दीपका ओल्ड माइंस से लोड लेकर जा रहा था चाकाबूड़ा

कोरबा 27 नवम्बर। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के द्वारा मनाए जा रहे सुरक्षा पखवाड़े और विभिन्न आयामों की श्रृंखला के बीच गेवरा माइंस में हादसा हो गया। यहां कोयला लोड वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने से 42 वर्षीय आदिवासी चालक की मौत हो गई। औपचारिकतावश उसे अस्पताल ले जाने की पूर्ति की गई जहां डॉक्टर ने परीक्षण के साथ उसके मृत होने की पुष्टि की। पुलिस ने मामले में आगे जांच करने की बात कही है।

दीपका पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत एसईसीएल गेवरा क्षेत्र की गेवरा माइंस (दीपका ओल्ड) में बीती रात्रि 1 बजे के आसपास यह हादसा एमटीके वेस्ट-1 में पेश आया। इसमें दिलहरण सिंह गोंड़ 42 वर्ष पिता संतराम गोंड़ की मौत हो गई जो इसी इलाके का रहने वाला था। वह वाहन संख्या सीजी-12एस-0392 का चालक था। यह वाहन एसीबी इंडिया लिमिटेड में अटैच था और इस माइंस से कोयला का उठाव करने में लगा हुआ था। घटना दिवस को वाहन में ओल्ड माइंस से लोड लिया गया। अगली कड़ी में चालक इसे लेकर चाकाबूड़ा जाने निकला था। इसी दरम्यान खदान में एक जगह दुर्घटना हो गई। पुलिस के बताए अनुसार आवाजाही के दौरान पहले वाहन बिजली पोल से जा भिड़ा और उसके बाद अनियंत्रित होने के साथ काफी नीचे गड्ढे में जा गिरा। संघातिक चोटें आने के कारण उसकी स्थिति बिगड़ गई। बताया जा रहा है कि संभवतः घटना स्थल पर ही उसकी मौत हो गई थी। तथापि कुछ संभावनाएं देखते हुए कॉलरी प्रबंधन ने दिलहरण सिंह गोंड़ को मौके से हटाया और काफी देर के बाद अस्पताल ले जाने की कार्रवाई की। वहां चिकित्सक ने जरूरी परीक्षण करने के साथ उसे मृत घोषित कर दिया। चूंकि मौत संदिग्ध हालात में हुई है इसलिए प्रथम दृष्टया इस प्रकरण में 174 सीआरपीसी के अंतर्गत मर्ग कायम किया गया। पुलिस के द्वारा आगे संबंधित तथ्यों और जांच के साथ कार्रवाई की जाएगी।

यहां बताना जरूरी होगा कि एसईसीएल कंपनी स्थानीय क्षेत्र में भी 20 से 30 नवंबर तक सुरक्षा पखवाड़ा बना रही है। इसके अंतर्गत सबसे ज्यादा फोकस उत्पादन और कामकाज से जुड़े सभी क्षेत्रों में सुरक्षा पर किया गया है। अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों और ठेका कामगारों को कहा गया है कि वे सुरक्षा को बहुत ज्यादा महत्व दें और किसी भी कारण से इस मामले में उदासीनता न बरती जाए। कई प्रकार के सोपान इस कड़ी में शामिल किए गए हैं और इनका निर्वहन कड़ाई से करने के दावे किये जा रहे हैं। इन सबके बीच खदान क्षेत्र में हादसों की निरंतरता बताती है कि कहीं न कहीं झोलझाल बना हुआ है और यह कार्य पद्धति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

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