भारत से सीखो गुलामी पर गर्व करना….!
लेखक: मनोज श्रीवास्तव
प्रस्तुति: मनोज अग्रवाल
तो रोडेशिया ने जब अपना नाम ज़िम्बाब्वे रख लिया, 1980 में, वह गड़े मुर्दे उखाड़ रहा था।अच्छा खासा नाम अंग्रेजों ने दे दिया था, जाने क्या ये सांस्कृतिक विरासत की रट इसे लग गई?
और तो और, यह अपने विजेताओं के प्रति अकृतज्ञ सीलोन, इसने 1972 में अपना नाम श्रीलंका रख लिया। अरे जब 1948 में स्वतंत्र हो गए थे तो 1972 में ये गड़े मुर्दे क्यों उखाड़े?
कितना भला तो नाम अंग्रेज दे गये जंजीबार। मगर ये एहसानफरामोश लोग तंज़ानिया नाम रख लिये। अब इन पर तंज न कसें तो क्या करें।
ऐसे ही आंग्ल प्रतिभा ने रखा था बर्मा नाम। ये इतना लंबा म्यानमार नाम रखे। मन तो करता है कि म्यान से कटार निकाल कर मार दें, इन्हें। ये भी कोई तुक होती है। 194& में स्वतंत्र हुए। 1989 में नाम बदलने की सूझी।
अंग्रेजों ने तो गोल्ड कोस्ट जैसा सुंदर पोयटिक नाम रखा था। स्वर्णतट। बताइये उसे घाना कर रहे हैं। कैसे लोग हैं इन्हें “warrior king” -योद्धा राजा अच्छा लगता है हमारी कविता से ज़्यादा। तो क्या हुआ कि हमने इन्हें भूखा नंगा कर दिया, नाम तो स्वर्णतट रखा। अब ये रोज़ी रोटी की चिन्ता करते, नाम बदल कर क्या कर लेंगे।
ये अन्याय सभी आक्रामकों के साथ हो रहा है।
डच लोगों के साथ भी मच टू मच। डच गिनी को सूरीनाम कर दिया 1975 में।
कितना सुंदर-सा प्यारा नाम फ्रेंच शासकों ने दिया था- अपर वोल्टा। बोलने में भी आसान।आज़ादी के 24 वर्ष बाद इन्हें पता नहीं कितने वोल्ट का करंट लगा जो अपना नाम बर्कीना फासो रख लिया। यानी एकदम सही लोगों की भूमि। “Land of Upright People” । सोचिये कितना ग़लत काम करते हैं ये सही नाम रखने का दिखावा करने वाले।
जिन्होंने आपके पूर्वजों को मारा, वे आपको कितनी चीज़ें दिये भी तो।आपको तो बस सेसिल रोड्स और जन वन रीबेक की मूर्तियाँ तोड़नी हैं। दक्षिण अफ़्रीका में हमने ये पुरुष भेजे। वहाँ इनकी मूर्ति तोड़ने से पेट न भरा तो जमैका से भी सेसिल रोड्स की मूर्ति हटा रहे। नाशुकरे लोग।
भारत से सीखो कितने प्यार से बख्तियार ख़िलजी को रखता है। कोई कहेगा कि उसने तीन विश्वविद्यालय जला दिये, उनके पुस्तकालय जला दिये तो भी उसके मुख से उफ़ नहीं निकली।आज तक उसका मान-ध्यान है उनके प्रतिभा-पुरुषों को। वे कार्नवालिस के मकबरे को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक बनाये हुए हैं और ये नामीबियाई 2013 में कर्ट वॉन फ्रेंकोइस जैसे जर्मन उपनिवेशवादी की मूर्ति अपनी राजधानी विंडोक के पब्लिक पार्क से हटा दिये। अभी 2020 में मैक्सिको में क्रिस्टोफ़र कोलंबस की मूर्ति गिरा दी। चिली के सेंटियागो में वाल्डीविया की मूर्ति ज़मींदोज़ कर दी। उसी साल पेरू में फ़्रांसिस्को पिजारो की मूर्ति धराशायी कर दी।उसी वर्ष कोलंबिया के बागोटा में गोजांलो जिमेन्ज डे क्यूसाडा की मूर्ति गिरा दी। इसी वर्ष ईक्वेडोर के क्विटो Sebastian de Belalcazar की मूर्ति तोड़ दी।
अनुदार लोग। भारत से सीखो कैसे वारेन हेस्टिंग्स, लॉर्ड कॉर्नवालिस, लॉर्ड बेंटिक, लॉर्ड विलियम केवेन्डिश बेंटिंक, लॉर्ड डलहौज़ी, लॉर्ड मेयो, लॉर्ड कर्ज़न, लॉर्ड हार्डिंग, लॉर्ड इर्विन, लॉर्ड माउंटबैटन की मूर्तियों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्थाई देखरेख में लगातार शासकीय देखरेख में शासकीय महत्व का स्मारक संसद् से घोषित करवा के करोड़ों रुपया प्रतिवर्ष व्यय करके सुरक्षित रखे हुए है जबकि इसके अपने ऐतिहासिक महत्व के मंदिर धूल फॉंक रहे।
इन मूर्तिपूजकों को हम असभ्य कहते ज़रूर रहे लेकिन इन मूर्तियों के प्रति इनकी श्रद्धा देखकर हमारा मन भर आता है।
जबकि स्वयं इंग्लैंड के ब्रिस्टल में एडवर्ड कॉल्सटन नामक दास-व्यापारी की मूर्ति अभी 2020 में तोड़ दी गई और वहाँ की नगर परिषद ने उसके नाम पर अभी तक चले आये हाल का नाम परिवर्तित कर ब्रिस्टल बीकन नाम रख दिया। इसी वर्ष लियोपोल्ड द्वितीय सुरंग का नाम बेल्जियम के शहर एंटवर्प में उन्होंने बदल कर सिर्फ़ इसलिए केनेडी सुरंग रख दिया कि एंटवर्प में केनेडी ने 1963 में एक भाषण दिया था, जबकि कांगो में नरसंहार सहित तमाम राक्षसी अत्याचार और भयावह लूट लियोपोल्ड ने अपने देश बेल्जियम के लिए ही तो की थी।
योरोप में ही देख लो।मुस्लिम क़ब्ज़े के दौरान टोलेडो शहर का नाम तूलेतुलाह कर दिया गया था। उसे वापस जीतकर पहला काम उसका नाम टोलेडो करने का किया गया। कोर्डोबा का नाम मुस्लिम क़ब्ज़े के दौरान कुर्तुबाह कर दिया था। उसे वापस जब क्रूसेड में जीता तो कोर्डुबा किया गया। सेविली शहर तब इशबिल्लाह बन गया था तो वापस अपने मूल नाम तक पहुँचा। वेलेन्शिया बलानसियह से वापस वेलेन्शिया हुआ। ग्रेनाडा घरनटाह से वापस ग्रेनाडा हुआ। लिस्बन अल-उश्बुना से वापस लिस्बन हुआ। एथेंस अथीना से वापस एथेंस हुआ। थेसालोनिकी सेलानिक हो गया था तो वापस मूल पर हुआ। कोरिन्थ गोर्थोयन से वापस मूल नाम। बल्गारिया का सोफिया शहर सरेडेत्स से वापस सोफिया हुआ। वर्ना शहर इस्कोडरा से वापस वर्ना। सिसली का पालेर्मो बलार्म से वापस पालेर्मो।
उदाहरणों की कमी नहीं है। गड़े मुर्दे उखाड़ने का उद्योग। संकीर्णहृदय लोग। हम भारत के बुद्धिजीवियों से सीखते कि अपने हमलावरों की मधुर याद कैसे सुरक्षित रखी जाती है।
बेवक़ूफ़ हैं वे जो स्वयं मुर्दा होने की जगह गड़े मुर्दे उखाड़ते हैं।
हम मुर्दों को डिस्टर्ब नहीं करते। क्या पता कोई ‘द ममी रिटर्न्स’ जैसा हादसा हो जाये।
बेहतर है खुद मुर्दा हो जाओ। खुद मुख्तारी की बहुत झंझटें हैं।