एनजीटी के प्रतिबंध को ठेंगा दिखाकर नदी- नालों से हो रही रेत की चोरी

कोरबा 13 अक्टूबर। बिल्कुल ऐसा लगता है कि नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल हर बार चार महीने के लिए नदी.नालों से रेत खनन और परिवहन पर प्रतिबंध लगाता है यह अवधि 15 जून से 15 अक्टूबर की रखी गई है। कहने के लिए ही यह प्रतिबंध है लेकिन निर्बाध रूप से रेत की चोरी और उसकी निकासी का काम जिले में आसान तरीके से चल रहा है। ऐसे में साफ तौर पर कहा जा सकता है कि एनजीटी को ठेंगा दिखाने और सरकार को चपत लगाने से रेत चोरों की गैंग दुस्साहस का परिचय दे रही है। कोरबा जिले में मुख्य रूप से रेत चोरी का काम हसदेव, लीलागर, तान, सोन, चोरनई नदियों के अलावा कई बड़े नालों को रेत चोरों ने निशाने पर बना रखा है।

माइनिंग विभाग ने बीते वर्ष लगभग 19 घाटों को वैध रूप से रेत निकासी के लिए अनुज्ञप्ति सूची में शामिल किया था और पार्टियों को रेत खनन के अधिकार दिए थे। इसके लिए कई शर्ते तय की गई थी। उक्तानुसार रायल्टी का भुगतान करने, मौके पर सुरक्षा व निगरानी संबंध अर्हता पूर्ण करने के साथ इस काम को पूर्ण किया जाना था। पर्यावरणीय कारणों को आधार मानते हुए एनजीटी ने 15 जून से 15 अक्टूबर के लिए देश के साथ.साथ कोरबा जिले में खनन संबंधी गतिविधियों को प्रतिबंधित कर रखा है। यह काम केवल कागजों में आदेश जारी होने और गड़बड़ी पाए जाने पर कार्रवाई करने के निर्देश तक सीमित रहा। देखने को मिला कि पूरी प्रतिबंधित अवधि में धड़ल्ले से रेत खनन करने वाली पार्टियां सभी क्षेत्रों में सक्रिय रहीं। इसी के साथ सरकार को मिलने वाली रायल्टी का भारी.भरकम नुकसान किया गया। प्रतिबंधित अवधि में कई लाख क्यूबिक मीटर रेत नदी.नालों से पार कर दी गई और इसका व्यवसायिक उपयोग किया गया। अभी भी यही काम चल रहा है क्योंकि रेत चोरों को मालूम है कि प्रतिबंधित अवधि समाप्त होने के बाद उनकी पूछपरख नहीं रह जाएगी। खबर के मुताबिक रेत का भंडारण करने की अनुज्ञा प्राप्त करने की आड़ लेकर रेत चोर अपने काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं। छत्तीसगढ़ में कोयला और दूसरे मामलों को लेकर इफोर्समेंट डिपार्टमेंट लगातार कार्रवाई कर रहा है। उसका ध्यान अब तक दूसरे कारनामों की तरफ नहीं गया है। माना जा रहा है कि इस बारे में डिटेल्स पहुंचने के बाद ईडी की निगाहें इस मामले में हो सकती है।

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