किसान सभा का प्रशिक्षण शिविर संपन्न: होगा हर गांव में किसान सभा, किसान सभा में हर किसान के नारे पर अमल
कोरबा 5 फरवरी। अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा का तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर 1.3 फरवरी तक दीपका में संपन्न हुआ। इस शिविर में 12 महिलाओं सहित किसान सभा की विभिन्न कमेटियों से जुड़े 60 चयनित प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। शिविर की अध्यक्षता किसान सभा के कोरबा जिला अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर ने की।
तीन दिन के इस शिविर को विभिन्न सत्रों में अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोजए छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते तथा जिला सचिव प्रशांत झा ने संबोधित किया। शिविर के सांगठनिक सत्र में कोरबा जिले में किसान सभा संगठन के विस्तार और आंदोलन को मजबूत करने के लिए आवश्यक निर्णय लिए गए और इस दिशा में किसान सभा के नारे हर गांव में किसान सभा, किसान सभा में हर किसान के नारे पर अमल करने पर जोर दिया गया।
किसान सभा के अध्ययन शिविर के विषय थे रू किसान सभा का इतिहासए मोदी के श्न्यू इंडिया में नया क्या है, विस्थापन और भूमि के मुद्दों पर संघर्ष विकसित करने के लिए किसान सभा का दृष्टिकोण, अखिल भारतीय किसान सभा के त्रिशूर केरल में आयोजित 35 वें महाधिवेशन की राजनैतिक-सांगठनिक रिपोर्टिंग, संयुक्त आंदोलन विकसित करने में किसान सभा की भूमिका और विभिन्न सामाजिक आंदोलनों के प्रति उसका नजरिया।
उक्त विषयों पर विस्तार से बात रखते हुए बादल सरोज ने आजादी के आंदोलन में साम्राज्यवाद और सामंतवाद के खिलाफ संघर्ष में किसान सभा की गौरवशाली भूमिका को रेखांकित किया और केरल के पुन्नप्रा.वायलारए बंगाल के तेभागा आंदोलनए महाराष्ट्र के वर्ली में आदिवासियों के आंदोलनए पंजाब के एंटी.बेटरमेंट लेवी आंदोलन और आंध्र के निजाम के खिलाफ तेलंगाना भूमि संघर्ष आदि आंदोलनों के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि किसान सभा के निर्माण में कांग्रेस के नेताओं सहित विभिन्न धाराओं के स्वतंत्रता सेनानियों की महत्वपूर्ण भूमिका थीए जिसके कारण समूची किसान जनता को संघर्ष के मैदान में उतारा जा सका। लेकिन आजादी के बाद भूमि सुधार कानून बनाने के बावजूद जोतने वाले गरीब किसानों और खेतिहर मजदूरों को जमीन नहीं दी गईए बल्कि ऐसी नीतियां लागू की गई कि किसानों के हाथों से जमीन निकलती चली जा रही है।इसलिए आज भी वामपंथ के नेतृत्व में किसान सभा पूरे देश में भूमि संघर्ष चला रही है और खेती.किसानी के हर मुद्दे पर किसान समुदाय को लामबंद कर रही है। किसान सभा की पहलकदमी पर ही लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य के सवाल पर और किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देशव्यापी साझा संघर्ष विकसित हुआ और मोदी सरकार को इन कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
बादल सरोज ने देश में गहराते कृषि संकट का जिक्र करते हुए इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों का विस्तार से जिक्र किया और किसान सभा की जनपक्षधर वैकल्पिक नीतियों को सामने रखाए जिसके आधार पर देशव्यापी संघर्ष का निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मजदूर.किसान एकता और विभिन्न सामाजिक.जनवादी आंदोलनों के साथ साझे संघर्ष के बल पर ही इन सरकारों की जन विरोधी नीतियों को शिकस्त दी जा सकती है। किसान सभा नेता संजय पराते ने देश में कृषि के क्षेत्र में कॉर्पोरेट घुसपैठ के खतरों को रेखांकित किया और कहा कि आज देश की केंद्रीय सत्ता में वे लोग काबिज हैए जिनका इतिहास अंग्रेजपरस्ती का और आज़ादी के आंदोलन के साथ गद्दारी का रहा है। ये ताकतें देश के संविधान और नागरिकों के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों को मानने के लिए तैयार नहीं है और मनु की वर्णवादी व्यवस्था को लागू करने में लगी है। ये हिंदुत्ववादी ताकतें धर्मनिरपेक्षता को कुचल रही है और नफरत की राजनीति को बढ़ावा देकरए कॉर्पोरेट पूंजी के साथ गठबंधन करके फासीवाद को स्थापित करने की ओर बढ़ रही है। यही कारण है कि देश में दलितोंए आदिवासियोंए अल्पसंख्यकोंए महिलाओं और सामाजिक रूप से शोषित.उत्पीडि़त तबकों पर अत्याचार और हमले बढ़ रहे हैं। इन ताकतों को शिकस्त देकर ही मजदूर.किसानों के संघर्षों को आगे बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि केवल किसान सभा ही हैए जिसका डेढ़ करोड़ की सदस्यता के साथ देशव्यापी आधार है और जिसकी मुद्दों पर स्पष्ट समझ के साथ कार्यवाहियों में भी पैनापन है।
महाराष्ट्र के किसानों के लांग मार्चए राजस्थान के किसानों के बिजली-पानी के संघर्ष और संयुक्त किसान मोर्चा बनाकर किसान विरोधी काले कानूनों के खिलाफ देशव्यापी संघर्षों के बारे में उन्होंने विस्तार से बताया और संगठन निर्माण और आंदोलन के विस्तार के लिए महाधिवेशन के फैसलों के बारे में बताया। इन फैसलों के आधार पर किसान सभा के जिला सचिव प्रशांत झा ने व्यापक सदस्यता अभियान चलानेए ग्रामीण ईकाईयों का निर्माण करने तथा स्थानीय मुद्दों को चिन्हित कर अनवरत संघर्ष और अभियान चलाने का ठोस प्रस्ताव रखा, जिसे शिविर के प्रतिभागियों ने स्वीकार किया। शिविर में 5 अप्रैल को दिल्ली में आयोजित मजदूर.किसान रैली को सफल बनाने की योजना भी बनाई गई।