मुंगेली में पत्रकार उत्पीड़न, धरना पर बैठे पत्रकार

मुंगेली 28 अक्टूबर। पुलिस और प्रशासन के खिलाफ समाचार प्रकाशित करने के बाद पत्रकारों को नोटिस देने और देर रात पुलिस द्वारा पत्रकारों को डराने धमकाने से मुंगेली का पूरा पत्रकार बिरादरी आक्रोशित है , जिन्होंने जिला पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में फास्टरपुर क्षेत्र में सक्रिय एक युवक द्वारा पूरे क्षेत्र में अवैध रूप से जुआ सट्टा खिलाने का दावा किया जा रहा है। वीडियो में युवक यह भी दावा कर रहा है कि पुलिस और प्रशासन उसकी जेब में है । इसी को आधार बनाकर पत्रकार सैयद वाजिद और उमेश कश्यप द्वारा खबर प्रकाशित की गई थी। इस मामले में वीडियो में दिख रहे युवक के खिलाफ कार्यवाही करने की बजाय पुलिस उल्टा पत्रकारों को प्रताड़ित करने पहुंच गई। देर रात उन्हें नोटिस दिया गया और सदल बल पुलिस दोनों पत्रकारों के घर पहुंच कर उन पर मानसिक दबाव बनाने लगी। उनसे वीडियो और युवक के बारे में सबूत मांगे गए। एक तरफ मुंगेली की पुलिस जुआ और सट्टा समेत अन्य अपराधियों पर नकेल कसने में नाकाम है लेकिन यह सच्चाई उजागर करने वाले कलम कारो की जुबान वो प्रशासन का डंडा चला कर उसे बंद करना चाहते हैं।

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर इस तरह का अंकुश लोकतंत्र के विरुद्ध है। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही मीडिया पर इस तरह की पाबंदी लगभग प्रदेश भर में देखी जा रही है। कहीं पत्रकार पीटे जा रहे हैं ,कहीं उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज हो रहे हैं। जिसे कहीं ना कहीं सरकार का समर्थन हासिल है, इन प्रयासों से पत्रकारों का मनोबल तोड़ने की कोशिश की जा रही है। इसे लेकर मुंगेली प्रेस क्लब और अन्य पत्रकार संगठनों ने अपना जबर्दत विरोध दर्ज कराया है। मुंगेली के सभी वरिष्ठ और कनिष्ठ पत्रकार अपना विरोध दर्ज कराने सिटी कोतवाली थाने पहुंचे और वहां धरने पर बैठ गए। पत्रकार मुंगेली थाना प्रभारी से इस कार्यवाही का सबब पूछ रहे हैं। सभी पत्रकार काली पट्टी लगाकर पुलिस और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी भी कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार पत्रकारों के निशाने पर भले ही मुंगेली कोतवाली थाने के प्रभारी हो लेकिन इस पूरी कार्रवाई के पीछे बड़े पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका है, जिन्हें राजनीतिक संरक्षण भी हासिल है। नई सरकार के साथ पुलिस और प्रशासन ने भी बार-बार यही साबित किया है कि पत्रकारों के आंदोलन या विरोध से उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता ।वह केवल अपने राजनीतिक आकाओं की इच्छा पूर्ति का साधन बनकर रह गए हैं।

हालांकि ऐसी कार्रवाइयों के बाद छोटे पुलिस अधिकारी ही लोगों के निशाने पर होते हैं लेकिन उनके कंधे का इस्तेमाल कर बंदूक कोई और चला रहा होता है। मुंगेली की घटना भी इससे जुदा नही है। मुंगेली में दो पत्रकारों के साथ हुई बदसलूकी पर पत्रकारों ने अपना विरोध दर्ज करा कर जहां पत्रकार एकता और पत्रकार अस्मिता का परिचय दिया है वही प्रशासन की हठधर्मिता यह दर्शा रही है कि उन्हें इस सब से कोई खास असर नहीं पड़ता। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर से मीडिया और प्रशासन के बीच की खाई को और चौड़ा जरूर कर दिया है। पुलिस का दावा है कि यह वीडियो करीब 6 माह पुराना है इसलिए इस पर अब समाचार बनाए जाने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं तो वहीं पत्रकार यह सवाल कर रहे हैं कि अगर वीडियो 6 महीने पुराना है तो फिर वीडियो में दिख रहे युवक पर किसी तरह की कारवाही अब तक क्यों नहीं की गई और उसके दावों की सच्चाई की पड़ताल करने में पुलिस की दिलचस्पी क्यों नहीं है।

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