्त होते हैं। वे सिकुड़ते हैं यानि आकार में छोटे होते हैं, तो समझ लीजिये कि शरीर में बुढ़ापा व्याप रहा है। उनका क़द बचा रहे या धीमी गति से घटे तो समझ लीजिये कि बुढ़ापे के आपके पास फटकने में देर हैं अथवा वह दबे पांव आहिस्ता-आहिस्ता आयेगा। इस संदर्भ में सुश्री ब्लैकबर्न का कथन प्राय: उदधृत किया जाता है। उन्होंने कहा था – “It is about keeping healthier for longer” वैज्ञानिकों की त्रयी ने लंबे समय से अनुत्तरित इस यक्ष-प्रश्न का उत्तर खोज लिया था कि क्या लंबे टेलोमियर वाले लोग लंबे समय तक जीवित और स्वस्थ रहते हैं? यद्यपि यह सच है कि सिर्फ टेलोमेयर ही दीर्घायु को निर्धारित नहीं करते, किन्तु जरा और आयुष्य में उनकी प्रभावी भूमिका से अनेक लंबित जिज्ञासाओं का समाधान मिल गया। जब टेलोमियरो की लंबाई यानि कद के आधार पर लोगों को दो समूहों में वर्गीकृत किया गया तो यह पाया गया कि लंबे टेलोमियरधारी छोटे टेलोमियरधारियों की तुलना में औसतन पांच साल ज्यादा जीते हैं। एक बड़ा प्रश्न यह भी था कि क्या टेलोमियरों में बुढ़ापे और कैंसर की कुंजी छिपी हुई है? एक और अहम सवाल था कि क्या इन गुण-किरीटों के जरिये बुढ़ापे को व्यापने से रोक जा सकता है अथवा कैंसर की रोकथाम व उपचार संभव है?
हम जानते हैं कि कोशिका के नाभिक के भीतर जीन्स डीएनए के सर्पिल दोहरे रज्जुक अणुओं के साथ व्यवस्थित रहते हैं। इन्हीं गुणसूत्रों के ऊर्ध्व सिरों पर डीऑक्सीराबो न्यूक्लियक अम्ल (डीएनए) से निर्मित टेलोमियर रूपी खंड होते हैं, जो हमारे आनुवंशिक, डाटा की रक्षा करते हैं और कोशिकाओं के विभाजन को संभव बनाते हैं। वैज्ञानिकों ने अनुसंधान से पाया कि इन्हीं ऊर्ध्व-खंडों या किरीटों में बुढ़ापे और कैंसर के रहस्य छिपे हुये हैं। दिलचस्प तौर पर टेलोमियरों की तुलना जूत के तस्मों (फीतों) के प्लास्टिक या हल्की धातु से मढ़े सिरों से की जा सकती है। यह तुलना इस नाते सटीक है, क्योंकि उनका मढ़ा होना उनके सिरों को उखड़ने या आपस में चिपकने से बचाता है, जो आनुवंशिक जानकारी को नष्ट या अस्तव्यस्त होने का कारक बन सकता है। इसका अगला महत्वपूर्ण पहलू यह है कि किसी भी कोशिका के विभाजन की स्थिति में टेलोमियर छोटे हो जाते हैं। उनके अधिक छोटा होने पर कोशा विभाजित नहीं हो पाती और निष्क्रिय या मृत हो जाती है। यह छोटा होने की प्रक्रिया उम्र बढ़ने, कैंसर और मृत्यु के उच्च जोखिम से जुड़ी हुई है। इसी के चलते टेलोमियर को ‘बम-फ्यूज’ भी कहा जाता है। टेलोमियर एक तरह सुरक्षा प्रणाली भी है। यदि ये टोपी-संरचनाएं नहीं होतीं, तो गुणसूत्र आपस में जुड़ अथवा टकरा सकते थे, जिससे आनुवंशिक खाके के दूषित होने, उसमें खराबी या विकार आने अथवा अपघात या मृत्यु होने का खतरा था। यहां हम टेलोमियर को सिर पर रखी पाग या पगड़ी के तौर पर समझ सकते हैं। यदि वे न हों तो ऐसी दिक्कते स्वाभाविक हैं कि कोशिकायें विभाजित होना बंद कर दें या फिर असमय या समय पूर्व मर जायें। प्रसंगवश, उल्लेखनीय है कि टेलोमेरेज नामक एंजाइम सिर और बेस को जोड़ने के साथ-साथ उसे घिसने से बचाने का भी काम करता है। कोशिकाओं के बारंबार विभाजन पर पर्याप्त एंजाइम नहीं बन पाता। फलत: टेलोमियर छोटे होते जाते हैं और कोशिकाएं बूढ़ी। यह शुक्राणु और अंडों में सक्रिय रहता है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है। इस तरह जीवन चक्र में इसकी प्रभावी भूमिका है। उल्लेखनीय है कि कोशिका के कैंसरग्रस्त होने पर विभाजन की आवृत्ति बढ़ जाती है। फलत: टेलोमियर छोटे होते जाते हैं, जिसका अर्थ है मृत्यु। यकीनन टेलोमियर को मापना कैंसर का पता लगाने का एक तरीका हो सकता है। यही नहीं, यदि वैज्ञानिक टेलोमियर को ‘थामने’ का तरीका खोज लें तो वे कैंसर-कोशाओं को बूढ़ा करके अथवा उन्हें मरवाकर कैंसर से लड़ने में सक्षम हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर में इस विधि से ट्यूमर कोशाओं को मारने में कामयाबी पाई, लेकिन इसमें बहुत जोखिम भी है, क्योंकि इसका प्रजनन-क्षमता, घाव-भरने, प्रतिरक्षा-प्रणाली और रक्त-कोशिकाओं के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
बहरहाल, यह निर्विवाद है कि टेलोमियर समय के साथ सिकुड़ते हैं। उनका सिकुड़ना बुढ़ापे का बायस है। प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या इसे रोका जा सकता है? खोज यही कहती है कि ऐसा मुमकिन नहीं है। हाँ, इसे धीमा किया जा सकता है। समय या उम्र के साथ इनका छोटा होना स्वाभाविक है किंतु कुछ उपाय है, जिन्हें बरतने से इनसे घटने को धीमा या नियंत्रित किया जा सकता है। इन उपायों में शामिल हैं। संतुलित आहार, आनुपातिक वजन, धूम्रपान का परित्याग पर्याप्त नींद, तनाव पर नियंत्रण और नियमित व्यायाम। टेलोमियर-आहार संरक्षण तालिका भी इसमें मदद कर सकती है। इसके अनुसार विटामिन सी, पोलीफीनॉल्स और एंथोसायनिंस युक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिये। टेलोमियर की लंबाई का फलियों, नट्स, दुग्ध उत्पादों, फलों, कॉफी, फलों के शुद्ध रसों और समुद्री सिवारों से सीधा और सकारात्मक रिश्ता है। गुण-किरीटों का क्षति से बचाने के लिए जरूरी है कि रक्त मांस, अल्कोहल और संसाधित-मांस के सेवन से बचा जाये। टेलोमियर की सेहत का आहार और जीवनशैली से सीधा रिश्ता है। व्यक्ति को शर्करा के अधिक सेवन से भी बचना चाहिए। छीमियों तथा मिलेट या मोटे अनाज का सेवन टेलोमियर और प्रकारांतर से दीर्घायु के लिए लाभदायी है। अनुसंधान से यह प्रमाणित हुआ कि पश्चिमी आहार पद्धति लाभकारी नहीं है। इसके विपरीत विवेकसम्मत आहार पद्धति को अपनाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि भूमध्य सागरीय आहार सर्वोत्तम है, जिसमें तरकारियों, फलियों, दालों (अपरिष्कृत) फलों, मछली, जैतून के तेल, थोड़ी सी वाइन आदि को वरीयता दी जाती है। इससे टेलोमियर के घटने के साथ ही मृत्यु का जोखिम भी कम है। यानि आप दीर्घायु रहेंगे और स्वस्थ भी। इन सारी चीजों के साथ-साथ टेलोमियर घट-बढ़ का श्वसन और पर्यावरण से भी रिश्ता है। आप समझ सकते हैं कि मध्य-एशियाई देशों में लोगबाग स्वस्थ और लंबी उम्र कैसे जीते हैं? स्वास्थ्य और दीर्घायु के मान से ओमेगा 3 और फोलिक एसिड जैसे तत्व भी मायने रखते हैं। बहरहाल, दुनियाभर में अनुसंधान जारी है। टेलोमियर को जाने के बाद आपके लिये यह जरूरी है कि आप अपने टेलोमियर का ख्याल रखें। इसके लिए अपनी जीवन शैली और आहारतालिका पर गौर करें। यदि आपने इनके जरिये अपने टेलोमियरो को साध लिया तो यकीन मानिये कि टेलोमियर आपको निराश नहीं करेंगे।