केनाडांड पंचायत में स्वाधीनता के 74 साल बीतने पर भी मूलभूत समस्याएं यथावत
कोरबा 21 दिसंबर। कटघोरा और पोड़ीउपरोड़ा विकासखंड के सीमावर्ती इलाके में स्थित केनाडांड पंचायत में मूलभूत सुविधाओं की बहाली नहीं हो सकी है। स्वाधीनता के 74 साल बीतने पर भी समस्याएं कायम हैं। लोग इस बात से नाराज हैं कि बीते कई दशक में अनेक विधायकों को बदलते हुए देखा गया है लेकिन यहां की स्थिति का कुछ नहीं हो सका। मंत्रियों के अलावा कलेक्टर तक समस्याओं की जानकारी हो चुकी है। इन सबके बावजूद केनाडांड की स्थिति यथावत बनी हुई है।
विकासखंड पोड़ी उपरोड़ा के अंतर्गत ग्राम पंचायत दर्राभाठा का आश्रित ग्राम केनाडांड इतने वर्षों के बाद भी ना तो पक्की सड़क प्राप्त कर सका है और ना ही दूसरी सुविधाएं। दो वर्ष पहले ही दर्राभाठा को ग्राम पंचायत का दर्जा मिला। इससे पहले घरीपखना पंचायत में इसे शामिल किया गया था। लंबे समय तक पुरानी पंचायत का हिस्सा रहने के बाद भी ग्रामीण विकास के लिए कोई जरूरी काम नहीं किये गए। जेंजरा बायपास के एक सिरे से केनाडंाड की दूरी अधिकतम डेढ़ किलोमीटर है। नजदीक से ही बहने वाली नदी इस इलाके की संरचना डुबान क्षेत्र की बनाती है। तीन तरफ से पानी से घिरे होने के कारण गांव के सामने अजीब समस्याएं हैं। ग्रामीणों ने बताया कि भले ही दूसरे इलाके बिजली से रौशन हो रहे हैं लेकिन यहां की तस्वीर बिल्कुल अलग है। स्वच्छ पेयजल उनके लिए कल्पना का विषय है। भारत सरकार की स्वच्छ भारत योजना के अंतर्गत चुनिंदा हितग्राहियों को ही इसका लाभ मिल सका है। लोगों की शिकायत है कि बीते कई दशक में अनेक चुनाव में उन्होंने वोट डाला है। विधायकों को बदलते जरूर देखा गया है लेकिन विडंबना है कि कोई भी गांव की स्थिति को ठीक नहीं कर सका। इसलिए लोग अब कहते हैं कि नेतृत्व को ठीक करने के लिए मानसिकता बनानी होगी। राजनीतिक जागरूकता आये बिना किसी का भला नहीं हो सकता। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि वर्तमान विधायक मोहितराम केरकेट्टा केवल बड़े.बड़े दावे कर रहे हैं लेकिन डुबान क्षेत्र के आसपास की समस्याएं उनकी नजर से ओझल है। यहां तक कि कई मौकों पर मुख्यमंत्री से लेकर कलेक्टर के जनदर्शन में केनाडांड और दर्राभाठा की परेशानी बताई जा चुकी है फिर भी कुछ नहीं हो सका।
समस्यामूलक गांवों में जिस तरह के नजारे होते हैं कुछ वैसा ही हाल केनाडांड का है। पक्की सड़क से गांव को मुख्य मार्ग तक नहीं जोड़ा गया है। यही नहीं जिस क्षेत्र में वाहनों की पहुंच होती है। वहां के लिए रोड कनेक्टीविटी भी नहीं है। इसके चलते गंभीर मरीज अथवा गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाने में समस्या होती है। उनके गांव तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंचती। इस स्थिति में संबंधितों को खाट के सहारे डेढ़ से दो किलोमीटर का सफर तय कराया जाता है तब कहीं जाकर एंबुलेंस के भीतर उनकी पहुंच हो सकती है।