हरित और प्रदूषण मुक्त कोरबा बनाने का है लक्ष्य, सबको लेनी होगी जिम्मेदारीः आयुक्त आशुतोष
कोरबा 10 दिसम्बर। नगर पालिका निगम, कोरबा के आयुक्त आशुतोष पांडे सोमवार को प्रेस से मिलिये कार्यक्रम में शामिल होने टीपी नगर स्थित तिलक भवन पहुंचे।
इस दौरान जिले के पत्रकारों रूबरू हुए और कोरबा शहर के विकास को लेकर अपना विजन व रोडमैप सामने रखा। यह भी कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आईएएस अवार्ड होने की खुशखबरी भी कोरबा की धरती पर ही प्राप्त हुई। इसलिए कोरबा जिला सदैव खास रहेगा,। नगर निगम आयुक्त आशुतोष पांडे अपने अनुभव साझा करते हुए यह बताया कि 2008 में वह राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बने। इसके पहले वह पत्रकार के तौर पर सक्रिय पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हुए थे। गुरु घसीदास विश्वविद्यालय से जनसंपर्क व पत्रकारिता में डिग्री लेने के बाद राष्ट्रीय अखबार से पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की।
उन्होंने कहा कि हमेशा मुझे लगता था कि कभी भी अपने सभी सेब एक बक्से में मत रखो। 2008 में मुझे एक रास्ता तय करना था। उस समय मीडिया जगत प्रिंट से इलेट्रॉनिक में शिफ्ट हो रही थी। सनसनी और सबसे तेज खबर देने का दौर था। जब पत्रकारिता की नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया। तब ऐसे सवाल पूछे गए जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के थे। आमतौर पर छत्तीसगढ़ के एक लडके के पास इन सब सवालों का जवाब नहीं होता, लेकिन चुंकि मैं सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था। इसलिए उन सभी सवालों के जवाब दे पाया। इंटरव्यू लेने वाले अधिकारियों ने कहा कि अब वह सब भूल जाओ काम सुबह 9.00 बजे शुरू हो जाएगा। रात के 3.00 बजे तुम घर जा पाओगे और ?6000 महीने की तनख्वाह मिलेगी। काम कर पाओगे, मैंने हामी भरी और काम शुरू किया। जब मेरा प्री क्लियर हो गया तब दिवाकर मुक्तिबोध ने मुझे सलाह दी कि तुम्हें ईश्वर में एक अवसर दिया है। इसका उपयोग करो। इसके बाद मेरा मेंस क्लियर हुआ और मैं अधिकारी बन गया।
जीवन में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो आपको सही समय पर सही सलाह दें। उन्होंने मुझे यह भी कहा था कि यदि सिविल सेवा में असफल हो जाओगे, तब भी संस्थान के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले रहेंगे। किसी प्राइवेट संस्था में ऐसा आश्वासन मिलन तब काफी बड़ी बात हुआ करती थी। जब मेरा सिलेक्शन हुआ, वापस उनके पास गया तब मेरी आंखें नम थी। सरकारी व्यवस्था आने के बाद असरकारी हो पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है। खुद को बंधन में रखना पड़ता है, सभी बातें हम जाहिर नहीं कर सकते। बड़ा ही व्यवस्थित रहना पड़ता है। आप खुलकर अपने विचार कहीं भी व्यक्त नहीं कर सकते। हम सारा काम प्रतिनिधियों के आदेश और निर्देश पर करते हैं। किसी भी सरकारी अधिकारी को यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए।