फिर कटी कोरबा जिला प्रशासन की नाक.. प्रतिबंधात्मक धारा में सिटी मजिस्ट्रेट ने युवक को भेजा जेल, हाईकोर्ट ने लगाया 25 हजार का जुर्माना
बिलासपुर 24 अगस्त. कोरबा जिला प्रशासन की नाक एक बार फिर कट गई है. इस बार यह उपलब्धि सिटी मजिस्ट्रेट की कार्यवाही के कारण हासिल हुई है. प्रतीत होता है मानो अधिकारीयों के बीच जिले का नाम रोशन करने की प्रतिस्पर्धा चल रही हो जिसमे फजीहत को मैडल समझा जाता हो. यूँ तो किस्से अनेक हैं पर केवल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के संज्ञान में आए मामलों की बात करें तो अभी कुछ माह पहले ही कोरबा पुलिस पर न्यायालय ने लाखों का जुर्माना लगाया था जिसके कारण कोरबा जिले का नाम पुरे प्रदेश में रोशन हुआ था. मामला तब भी जमानत का था और मामला अब भी जमानत का है.
बहरहाल ताजा मामला कोरबा सिटी मजिस्ट्रेट कोर्ट का है जहाँ सिटी मजिस्ट्रेट गौतम सिंह द्वारा अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्यवाही करते हुए व्यक्ति को जेल भेज दिया गया. मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो सिटी मजिस्ट्रेट की कार्यवाही को स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन ठहराते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने छ.ग.शासन पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया.
प्राप्त जानकारी अनुसार बालको में कार्यरत लक्ष्मण साकेत निवासी एमपी नगर थाना सिविल लाइन रामपुर कोरबा का अपनी पत्नी से घरेलु विवाद हो गया था. पत्नी ने लक्ष्मण के विरुद्ध थाने में शिकायत की तो पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 107, 16 अंतर्गत कार्यवाही करते हुए लक्ष्मण को गिरफ्तार कर सिटी मजिस्ट्रेट गौतम सिंह के समक्ष पेश कर दिया. लक्ष्मण के अधिवक्ता नूतन सिंह ठाकुर ने जब रिहाई हेतु बेल बांड की राशी पेश की तो सिटी मजिस्ट्रेट ने शाम 5 बजे साल्वेंट श्योरिटी की शर्त लगा दी. शाम हो जाने के कारण अधिवक्ता श्योरिटी पेश नही कर सके जिसके कारण सिटी मजिस्ट्रेट गौतम सिंह ने लक्ष्मण को जेल भेज दिया.
सिटी मजिस्ट्रेट के फैसले को पीड़ित ने उच्च न्यायलय में चुनौती दी. पीड़ित के अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला व नूतन सिंह ठाकुर ने तर्क दिया की सिटी मजिस्ट्रेट को साल्वेंट श्योरिटी मांगने का अधिकार ही नहीं है. पीड़ित की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा व न्यायाधीश बी.डी. गुरु की डिवीज़न बेंच ने सिटी मजिस्ट्रेट के फैसले को अवैध करार देते हुए उसे पीड़ित की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन बताया. न्यायालय ने छ.ग. शासन पर 25 हजार जुर्माना लगाते हुए रकम को पीड़ित को मुआवजे के रूप में 30 दिवस के भीतर प्रदान करने का आदेश दिया है.
जानकारों ने बताया की छ.ग.शासन इस जुर्माने की वसूली सिटी मजिस्ट्रेट गौतम सिंह से कर सकता है. साथ ही मामले की जाँच करते हुए अधिकारी पर प्रशासनिक कार्यवाही भी की जा सकती है.