खदानों का विस्तार जारीः दर्राखांचा में जमीन की नाप-जोख के साथ खोदाई कार्य शुरू

भूविस्थापितों के मामले अटके, हैवी ब्लास्टिंग से कई इलाके खतरे में

कोरबा 17 मई। कोयला की बढ़ती जरूरत को पूरा करने के लिए खदानों का विस्तार जारी है। एसईसीएल गेवरा परियोजना को विश्व की सबसे बड़ी कोल माइंस का दर्जा मिलने के साथ इसका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कुछ महीने पहले दर्राखांचा की जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया। औपचारिकताओं की पूर्ति कई मामलों में बची हुई है। लेकिन कामकाज शुरू होने से लोग परेशान हैं। खासतौर पर गांव के नजदीक ही खोदाई शुरू किये जाने से पानी से जुड़ी समस्याएं पैदा हो गई है।

हरदीबाजार के नजदीक बसे दर्राखांचा गांव तक कोलफील्ड का विस्तार किया जा रहा है। गेवरा परियोजना को इस इलाके तक बढ़ाने की मानसिकता पहले से थी और आखिरकार इसे परवान चढ़ाने के लिए कदम बढ़ा दिए गए। बताया गया कि 450 से ज्यादा मकान इस क्षेत्र में मौजूद हैं जो विस्तार की जद में आए हैं। भूअर्जन के बाद की प्रक्रिया को लेकर इलाके की नापजोख कंपनी व सरकार के राजस्व विभाग की ओर से की गई है। लोग बताते हैं कि अरसा पहले यह काम पूरा हो गया लेकिन संबंधित लोगों को इस बारे में पावती नहीं दी गई जिससे कि पता चल सके कि उनकी कितनी जमीन का सर्वे करने के साथ इसे प्रतिपूर्ति के लिए शामिल किया गया है। मुआवजा कब मिलेगा, इसे लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। इंतजार किया जा रहा था कि प्रक्रियाएं जल्द पूरी होगी लेकिन पाली एसडीएम रूचि सार्दुल का तबादला होने से चीजें बिगड़ गई। वहीं गांव के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां पर महज 5-10 मीटर से आगे ही एसईसीएल ने विस्तार के अंतर्गत शुरुआती खोदाई का काम प्रारंभ करवा दिया है। इसके कारण कई प्रकार के दुस्वारियों को यहां फैलने के लिए जगह नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि जल स्तर को लेकर पहले से ही शिकायतों की चिंता निराकरण करने को लेकर किसी भी स्तर पर ध्यान नहीं दिया गया। अब जबकि खनन से जुड़ी प्रक्रियाओं को गति दी जा रही है ऐसे में परेशानियों को और मजबूती मिल रही है। ग्रामीणों का कहना है कि जब राष्ट्रीय उत्थान और इंधन की जरूरत की पूर्ति के लिए इस इलाके से कोयला की निकासी करना ही है तो फिर लोगों को और ज्यादा परेशान करने की क्या जरूरत। उन्होंने तर्क दिया कि क्यों न विस्थापन के साथ-साथ मुआवजा और पुनर्वास व रोजगार जैसी प्रक्रियाओं को भी पूरी रफ्तार से संपन्न किया जाए। ऐसा करने से हमार परेशानी कम होगी और प्रबंधन को अनावश्यक चुनौतियों से नहीं जूझना पड़ेगा।

कोरबा जिले के अंतर्गत चार क्षेत्रों में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की खुली खदानें चल रही है। यहां पर कोयला खनन से संबंधित गतिविधियों के लिए विस्फोटक का इस्तेमाल करते हुए ब्लास्टिंग हर रोज की जाती है। इसके लिए चरणबद्ध कार्यक्रम बनाया गया है। एसईसीएल को भले ही सुरक्षा मानक पर ध्यान रखते हुए इस काम को करना है लेकिन ब्लास्टिंग के प्रभाव बड़े हिस्से तक हो रहे हैं। खदानों के आसपास रिहायशी क्षेत्र के साथ-साथ जल स्तर पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। एसईसीएल की मानिकपुर से लेकर कुसमुंडा, गेवरा और दीपका विस्तार खदानों के इर्द-गिर्द हजारों की आबादी निवासरत हैं जो अपने कच्चे-पक्के मकानों में दरार आने से लेकर वहां के जल स्तर के काफी नीचे खिसकने से दिक्कत में हैं।
एसईसीएल की कुसमुंडा, गेवरा और दीपका विस्तार परियोजना के कामकाज को बढ़ाने के लिए बीते वर्षों में क्षेत्र की जमीन ली गई है। स्थानीय स्तर पर पर्यावरणीय जनसुनवाई पूरी होने और रिपोर्ट आगे जाने के साथ इसे भारत सरकार से क्लीरेंस भी मिल गया। जमीन का मसला निराकृत होने से एसईसीएल ने संबंधित क्षेत्रों में कोयला उत्पादन शुरू कर दिया है लेकिन सैकड़ों की संख्या में भूविस्थापितों के रोजगार समेत दूसरे मसले अटके पड़े हैं। ऐसे लोग अधिकार की मांग को लेकर चक्कर लगाने को मजबूर हैं। प्रबंधन और प्रशासन पर बार-बार आरोप लगते रहे हैं कि उनके अधिकारी ऐसे मामलों में संवेदनशीलता का रूख नहीं दिखा रहे हैं। इसलिए आए दिन प्रदर्शन करने की मजबूरी है।

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