हर बुधवार ( 5 अप्रेल 2023 )

मोबाइल उगलेगा राज

ईडी ने प्रदेश के उद्योगपतियों, अफसरों, होटल व्यवसायियों और आबकारी ठेकेदारों व नेताओं के घर और आफिस में छापे के बाद सबसे पहले मोबाइल को अपने कब्जे में लिया।चर्चा है कि तीन दिन से चल रहे छापों में अब तक कुछ हाथ नहीं निकला। पहले दिन तो दफ्तर में आधी रात को ज्यादातर लोगों की कुटाई भी की और फिर सबके बयान लिए ।
एक- दो लोगों से एआईसीसी के अधिवेशन के खर्चों का हिसाब किताब भी मांगा गया लेकिन कोई अतिरिक्त जानकारी नहीं मिल पाई ।
बताते हैं कि ईडी के अफसर सूर्यकांत तिवारी से लेकर आज की तारीख तक जितने लोगों के घर छापे मारे सभी के मोबाइल को खंगाल रहे हैं। ईडी के पास ऐसी तकनीक है जिससे तीन साल पुरानी वाट्सऐप चैटिंग को निकाला जा सकता है। पहले भी वॉट्सअप मैसेज को कोर्ट में पेश भी किया जा चुका है और आगे भी यही करने वाली है । अब क्या कुछ निकलता है, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।

ईडी के छापे के राजनीतिक

जिन राज्यों में ईडी के धुआंधार छापे पड़े हैं ।उन सभी राज्यों में भाजपा के जनाधार का आंकलन करने में भाजपा के रणनीतिककार जुटे हैं। दिल्ली में ईडी के छापे के बाद भाजपा की हालत पतली है। मुंबई में ईडी के सहारे सरकार बदलने के बाद भाजपा विरोधियों की हालत तेजी से सुधर रही है। बिहार में जोरदार छापे के बाद भाजपा विरोधी जमीन तैयार हो रही हैं। पश्चिम बंगाल में ईडी के छापे के बाद भाजपा के कार्यकर्ताओं में भगदड़ है। कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में ईडी के लगातार छापे के बावजूद भी कांग्रेस को ही मजबूत माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ में तो हड़बड़ी में भाजपा के कोर कमेटी के सदस्य और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल के दफ्तर में छापे डल गए । कहा जाता है कि एजेंसियों को अलिखित निर्देश हैं कि भाजपा के लोगों के यहां छापे न डाले जाए, इसकी वास्तविकता का . तो पता नहीं है लेकिन इस छापेमारी से भाजपा के अंदरखाने में बेचैनी है।
हाल यह है कि छापेमारी के बाद से भाजपा नेताओं ने खामोशी ओढ़ ली है।

राजेश टोप्पो अभी भी झंझट में

रमन शासनकाल में एक दर्जन जिन
विवादास्पद अफसरों पर तरह-तरह के आरोप थे, एक-एक कर राजेश टोप्पों को छोड़कर सभी सुरक्षित बच निकले। जनसंपर्क आयुक्त रहे राजेश टोप्पो का मामला अभी तक कई स्तरों में लंबित पड़ा है। आईएस अधिकारी रजन कुमार और बसंल सहित ज्यादातर अधिकारी केंद्र सरकार में चले गए हैं अन्य अधिकारी छत्तीसगढ़ सरकार में ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं। राजेश टोप्पो के मामले में कई तरीके के बेरूखी का मामला सामने आ रहा है। कांग्रेस के अलावा भाजपा नेताओं की भी राजेश टोप्पो के प्रति नाराजगी बनी हुई है। इसलिए शायद शासन स्तर पर मामला अटका हुआ है।

डीजीपी डीएम अवस्थी को तोहफा

पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी 31 मार्च को रिटायर होने के बाद एक बार फिर से पुलिस मुख्यालय में वापसी होगी। राज्य सरकार ने उनके काम को देखते हुए एक नया पद का सृजन किया है। पुलिस मुख्यालय में ओएसडी के रूप में पदस्थ रहते हुए आर्थिक अन्वेषण का चीफ का पद देकर सेवाएं ले सकते हैं। कैबिनेट में नया पद आने के बाद इस पद के लिए डीएम अवस्थी के नियुक्ति इसी सप्ताह होने की संभावना जताई जा रही है। अमन सिंह, मुकेश गुप्ता सहित कई प्रमुख मामलों को निपटाने में सफलता हासिल करने के बाद यह पुरस्कार मिलने की उम्मीद की जा रही है। आर्थिक अपराध शाखा ब्यूरो को लेकर राजेश मिश्रा सहित कई अधिकारियों के नाम चलने लगे थे, जिन्हें थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा। आगामी दिनों पुलिस के कई बड़े अधिकारी सेवानिवृत्ति हो रहे हैं। इसमें से एक अधिकारी को पुलिस प्राधिकरण में पद ेदेने की चर्चा है।

वनविभाग में फेरबदल की कवायद

वन विभाग में उच्च स्तर पर फेरबदल इसी माह होने की तैयारी शुरू हो गई है। वन विभाग के प्रमुख संजय शुक्ला रेरा में होने वाली नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं। इसी माह बैठक होने की संभावना है। संजय शुक्ला के स्थान पर नई नियुक्ति को लेकर माथापच्ची हो रही है। वन विभाग में शीर्ष स्तर पदोन्नति को लेकर डीपीसी की बैठक 15 अप्रेल तक हो जाएगी। इसके पहले गोटी बैठाने में अधिकारी लगे हैं। अरण्य भवन में इस समय काम के बजाय समीकरण में ज्यादा बहस हो रही है।

कीचड़ में ‘कमल’

कभी हमप्याले-हमनिवाले हुआ करते थे दोनों दोस्त। लोग मिसाल देते थे इस दोस्ती की। भ्रम टूटने में 15 साल लग गये। सत्ता बदली और धीरे-धीरे दोनों के रास्ते भी बदल गये। इतने बदले कि रोजाना के दूध-दही के संबंध भी टूट गये। उद्योगपति मित्र ने नये तालाब में ‘कमल’ खिला दिया। तालाब में कीचड़ ज़्यादा था। सफाई के लिये केंद्रीय एजेंसी आई तो ‘कमल’ मुरझा गया। अब मुश्किल में है। पुराने दोस्तों का साथ छूट गया और नये का साथ मुसीबत बन गया है।आखिर जाएं तो कहां जाएं?

पप्पू पर फंदा क्यों?

कारोबार और राजनीति में अपने वाणी-व्यवहार की बदौलत धाक जमाने वाले पप्पू भैया पर केंद्रीय एजेंसी का फंदा क्यों कसा? जबकि वे सभी दलों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। उन्हें जानने-पहचानने वाले खुद हक्का-बक्का हैं। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। अल्बत्ता चर्चा के दौरान खुलासा हुआ कि पिछली सरकार के दो पॉवरफुल अफसरों से उनका खास याराना था। एक दोस्त के हाथ प्रशासन की कमान थी और दूसरे के हाथ पुलिस की। सरकार जाने के बाद दोनों दोस्त ज़्यादातर दिल्ली में रहते हैं। उनके साथ ‘पुराना हिसाब’ क्लियर नहीं हुआ है। बस इसी वजह को लोग कार्रवाई की वजह मान रहे हैं। असल खुलासा तो शीघ्र होगा।

तिरछी-नज़र@रामअवतार तिवारी, सम्पर्क-09584111234

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