अमेरिकी दंपती ने मातृछाया से गोद लिया बच्चा
गोद भराई की रस्म धूमधाम से निभाई गई
तीन साल पहले आनलाइन किया था आवेदन
कोरबा 07 अप्रेल। एक मासूम जिसे पैदा होते ही उसकी मां और परिवार ने त्याग दिया, जिसके दिल में चार एमएम का छेद था। उस मासूम को शिशु मातृछाया ने सहारा दिया। मासूम का इलाज रायपुर के बड़े अस्पताल में कराया गया। छोटी उम्र में ही जीवन के बड़े संघर्ष के बाद अब इस बच्चे को उसके माता-पिता मिल गए हैं। अमेरिका से आए दंपति ने इस बच्चे को गोद ले लिया है। मातृछाया में गोद भराई की रस्म धूमधाम से निभाई गई। इस बच्चे को विधि-विधान से अमेरिकन दंपति का सौंपा गया है। अब वह अमेरिका में रहेगा।
मातृछाया सेवा भारती प्रकल्प में ऐसे बच्चों को रखा जाता है, जिन्हें पैदा होते ही उनके माता-पिता त्याग देते हैं। जो कूड़े में, नाले में या मातृछाया के ही पालने में संस्था को मिल जाते हैं। यह संस्था भारत सरकार और स्थानीय महिला एवं बाल विकास विभाग से पंजीकृत होती है। यहां पल रहे एक वर्ष 11 महीने के बालक को अमेरिकन दंपति ने गोद लिया है। बीते कई सालों से किसी बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया का पालन कर रहे थे। लंबे इंतजार के बाद उन्हें अवसर मिला। भारतीयों की संस्कृति को देखकर वह अभिभूत थे। उन्होंने कहा कि हमें भारतीय संस्कृति से बेहद लगाव है, इसलिए हम एक भारतीय बच्चे को गोद लेना चाहते थे। मातृछाया संस्था के सचिव सुनील जैन ने कहना है कि यह हमारे लिए बेहद खुशी की बात है कि हमारे संस्था की ओर से जिस बच्चे का पालन पोषण किया गया है, जिस बच्चे के दिल में छेद था। अब वह अमेरिका जैसे देश में जाकर रहेगा। जिन बच्चों को पैदा होते ही छोड़ दिया जाता है, उन्हें हम रखते हैं। हमारे संस्था में काम करने वाली यशोदा मांऐं बच्चों का पालन-पोषण करती हैं। वह बच्चों को सिर्फ दूध नहीं पिलाती बाकी सभी तरह के देखभाल वह करती हैं। एक तरफ हमें खुशी है कि बच्चा अमेरिका जा रहा है। वहीं, दूसरी तरफ यह दुख भी है कि जिस बच्चे का हमने पालन पोषण किया, अब वह हमारे परिवार से दूर हो जाएगा।
लाइफलाइन चिल्ड्रन सर्विस एजेंसी अधिकारी अलेक्स सैम कोरबा पहुंचे हुए थे। यह संस्था भारत सरकार के देखरेख में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को पूरा करती है। एलेक्स ने बताया कि सेंट्रल अडोप्ट रिसोर्स आथरिटी के जरिए गोद लेने के लिए आनलाइन आवेदन करना पड़ता है। विदेशी दंपति ने शिशु को गोद लेने के लिए लगभग तीन साल पहले आवेदन किया था। उन्हें भरतीय बच्चों को ही गोद लेना था। इसके लिए अमेरिका और भारत के दूतावास के बीच चर्चा होती है और सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं।
स्थानीय कलेक्टर के भी आदेश की जरूरत पड़ती है। यह भी देखा जाता है कि दंपति बच्चे का पालन पोषण ठीक तरह से कर सकते हैं या नहीं। मापदंडों पर खरा उतरने के बाद ही बच्चे को गोद लेने की अनुमति मिलती है। गोद लेने के बाद भी दो साल तक दंपति निगरानी में रहते हैं। हर छह महीने में एक अधिकारी उनके घर का विजिट कर यह सुनिश्चित करते हैं कि गोद लिए गए बच्चे का पालन पोषण ठीक तरह से किया जा रहा है या नहीं।