चुनावः 2023- तेलंगाना: इधर चिये, उधर ब्रेक फास्ट…@ डॉ. सुधीर सक्सेना
@ डॉ. सुधीर सक्सेना
बिसात बिछी हुई है। तीन खिलाड़ियों के बीच बिसात पर बीजेपी ने ‘चिये’ फेंक दिये हैं। चिये यानि इमली के बीज। चुनाव की पूर्व वेला में केन्द्र सरकार का राष्ट्रीय इमली बोर्ड के गठन का ऐलान राजनीतिक दांव ही कहा जायेगा। चुनाव की तारीखों की घोषणा के जुम्मा-जुम्मा आठ रोज पहले केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय इमली बोर्ड के गठन की घोषणा की। बोर्ड के गठन की मांग अर्से से लंबित थी। केन्द्रीय मंत्री किशन रेड्डी ने इसे बरसों से अटकी मांग की पूर्ति बताते हुए कहा कि बोर्ड इमली और इमली उत्पादों की वृद्धि और निर्यात पर ध्यान देगा। गौरतलब है कि भारत विश्व में इमली का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातकर्ता है। भारत की विश्व के इमली बाज़ार में बड़ी साख है और बाजार में महाराष्ट्र, तेलंगाना और बस्तर की इमली की खासी डिमांड है। भारत में इमली उत्पादन में तेलंगाना दूसरी पायदान पर है। तेलंगाना में लाखों किसानों को इसी खट्टी इमली से दो मुट्ठी भात नसीब होता है। जाहिर है कि इमली बोर्ड के गठन का मकसद इमली की खेती से जुड़े लाखों जनों को लुभाना है। देखना दिलचस्प होगा कि इमली के ये चिये भाजपा के लिए इमली के बूटों की शक्ल में फलते हैं या नहीं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी सरकार ने सही समय पर सही दांव खेला है। डबल इंजन सरकार की पैरोकार बीजेपी की कोशिश है कि तेलंगाना के रास्ते दक्खिन में पांव पसार जायें। उसका बोर्ड के गठन का उपक्रम इस कवायद का हिस्सा है। बोर्ड के गठन के ऐलान के बाद बीजेपी कार्यकताओं ने इमली की खेती से जुड़े नंगे-पांव किसानों को चप्पलें बांटीं।
भाजपा अपनी इस पहलकदमी पर अपनी पीठ थपथपा पाती कि सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने नया और उससे बड़ा दांव खेल दिया। मुख्यमंत्री कल्वांकुंतला चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने पहली से दसवीं कक्षा तक के स्कूली बच्चों के लिए नाश्ता योजना का ऐलान कर दिया। पहले इसे अक्टूबर मास के अंत में लागू करने की योजना थी, लेकिन चुनाव की दस्तक ने उन्हें ताबड़तोड़ फैसला लेने को विवश किया। उन्होंने पहले तय 24 अक्टूबर से करीब एक पखवाड़ा पहले यह योजना 27147 स्कूलों में लागू कर दी। इससे करीब 23 लाख छात्र- छात्राएं लाभान्वित होंगे। इस योजना की प्रेरणा केसीआर को तमिलनाडु के सीएम स्तालिन से मिली, लेकिन उन्होंने इसका दायरा बड़ा रखा और मेनू पर भी ध्यान दिया। स्तालिन की ब्रेकफास्ट स्कीम के अध्ययन के लिये उन्होंने सुश्री स्मिता सभरवाल के नेतृत्व में अधिकारियों का एक दल तमिलनाडु भेजा। नाश्ते के लिए व्यंजनों की जो सूची बनी है, उसमें अलग-अलग दिन अलग-अलग व्यंजनों का समावेश है। इन व्यंजनों में इडली, सांभर, उपमा, चावल, पूड़ी-आलू, पुलाव आदि शामिल हैं। इस योजना पर सालाना करीब 400 करोड़ रुपयों का खर्च आयेगा। केसीआर के नेतृत्व में तेलंगाना लोक-लुभावन योजनाओं में किसी भी सूबे से पीछे नहीं है। केसीआर की पार्टी बीआरएस की आयु भारतीय जनता पार्टी से काफी कम है, लेकिन पृथक तेलंगाना राज्य के गठन का चमकीला तमगा उनके सीने पर है। तेलंगाना केसीआर का स्वप्न था, जिसे उन्होंने अपने संकल्प और संघर्ष से साकार किया। इसके लिये उन्होंने जोखिम उठाये, संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिया और आमरण अनशन तक किया। यह साहस उन्हें फला। अब वह ‘हैट-ट्रिक ‘की ओर अग्रसर हैं। बीजेपी की दिक्कत यह है कि अभी तक वह समूचे तेलंगाना में पांव नहीं पसार सकी | ग्रामीण अंचलों के लिए ‘कमल’ अजनबी है।
यह अकारण नहीं है कि सन 2018 के विधानसभा चुनाव में शताधिक सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थे। केसीआर ने तब नौ माह पूर्व विधानसभा भंग करने का तुरूप दांव खेला था और बाजी जीत ली थी। इस दफा भी वह कांग्रेस और बीजेपी से आगे है। कांग्रेस को कर्नाटक में फतह से तेलंगाना में वापसी की उम्मीद है, लेकिन केसीआर ने जो मारे, सो मीर की तर्ज पर अगस्त माह में ही 115 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इससे बीआरएस उम्मीदवारों को पर्याप्त तैयारी और बढ़त का मौका मिल गया। तेलंगाना में बीजेपी के पास कोई सशक्त क्षत्रप नहीं है और उसे ‘मोशा’ का ही आसरा है। प्रधानमंत्री मोदी ने रैली में बीजेपी से हाथ मिलाने की बीआरएस की पेशकश की बात कही, लेकिन उनका यह दांव उल्टा पड़ गया। केसीआर के बेटे और मंत्री केटीआर ने बीजेपी को बिगेस्ट झूठा पार्टी करार दिया और कहा कि उन्हें पागल कुत्ते ने नहीं काटा है कि हमारा दिमाग फिर जाए और हम एनडीए से हाथ मिला लें। केटीआर ने कहा- ‘वी आर फाइटर्स नॉट चीटर्स।’
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