पांच सौ की संख्या में स्कूल ड्रेस नाले में बहती मिली, शिक्षा विभाग कर रही मामले की जांच
कोरबा 13 जून। एक ओर शासकीय स्कूलों के बच्चों तक गणवेश पहुंचने लगभग हर साल विलंब होता है। कई बार दूर-दराज के ग्रामीण अंचलों में बच्चों को पुराने कपड़ों में ही स्कूल आते देखे जाते हैं। दूसरी ओर सैकड़ों की संख्या में बिलकुल नए गणवेश नाले में पड़े मिले हैं। करीब 500 की संख्या में नीले रंग के ट्यूनिक, पेंट और कमीज का गट्ठर किसी ने बच्चों की बजाय नाले के हवाले करने की कोशिश की। गणवेश जब्त कर शिक्षा विभाग ने मामले की जांच शुरू कर दी है।
जिला मुख्यालय से लगे ग्राम नकटीखार के पिकनिक स्थल नाले में बच्चों को बांटे जाने वाले यूनिफार्म का गठ्ठा पानी में बहता हुआ स्थानीय युवकों ने देखा। उत्सुकतावश पास जाकर देखा तो सभी कपड़े बिल्कुल नए निकले। शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए शासन की ओर से निश्शुल्क गणेवश की सुविधा प्रदान की जाती है। ऐसा इसलिए, ताकि उन्हें निर्धनता के चलते फटे-पुराने कपड़े कम से कम स्कूली शिक्षा की राह में रोड़ा न बन सके। जरूरतमंद वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा की राह प्रशस्त करने शासन की इस महत्वाकांक्षी योजना में विभागीय अमले की लापरवाही बेवहज की मुश्किलें पैदा कर रहीं। गणवेश को समय रहते वितरित नहीं कर पाने की नाकामी छुपाने इस तरह का कदम स्वीकार योग्य नहीं। इस तरह बच्चों के लिए सिला, गए गणवेश को नाले में बहाने की कोशिश कर प्राइमरी व मिडिल के छात्र-छात्राओं के लिए संचालित इस योजना का मजाक बनाया जा रहा, जो किसी भी नजरिए, से उचित नहीं। सरकारी गणवेश की यह गठरी शनिवार को नकटीखार स्थित नाले में पाई गई है।
कुछ दिन पहले ही बच्चों को बांटने मिले गणवेश व पुस्तकें के कोरबा बीईओ कार्यालय में पदस्थ बाबू के दादर स्थित निर्माणाधीन मकान में मिलने का मामला भी सामने आया था। अभी इसकी जांच चल ही रही थी कि दूसरी घटना हो गई। नाला में मिले बच्चों के बिल्कुल नए गणवेश गट्ठर की शक्ल में आखिर क्यों फेंका गया, यह जांच का विषय है। शिक्षा विभाग की ओर से यह भी अंदेशा लगाया जा रहा कि बच्चों को न बांट पाने के कारण एक बार फिर बड़ी मात्रा में गणवेश न पकड़ा जाए और कार्रवाई न हो, इस डर से ही किसी ने यहां नाले में उन्हें फेंककर बचने की नाकाम कोशिश की होगी। जिला शिक्षा अधिकारी सतीश पांडेय का कहना है कि नाले में मिले गणवेश नए तो हैं, पर कम से कम दो साल पहले के हैं। संभवतः वितरण न हो पाने पर कार्रवाई से बचने के लिए ही किसी ने उन्हें नाले में फेंककर छुपाने की कोशिश की होगी। पांडेय ने कहा कि नाले में मिले गणवेश जिला खनिज न्यास मद की राशि के नहीं, बल्कि शासन से सीधे तौर पर भेजी गई खेप है। इसका डीएमएफ से लेना-देना नहीं। रायपुर से गणवेश जिले के 118 संकुलों में सीधे आते हैं, जहां से स्कूलों को भेज दिए जाते हैं। इस मामले की जांच कर रहे हैं। दोषी पर विभागीय जांच के साथ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। शिक्षा विभाग का कहना है कि जिन संकुलों में गणवेश भेजे जाते हैं, उन्हें प्रत्येक स्कूल तक वितरण का लक्ष्य और समय दिया जाता है। इस तरह अब यह देखना होगा कि संकुलों को भेजे गए गणवेश बंटे या नहीं। कोरबा बीईओ अंतर्गत यह मामला सामने आया है, इसलिए शहर से लगे संकुलों से रिकार्ड खंगालने शुरूआत की जाएगी। दिए गए लक्ष्य के अनुरूप जिस संकुल में काम पूरा नहीं होना पाया जाएगा, वहां गड़बड़ी पकड़ी जाएगी। जांच में यह सारी बातें सामने आ जाएंगी।
इस मामले में युवा नेता मनीराम जांगड़े का कहना है कि यह राज्य शासन की बहुत ही सराहनीय और महत्वपूर्ण योजना है, जो अभावग्रस्त व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को मुख्य धारा में लाने की राह सुनिश्चत करता है। इस तरह उन्हें नदी-नालों में फेंका जाना अनुचित है। उन्होंने कहा कि वे इस संबंध में उच्च अधिकारियों से जांच की मांग करता हूं। जिस किसी भी कर्मचारी ने ऐसा किया गया है, उसे तत्काल प्रभाव से निलंबित करते हुए दंडित किया जाना चाहिए।