कोयला कर्मियों के 11 वां वेतन समझौता को हाई कोर्ट ने किया खारिज, कोल कर्मियों में नाराजगी व्याप्त
कोरबा 09 सितम्बर। कोल इंडिया में कार्यरत लगभग 2.42 लाख कोयला कामगारों को जबलपुर उच्च न्यायालय से जबर्दस्त झटका लगा है। न्यायालय ने कोयला मंत्रालय केे 11 वां वेतन समझौता को मंजूरी देने का आदेश खारिज कर दिया। साथ ही डिपार्टमेंट आफ पब्लिक इंटरप्राइजेस डीपीई को भेजने का निर्देश देते हुए 60 दिन के भीतर निर्णय लेने कहा है।
उच्च न्यायालय के इस आदेश का असर साऊथ ईस्टर्न कोलफिल्ड़्स लिमिटेड एसईसीएल के लगभग 39500 कामगारों पर भी पड़ेगा। एक जुलाई 2021 से लंबित कोयला कर्मियों का 11 वां वेतन समझौता 22 जून 2023 को जेबीसीसीआइ की बैठक में हुआ था। इसके बाद राशि की भुगतान भी शुरू कर दिया गया। इसे वेतन समझौता से कोयला अधिकारियों में नाराजगी व्याप्त हो गई। उन्होंने आरोप लगाया कि नए वेतन समझौता से ई.वन से ई. थ्री ग्रेड तक के अधिकारियों का वेतन कम हो गया और उच्च ग्रेड के कर्मियों का वेतन अधिक हो गया। इसके साथ ही डीपीई की मंजूरी भी नहीं ली गई है। कोयला अधिकारियों ने कामगारों के वेतन समझौते को जबलपुर, बिलासपुर व दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की थी। मामले की सुनवाई दोनों न्यायालय ने हुई। पिछले दिनों 29 अगस्त को मामले की अंतिम सुनवाई हुई और न्यायालय ने दोनों पक्ष की बात सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। यूनियन की ओर से इसमें एचएमएस के नाथूलाल पांडेय ने दलील दी थी। आठ सितंबर को न्यायालय में अपना फैसला सुनाते हुए 11 वां वेतन समझौते के लिए 22 जून, 2023 के कोल मंत्रालय द्वारा जारी अप्रूवल आर्डर को रद्द कर दिया। इस मामले पर निर्णय लेने के लिए डीपीई के पास भेजने का आदेश दिया है। उस पर 60 दिनों में निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
कोयला कामगारों के तरफ से इस मामले में पक्षकार बने जेबीसीसीआइ सदस्य व एचएमएस के महामंत्री नाथूलाल पांडेय ने उच्च न्यायालय के फैसले की जानकारी देते कहा कि इस फैसले के विरूद्ध अपने अधिवक्ता के माध्यम से अपील करेंगे। डीपीई में पत्र लिखने के बाद भी स्वीकृति नहीं लेना गलत है। कोयला कर्मियों में इससे नाराजगी व्याप्त है। सभी यूनियन के साथ भी वार्ता की जाएगी। उन्होंने कहा कि कोयला अधिकारियों के वेतनमान को लेकर भी श्रमिक संघ प्रतिनिधियों ने विरोध नहीं जताया हैए जबकि उन्हें कई प्रकार की सुविधाएं व भत्ता मिल रहा है।
कोयला अधिकारियों द्वारा दायर याचिका में सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय में केवल एचएमएस ही कामगारों की तरफ से पक्षकार बनाए जबकि अन्य यूनियन इसमें शामिल नहीं हुई। इस पर उच्च न्यायालय ने कहा कि जेबीसीसीआइ.11 में विभिन्न ट्रेड यूनियन के पदाधिकारी शामिल थेए पर वर्तमान मामले में केवल एक ट्रेड यूनियन को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया गया है। इसलिए जेबीसीसीआइ.11 में शामिल सभी ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों की भी बात सुनी जानी चाहिए। मामले में अंतिम निर्णय का अधिकार डीपीई को दिया गया है। डीपीई को वेतन समझौता को लेकर पहले ही वार्ता कर निर्णय लिया जाना था और विवाद को निपटाया जा सकता था। जानकारों का कहना है कि यदि कोयला कामगारों को 11 वां वेतन समझौता के तहत आपसी सहमति नहीं बन पाती है, तो वेतनमान पर इसका असर पड़ेगा और कामगारों को भुगतान की गई राशि की वसूली हो सकती है। हालांकि ऐसी स्थिति निर्मित होने से पहले ही कोई न कोई निर्णय अवश्य निकाल लिया जाएगा। यहां बताना होगा कि जुलाई से कोयला कामगारों को नए दर के अनुरूप वेतनमान मिलने लगा है। इसके सात ही 23 माह का लंबित एरियर का भी भुगतान एक सितंबर कामगारों कर दिया गया है।
उच्च न्यायालय के फैसले की जानकारी मिलते ही कोयला कामगारों में रोष व्याप्त हो गया। उनका कहना है कि कोयला मंत्रालय को विवाद पूरी तरह सुलझा कर वेतनमान लागू किया जाना था। वहीं अधिकारियों के प्रति भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अधिकारियों के वेतन समझौता कभी विरोध नहीं किया गया। इसके अलावा उन्हें कई प्रकार के भत्ते व सुविधाएं प्रदान की जा रही है, जो कर्मचारियों को नहीं मिलती। अब अधिकारियों की तरह सुविधा व भत्ता की भी मांग की जाएगी, साथ ही जरूरत पडऩे पर आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया जाएगा।